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Lok Sabha Election 2024 : बिहार में निषाद वोट की खींचतान, RJD क्या बढ़ा देगी JDU और BJP की टेंशन?

Nishad Voters In Bihar बिहार में निषाद समाज के मतदाताओं को लेकर खींचतान तय है। चुनाव प्रचार की गति बढ़ने के साथ-साथ यह सतह पर आती दिख सकती है। बहरहाल राष्ट्रीय जनता दल के कोटे से सीटें मिलने के बाद महागठबंधन का हिस्सा बने वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने तेजस्वी यादव के साथ मिलकर प्रचार तेज कर दिया है।

By Sunil Raj Edited By: Yogesh Sahu Updated: Wed, 10 Apr 2024 02:34 PM (IST)
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Lok Sabha Election 2024 : बिहार में निषाद वोट की खींचतान, RJD क्या बढ़ा देगी JDU और BJP की टेंशन?
सुनील राज, पटना। बिहार की राजनीति में मुकेश सहनी अब अपरिचित नाम नहीं। भाजपा के साथ अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करने के बाद अपनी पार्टी बनाने वाले सहनी महज आठ से नौ साल की मेहनत में निषाद आरक्षण की मांग के बूते 2024 के लोकसभा चुनाव में तीन सीटें प्राप्त करने में सफल हो गए हैं।

राष्ट्रीय जनता दल ने मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी से समझौता करते हुए उसे तीन सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका दिया है। राजद ने अपने कोटे की तीन सीटें सहनी को दी हैं।

असल में बिहार में निषाद वोट को लेकर खींचतान कोई नई नहीं है। भाजपा हो जदयू या फिर राजद सभी सहनी वोट को अपने पाले में करने की जुगत हर चुनाव में लगाते रहे हैं।

भाजपा जहां हरि सहनी को आगे कर निषाद वोट को अपने पाले में करना चाहती है तो जदयू मदनी सहनी के नाम पर निषाद वोट को लुभाने का प्रयास कर रहा है।

2020 के विधानसभा चुनावों के दौरान भी राजद ने सहनी को आगे कर चुनाव मैदान में उतरने का निर्णय लिया था, लेकिन सीटों के तालमेल की वजह से बात नहीं बनी और सहनी राजद पर पीठ में छुरा मारने का आरोप लगाकर अलग हो गए थे।

राष्ट्रीय जनता दल की नजर निषाद वोट पर

महागठबंधन में सहयोगी दलों के साथ सीट बंटने के बाद राजद ने मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी के साथ समझौता तो किया ही उसे अपने कोटे की तीन सीटें भी तोहफे में दीं। बिहार में मुकेश सहनी की पार्टी मोतिहारी (पूर्वी चंपारण), गोपालगंज और झंझारपुर से चुनाव लड़ेगी।

सहनी से समझौते के बहाने राजद की नजर निषाद वोट पर है। दरअसल, बिहार में निषाद जाति बड़ा वोट बैंक मानी जाती है। इनकी आबादी पासवान समेत दूसरी कई जातियों से काफी ज्यादा है।

राजद को पता है कि निषाद वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए मुकेश सहनी और उनकी पार्टी राजद के लिए तुरुप का पत्ता हो सकती है। वहीं, जदयू और भाजपा के उम्मीदवारों के लिए सिर का दर्द भी।

सात से आठ प्रतिशत आबादी का किया जा रहा है दावा

बिहार की राजनीति में सन आफ मल्लाह के नाम से अपने को प्रचारित करने वाले मुकेश सहनी शुरुआती दिनों से लेकर अब तक मल्लाहों की राजनीति करते रहे हैं।

वे उनके लिए अन्य राज्यों की भांति आरक्षण की मांग को अपना मुद्दा बनाकर अपनी पार्टी और खुद को स्थापित करने में जुटे हैं।

बिहार में निषादों में करीब दो दर्जन उप जातियां हैं और एक अनुमान के मुताबिक करीब सात से आठ प्रतिशत आबादी निषादों की है।

कहा जाता है कि उत्तर बिहार में जहां नदी की संख्या अधिक है, वहां निषाद वोट उम्मीदवार की हार-जीत का फैसला लिखते हैं।

इधर सहनी स्वयं दावा करते हैं कि बिहार में निषाद समुदाय के करीब 14-15 प्रतिशत वोट हैं। इस जाति का सर्वाधिक प्रभाव दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, वैशाली, खगड़िया जैसे क्षेत्रों में है।

खुद के साथ महागठबंधन के लिए वोट बढ़ाने की चुनौती

राजद ने जो तीन सीटें सहनी को दी हैं वे एनडीए का गढ़ मानी जाती हैं। बीते दो लोकसभा चुनाव से यहां एनडीए उम्मीदवारों की जीत होती रही है।

2019 में मोतिहारी की सीट रालोसपा ने लड़ी थी, जबकि राजद ने झंझारपुर और गोपालगंज। मोतिहारी से राधा मोहन सिंह के खिलाफ राष्ट्रीय लोक समता पार्टी उम्मीदवार आकाश कुमार सिंह चुनाव लड़े, जबकि झंझारपुर से जदयू के रामप्रीत मंडल के खिलाफ राजद के गुलाब यादव मैदान में थे।

गोपालगंज लोकसभा सीट से डा. आलोक कुमार सुमन के खिलाफ राजद के सुरेंद्र राम चुनाव लड़े थे। परंतु राजद यह सीटें जीत नहीं पाया।

यदि सहनी निषाद वोट के जरिये तीन सीटों के अलावा निषाद बहुल क्षेत्रों में राजद की जीत का कारण बनते हैं राजनीति में उनका कद और बड़ा हो जाएगा।

देखना यह होगा कि महागठबंधन की छतरी तले तीन सीटों पर सहनी करामात दिखाकर नई कहानी लिखने में सफल होते हैं या नहीं।

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