Flashback: तब लालू यादव की आंखों की किरकिरी बन गए थे टीएन शेषन, जानें कारण
टीएन शेषन नहीं रहे। उन्होंने 1995 में बिहार से अपने चुनाव सुधार मुहिम की शुरुआत की थी। तब वे तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की आंखों की किरकिरी बन गए थे।
By Amit AlokEdited By: Updated: Tue, 12 Nov 2019 10:52 PM (IST)
टीएन शेषन ने बिहार से की थी चुनाव सुधार की शुरुआत
तत्कालीन सीएम लालू यादव की आंखों की बने किरकिरी चुनाव आयोग की शक्तियों से देश को करा दिया अवगत
बिहार में कई चरणों में कराए चुनाव, शांतिपूर्ण रहा मतदान चुनाव में और मजबूत बनकर उभरे मुख्यमंत्री लालू यादव
पटना [अमित आलोक]। भारत के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) टीएन शेषन (TN Seshan) नहीं रहे। रविवार को चेन्नई में 86 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। ये शेषन ही थे, जिन्होंने लोकतंत्र (Democracy) में चुनाव आयोग (Election Commission) की ताकत का अहसास कराया था। 12 दिसंबर 1990 से 11 दिसंबर 1996 तक मुख्य चुनाव आयुक्त रहे शेषन ने चुनाव सुधार की शुरुआत बिहार (Bihar) से की थी। वे बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री (Chief Minister) लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की आंखों की किरकिरी बन गए थे।
1995 में बिहार से चुनाव सुधार की शुरुआतटीएन शेषन ने अपने चुनाव सुधार अभियान की शुरुआत 1995 के बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) से की थी। उस दौर में बिहार का चुनाव बूथ लूट (Booth loot) व हिंसा (Violence) के लिए बदनाम था। शेषन ने स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव (Free and fair Election) कराने पर फोकस किया। उन्होंने इसके लिए सुरक्षा के व्यापक बंदोबस्त किए। साथ ही, पहली बार कई चरणों में मतदान (Voting in phases) कराने का फैसला किया।
पहली बार कई चरणों में कराए गए चुनाव1995 के विधानसभा चुनाव में लालू बिहार में दूसरी बार सत्ता पाने के लिए प्रयास कर रहे थे। विपक्षी दलों ने लालू पर चुनाव में अधिकारियों से मिलकर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया, जिसे शेषन ने गंभरता से लिया। उन्होंने स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव का कब्रिस्तान माने जाने वाले बिहार में उदाहरण पेश करने की ठानी। राज्य में बड़े पैमाने पर अर्द्धसैनिक बलों (Para Military Forces) की तैनाती की गई। पहली बार कई चरणों में चुनाव कराए गए। शेषण ने विभिन्न कारणों से उस विधानसभा चुनाव की तिथियों में चार बार परिवर्तन किया। इससे लालू प्रसाद यादव उन्हें अपनी जीत कर राह का सबसे बड़ा रोड़ा मानने लगे। कहना नहीं होगा कि लालू अपने ठेठ अंदाज में शेषन के आलोचक बन गए।
तब लालू के गुस्से के केंद्र में होते थे शेषण चुनाव के दौरान शेषन व लालू के बीच जो भी हुआ, उसकी कहानी पत्रकार संकर्षण ठाकुर (Sankarshan Thakur) ने अपनी किताब 'बंधु बिहारी' (The Brothers Bihari) में दी है। चुनाव के दौरान हर सुबह अपने आवास पर होने वाली अनौपचारिक बैठकों में लालू के गुस्से के केंद्र में शेषण ही होते थे। ऐसी ही एक बैठक में उन्होंने कहा था, ''शेषन पगला सांड (Mad Bull) जैसा कर रहा है। मालूम नहीं है कि हम रस्सा बांध के खटाल में बंद कर सकते हैं।''
गुस्से में खो बैठे आपा, फोन पर जमकर बरसे संकषर्ण ठाकुर लिखते हैं कि लालू यादव का गुस्सा तब चरम पर था, जब शेषन ने चुनाव को चौथी बार स्थगित कर दिया। तब लालू स्वयं कुछ-कुछ पगलाए सांड की तरह हो गए थे। लालू यादव बिहार के तत्कालीन मुख्य निर्वाचन अधिकारी आरजेएम पिल्लई को फोन कर उनपर जमकर बरसे। बोले, ''पिल्लई, हम तुम्हारा चीफ मिनिस्टर और तुम हमारा अफसर। ई शेषनवां कहां से बीच में टपकता रहता है? ...फैक्स भेजता है। ...सब फैक्स-वैक्स उड़ा देंगे, इलेक्शन हो जाने दो।"
कहते थे- भैंसिया पे चढ़ाकर गंगाजी में हेला देंगेसंकर्षण ठाकुर ने लिखा है कि लालू यादव उन दिनों शेषन को अपने अंदाज में कोसते रहते थे। कहते थे, ''शेषनवा को भैंसिया पे चढ़ाकर गंगाजी में हेला देंगे।'' चुनाव में पहले से मजबूत बनकर उभरे लालू खैर, बिहार विधानसभा का वह चुनाव सम्पन्न हुआ। चुनावी नतीजे लालू यादव के पक्ष में रहे। वे पहले की तुलना में अघिक मजबूती के साथ सत्ता में आए। चुनाव में बूथ लूट आदि नहीं हुई, लेकिन इसके लंबा खिंचने का फायदा लालू को ही हुआ। इससे उन्हें राज्य के छोटे से छोटे इलाके में अपनी बात पहुंचाने में आसानी हुई।
संकषर्ण ठाकुर की किताब में इसकी भी चर्चा है। वे लिखते हैं कि लालू सार्वजनिक तौर पर भले ही शेषण की आलोचना करते थे, लेकिन चुनाव के लंबा खिंचने से प्रसन्न भी थे। दिखाई चुनाव आयोग की वास्तविक शक्तिजो भी हो, ये शेषण ही थे, जिन्होंने चुनाव आयोग की वास्तविक शक्ति से परिचित कराया। साथ ही बूथ-लूट और चुनावी हिंसा की राकथाम में बड़ी भूमिका निभायी। बिहार के उपमुख्यमंत्री (Dy. CM) व भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरीय नेता सुशील मोदी (Sushil Modi) कहते हैं कि टीएन शेषन के चुनाव सुधार के जो कड़े व बड़े कदम उठाये, उससे बिहार में जंगलराज (Jungle Raj) के अंत की शुरुआत हुई। सुशील मोदी कहते हैं कि अगर शेषन न होते तो न चुनाव आयोग मजबूत होता, न बिहार में निष्पक्ष चुनाव हो पाते।
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