Tejashwi Yadav: तेजस्वी यादव का भी चल जाता मैजिक! राहुल ने सारा टाइम तो 'यूपी के लड़के' को दे दिया
बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने महज 57 दिनों में 251 से अधिक ताबड़तोड़ चुनावी सभाएं कर डाली। उनकी जनसभाओं में भारी भीड़ भी उमड़ती दिखी लेकिन फिर भी राजद दो अंकों तक नहीं पहुंच पाई। विश्लेषकों की मानें तो तेजस्वी ने मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन उन्हें यूपी की तरह बिहार में राहुल गांधी (Rahul Gandhi in Bihar) का साथ नहीं मिला।
सुनील राज, पटना। बिहार के नेता प्रतिपक्ष की 57 दिनों में 251 से अधिक चुनावी सभाएं और सभाओं में रिकार्ड भीड़ भी तेजस्वी की पार्टी राजद को दो अंकों तक नहीं पहुंचा पाई।
विश्लेषक भी मानते हैं कि तेजस्वी ने मेहनत में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, लेकिन यदि उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में राहुल का साथ मिला होता तो तेजस्वी और चमक उठते। यह अलग बात है कि भले ही 2019 के लोकसभा चुनाव की अपेक्षाकृत उसकी सफलता दर में उछाल जरूर आई है।
राजनीति गलियारों में क्या है चर्चा?
राजनीति गलियारों में यह चर्चा आम है कि लोकसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव ने मेहनत भरपूर की। करीब महीने भर से कमर और रीढ़ की हड्डी के दर्द की अनदेखी कर वे लगातार चुनावी सभाएं करते दिखे।तीन अप्रैल से 30 मई के बीच राजद के प्रमुख नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने 251 से अधिक चुनावी सभाएं की। उनके मंचों पर एक नेता की उपस्थित लगातार रही वे थे मुकेश सहनी।
तेजस्वी को मिलता राहुल का साथ तो...
सहनी को छोड़कर घटक दलों का दूसरा कोई बड़ा नेता तेजस्वी के साथ नजर नहीं आया। राहुल गांधी की सभा में तेजस्वी ने मंच जरूर साझा किया। लेकिन, चर्चा है कि यदि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने तेजस्वी का बिहार में यूपी की तरह साथ दिया होता तो महागठबंधन का बिहार परिणाम कुछ और होता।टिकट बंटवारे में राजद की मर्जी ने बिगाड़ा खेल
इससे पहले टिकट बंटवारे में भी राष्ट्रीय जनता दल की ही मर्जी चली। बिहार की सबसे बड़ी पार्टी होने को आधार बनाकर उसने 40 लोकसभा सीटों में 26 अपने पास रखी। जिनमें से तीन सीटें अंतिम समय में वीआइपी को सौंप दी गई।
राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि वाम दलों को कुछ और सीटों पर लडने का मौका मिलता तो महागठबंधन को थोड़ा और फायदा होता।
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