पटना सिटी में 400 वर्ष प्राचीन है जल्ला का हनुमान मंदिर, रामनवमी पर आते हैं यहां दो लाख से ज्यादा श्रद्धालु
यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। प्रत्येक मंगल तथा शनिवार को श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। रामनवमी को दो लाख से अधिक भक्त पवनसुत के दरबार में अर्जी लगाते हैं । मगर पिछले वर्ष भी लॉकडाउन के कारण मंदिर में दर्शन नहीं हो सका था।
By Sumita JaiswalEdited By: Updated: Mon, 19 Apr 2021 05:59 PM (IST)
पटना सिटी, अनिल कुमार। पटना साहिब रेलवे स्टेशन से लगभग एक किलोमीटर दूर पुनपुन नदी की धारा के किनारे स्थित है जल्ला हनुमान मंदिर। इतिहास के अनुसार प्राचीन काल में मंदिर के दक्षिण एक नहर थी जो गंगा और पुनपुन को आपस में जोड़ती थी। अब पुनपुन कई किलोमीटर दक्षिण खिसक गई और गंगा की धारा इधर आती ही नहीं। पहले पानी से लबालब रहने के कारण ही क्षेत्र का नाम जल्ला पड़ा था। यहां नदी का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। कभी दो मड़ई में एक ओर विराजमान हनुमान जी तो दूसरी ओर सामने ही देवाधिदेव महादेव वाला यह मंदिर आज पक्के और भव्य इमारत में स्थित है। 17 वर्षो के दौरान मंदिर नए स्वरूप में दिख रहा है। मंदिर के चारों ओर विकास दिख रहा है। यह मंदिर श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना है।
15 करोड़ की लागत से हुआ जीर्णोद्धारलगभग 15 करोड़ के व्यय से निर्मित भव्य मंदिर मंदिर में न केवल पवनसुत हनुमान और देवाधिदेव महादेव विराजमान हैं बल्कि विध्न विनाशक गणेश जी और मां भगवती भी हैं। साथ में सजा है श्री राम दरबार व यज्ञ मंडप भी। मंदिर परिसर में शीशे की कारीगरी देखते बनती है। कोलकाता व पटना सिटी के एक दर्जन से अधिक कलाकारों ने रंग-बिरंगे शीशे में भगवान का आकर्षक स्वरूप दिया है। मात्र 17 वर्षो के अंदर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। बताया जाता है कि बाजार से कोई चंदा नहीं हुआ है।
संत की प्रेरणा से मंदिर के लिए दान दिया जमीन बताया जाता है कि वर्ष 1705 में इस सुनसान क्षेत्र में गुलालदास महाराज नामक एक संत अचानक प्रकट हुए और स्थानीय ठाकुरदीन तिवारी के पास पहुंचे। उनके श्रीमुख से निकला, "तिवारी, तुम्हारे बगीचे के नीचे दक्षिण की ओर गंगा बह रही है और उत्तर में विशाल वृक्ष लहरा रहा है। भविष्य पुराण के कथनानुसार यहां मंदिर स्थापना का उपक्रम दिखता है। इस कारण इस जमीन में कुछ हिस्सा महावीर मंदिर के लिए निकाल दो।' इतना सुनना था कि तिवारी ने उसी समय अपने आम्रकुंज में दस कठ्ठा जमीन अलग कर दिया और देवाधिदेव महादेव व महावीर जी के लिए आमने-सामने दो कोठरियां बना दी। किवदंति है कि गुलाबदास जी छह माह तक यहां रहे। इस दौरान यहां एक बड़ा यज्ञ भी किया। इसके बाद गुलालदास जी अचानक लुप्त हो गए।
1999 में संपत्ति को मंदिर निर्माण के लिए सौंप दिया समिति को पहले बेगमपुर का यह क्षेत्र पानी से लबालब भरा रहता था इसी वजह से इसे जल्ला के नाम से ही जाना जाता था। इसके पश्चात पंडित ठाकुरदीन तिवारी के वंशजों पंडित संकठादीन तिवारी, पंडित शंकरादीन तिवारी, पंडित मातादीन तिवारी, पंडित मदनमोहन तिवारी तथा पंडित रामावतार तिवारी द्वारा पूजा-अर्चना का कार्य निरंतर चलता रहा। 26 जनवरी 1997 को आचार्य किशोर कुणाल की मौजूदगी में जल्ला के ग्रामीणों ने इस मंदिर के उद्धार का निर्णय लिया। छठी पीढ़ी के पंडित रामावतार तिवारी ने 22 अगस्त 1999 को ग्रामीणवासियों की सभा में इस संपत्ति को पूर्णरूप से मंदिर के लिए बनी समिति के हवाले कर दिया।
प्रत्येक मंगल व शनिवार को उमड़ते हैं श्रद्धालु श्रद्धालुओं के सहयोग से जल्ला में करोड़ों की लागत से विशाल हनुमान मंदिर का निर्माण हुआ। हरेक मंगलवार व शनिवार को मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।संध्या आरती में दूर-दूर से मंदिर से श्रद्धालु आते हैं। बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद के संरक्षण में मंदिर का कामकाज होता है। मंदिर में स्थापित है देवी-देवताओं की भव्य प्रतिमा
जल्ला स्थित मंदिर प्रांगण में हनुमान जी की दक्षिणाभिमुख आदमकद प्रतिमा स्थापित है, जिनके दाहिने हाथ में संजीवनी बूटी का पहाड़ तथा बाएं हाथ में बज्र सुशोभित है। दाहिनी ओर श्री यंत्र है। हनुमानजी के ठीक सामने पूरब की ओर शिव मंदिर है, जिसमें काले पत्थर से निर्मित गौरीशंकर की मूर्ति स्थापित है। पांच वर्ष पूर्व यहां श्री राम दरबार, विध्न विनाशक गणेश जी और मां भगवती की मूर्तियां स्थापित की मूर्तियां स्थापित की गई है। देवाधिदेव महादेव को पूरी तरह चांदी से ढंका गया है। रामनवमी पर दो लाख से अधिक श्रद्धालु मंदिर में दर्शन करते हैं। पिछले वर्ष भी लॉकडाउन के कारण हनुमानजी का श्रद्धालु दर्शन नहीं कर सके। इस बार भी मंदिर का कपाट बंद रहने के कारण श्रद्धालु दर्शन से वंचित रहेगें।
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