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वकीलों की सेवाएं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत नहीं आती: सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस बेला त्रिवेदी एवं जस्टिस पंकज मिठल की खंडपीठ ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के 2007 के उस फैसले को पलट दिया जिसके तहत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (ओ) का दायरा वकीलों तक बढ़ा दिया गया था। निर्णय में कहा गया निस्संदेह वकील सेवा दे रहे हैं। वे फीस ले रहे हैं। यह व्यक्तिगत सेवा का अनुबंध नहीं है।

By Arun Ashesh Edited By: Rajat Mourya Updated: Tue, 14 May 2024 05:34 PM (IST)
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वकीलों की सेवाएं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत नहीं आती: सुप्रीम कोर्ट
राज्य ब्यूरो, पटना। Supreme Court On Lawyers सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण में कहा कि अधिवक्ताओं/वकीलों पर उपभोक्ता न्यायालय में सेवाओं में कमी के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है, क्योंकि उनके द्वारा दी जाने वाली सेवाएं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के दायरे में नहीं आती हैं।

जस्टिस बेला त्रिवेदी एवं जस्टिस पंकज मिठल की खंडपीठ ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के 2007 के उस फैसले को पलट दिया, जिसके तहत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (ओ) का दायरा वकीलों तक बढ़ा दिया गया था।

'निस्संदेह वकील सेवा दे रहे हैं और फीस ले रहे हैं...'

निर्णय में कहा गया, "निस्संदेह, वकील सेवा दे रहे हैं। वे फीस ले रहे हैं। यह व्यक्तिगत सेवा का अनुबंध नहीं है। इसलिए, यह मानने का कोई कारण नहीं है कि वे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं।"

इस मामले में बार काउंसिल ऑफ इंडिया का पक्ष बीसीआई अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा एवं श्रीगुरु कृष्ण कुमार ने रखा। न्यायालय ने उनके द्वारा प्रस्तुत तर्कों पर कहा कि पेशेवरों और व्यवसाय या व्यापार करने वाले व्यक्ति के बीच अंतर रखना महत्वपूर्ण है, कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का विधायी उद्देश्य निश्चित रूप से पेशेवरों को इसकी जांच से बाहर रखना है।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि "एक पेशेवर को उच्च स्तर की शिक्षा, कौशल और मानसिक श्रम की आवश्यकता होती है; और उसकी सफलता विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है जो उनके नियंत्रण से परे हैं, इसलिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत एक पेशेवर को व्यवसायियों के बराबर नहीं माना जा सकता है।"

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