JDU से जुड़ा अजीब संयोग; राज्यसभा के साथ पार्टी से भी होती है विदाई, हरिवंश से पहले 11 नेताओं का टूट चुका नाता
लोकसभा चुनाव को देखते हुए बिहार में राजनीतिक सरगर्मी तेज है। इसी बीच जदयू से जुड़ा एक अजीब संयोग देखा जा है। माना जाता है कि पार्टी की तरफ जिन नेताओं को राज्यसभा भेजा जाता है। बाद में राज्यसभा के साथ साथ उनकी जदयू पार्टी से भी विदाई हो जाती है। अब तक ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल चुके हैं।
By Arun AsheshEdited By: Jagran News NetworkUpdated: Sat, 26 Aug 2023 12:06 PM (IST)
अरुण अशेष, पटना: अंधविश्वास से जुड़े लोग इसे शगुन-अपशगुन से जोड़ सकते हैं। विशुद्ध राजनीति में इसे अवसरवाद कह सकते हैं। कुछ कहें, इस संयोग को देखें कि जदयू से राज्यसभा में नामित अधिसंख्य लोग सदन के साथ-साथ पार्टी से भी विदा हो जाते हैं।
वह इस संभावना के साथ विदा होते हैं कि अगला चांस नहीं मिलेगा, सदन में रहते ही विदाई की तैयारी शुरू कर देते हैं। राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश इस संयोग के नवीनतम उदाहरण बनने जा रहे हैं। जदयू से उनकी दूरी इस हद तक बन चुकी है कि फिर से जुड़ने की संभावना नहीं नजर आ रही है।
फर्नांडीस भी जदयू से हुए थे दूर
दल से विदा होने के पहले कुछ ऐसी ही भूमिका शरद यादव (दिवंगत) और अली अनवर ने भी बनाई थी। दोनों पार्टी की घोषित लाइन के उस पार खड़े हो गए थे। शरद यादव जदयू के संस्थापक थे। बड़े समाजवादी जार्ज फर्नांडीस राज्यसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद जदयू के संपर्क में नहीं रहे।डा. एजाज अली और साबिर अली जैसे राज्यसभा के सांसदों ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया। साबिर 2008 में लोजपा से राज्यसभा में गए। 2011 में पाला बदल कर जदयू में आ गए। राज्यसभा से हटने के बाद कुछ दिनों तक जदयू में रहे। अभी भाजपा में हैं।
अनिल सहनी भी हुए अलग
महेंद्र सहनी जदयू के राज्यसभा सदस्य थे। कार्यकाल में उनका निधन हो गया। पुत्र अनिल सहनी को उनका बचा कार्यकाल मिला। एक पूर्ण कार्यकाल भी दिया गया। विवादों से घिरे रहने के कारण जदयू वे से अलग हो गए। अभी राजद में हैं।एनके सिंह और पवन कुमार वर्मा जैसे अकादमिक और प्रशासनिक क्षेत्र के दिग्गज भी राज्यसभा कार्यकाल तक ही जदयू से जुड़ कर रह पाए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी लोग न सिर्फ जदयू से अलग हुए, बल्कि नीतीश कुमार के राजनीतिक विरोधी भी हो गए।
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