हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति ले रहा अपनी जान, सबसे ज्यादा आत्महत्या कर रहे इस आयु के लोग; जानिए कारण
Bihar News जीवन बहती नदी है जिसमें हर थोड़ी दूर पर एक नया सुंदर घाट मिलना तय है। फिर भी हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि विश्व में हर वर्ष करीब सात लाख लोग अपनी जान दे देते हैं। अन्यों के मुकाबले हमारे देश में तो यह संख्या काफी अधिक है।
जागरण संवाददाता, पटना : दुनिया में हर वर्ष करीब सात लाख लोग आत्महत्या करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है, जबकि 20 से 25 गुना लोग इसके लिए प्रयास करते हैं।
सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के कारण भारत में यह संख्या सर्वाधिक करीब सवा लाख प्रतिवर्ष है। अनुमान के अनुसार, हर वर्ष प्रति एक लाख लोगों में से 12 लोग आत्महत्या करते हैं।
इसमें भी सबसे अधिक संख्या 15 से 24 वर्ष आयुवर्ग की है। इसका मुख्य कारण इंटरनेट, शैक्षणिक दबाव, कामकाजी जीवन में असंतुलन व बिगड़ते संबंधों से उपजीं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं हैं।
आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति की रोकथाम के लिए उपेक्षित मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए स्कूलों में इसकी पढ़ाई पर जोर दिया गया है। राष्ट्रीय स्तर पर इसके लिए एक समिति बनाई गई है जो 2030 तक आत्महत्या में 10 प्रतिशत कमी लाने के लिए उपाय सुझाएगी।
ये बातें एम्स पटना में आत्महत्या रोकथाम व जागरूकता सप्ताह पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रमों के समापन समारोह में शनिवार को मनोचिकित्सा के विभागाध्यक्ष प्रो. डा. पंकज कुमार ने कहीं।
डॉ. जीके पाल ने बताए खुद व दूसरों को तनावमुक्त करने के तरीके
एम्स के कार्यकारी निदेशक डॉ. जीके पाल ने आत्महत्या के बहुआयामी जोखिम कारकों व मानसिक स्वास्थ्य पर छात्रों से बातचीत की। उन्होंने पारंपरिक योगाभ्यास, आधुनिक खेल और शारीरिक व्यायाम से व्यवहार व जीवनशैली में बदलाव लाकर खुद व दूसरों को तनावमुक्त करने के तरीके बताए।
डीन स्टूडेंट्स अफेयर्स डॉ. पूनम भदानी ने प्राथमिक स्तर पर विभिन्न मानसिक और भावनात्मक समस्याओं को रोकने के लिए युवाओं के लिए अच्छे संचार और बुनियादी जीवनकौशल के प्रशिक्षण पर जोर दिया।
चिकित्साधीक्षक डॉ. सीएम सिंह ने मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में छात्रों व कर्मचारियों को व्यक्तिगत और भावनात्मक संकट से निपटने के लिए परिसर में वेलनेस सेंटर स्थापित करने का प्रस्ताव दिया।
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कार्यस्थल पर मैत्रीपूर्ण वातावरण जरूरी
डीन परीक्षा डॉ. अनूप कुमार ने स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में पेशेवर मदद के लिए शीघ्र संचार की जरूरतों पर बल दिया। चिकित्सा शिक्षा के विभागाध्यक्ष डॉ. रविकीर्ति ने आत्महत्या के जोखिम कारकों को कम करने, बाहर निकलने के महत्व और कार्यस्थल पर अच्छे मैत्रीपूर्ण वातावरण बनाने पर जोर दिया।
ऐसे व्यवहार सामने आने पर हो जाएं सचेत
आत्महत्या की रोकथाम में अपने करीब लोग सबसे प्रभावी साबित होते हैं। उन्हें अपनों या आसपास के लोगों के व्यवहार में आए अचानक बदलाव को महसूस कर उसे सहायता की पुकार मानकर नैतिक समर्थन देना चाहिए।
यदि अचानक नींद न आए, भूख नहीं लगे, बातचीत नहीं कर गुमसुम रहे, मरने-मारने की बात करना, अपनी प्रिय वस्तुएं बांटने लगना, लोगों से माफी मांगना, हिसाब-किताब साफ करने की बात करने को आत्महत्या के शुरुआती लक्षण मानकर उनका ध्यान रखें।
उन्हें बाहर घुमाने, कुछ लिखने, रुचिकर कार्यों में लगाना, रूटीन बनाकर फिल्म दिखाने ले जाना, गाने सुनने, लिखने को प्रेरित करना, पौष्टिक आहार के साथ व्यायाम या खेलने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
यह आभास कराना चाहिए कि किसी परीक्षा या कार्य में असफलता का मतलब जीवन असफल होना नहीं है। जीवन बहती नदी है जिसमें हर थोड़ी दूर पर एक नया सुंदर घाट मिलना तय है।