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यह है पनबिजली से चलने वाली देश की सबसे पुरानी तेल मिल, जानिए इसकी खूबियां...

औरंगाबाद के दाउदनगर में पनबिजली तकनीक पर चलने वाली सौ साल पुरानी आयल मिल आज भी चल रही है। इस तकनीक पर आधारित अब शायद ये देश की इकलौती मिल रह गयी है।

By Kajal KumariEdited By: Updated: Sun, 08 May 2016 11:23 PM (IST)

औरंगाबाद [सुभाष पांडेय]। उद्योग के मामले में बिहार की गिनती भले ही देश के पिछड़े राज्यों में होती हो, पर यह भी सच है कि देश के सबसे पुरानी तेल मिलों में से एक यहीं पर है। औरंगाबाद के दाउदनगर में पनबिजली तकनीक पर चलने वाली सौ साल पुरानी आयल मिल आज भी चल रही है। इस तकनीक पर आधारित अब शायद ये देश की इकलौती मिल रह गयी है।

सौ साल पहले हुई थी स्थापना

करीब सौ साल पहले शाहाबाद इलाके में इस तरह की चार आयल मिलें स्थापित हुईं थीं। औरंगाबाद के दाउदनगर के पास सिपहा में कारोबारी संगम साह ने 1913 में यह मिल लगायी थी। यह बात इसके नाम से भी साफ है। संगम साह रामचरण आयल एंड राइस मिल।

इसके बाद एक-एक कर रोहतास के नासरीगंज, गया और आरा में भी ऐसी मिलें खोली गईं। सिपहा और नासरीगंज की मिलें सोन नहर के किनारे पनबिजली तकनीक पर आधारित थीं। पर समय के साथ सिपहा को छोड़कर एक-एक कर अन्य मिलेंं बंद हो गईं।

सोन नहर के पानी से होता संचालन

तीन एकड़ जमीन में बनी यह मिल साल के सात-आठ महीने सोन नहर के पानी से चलती है। इसके लिए 75 हार्स पावर क्षमता का टरबाइन लगा है। जब नहर में पानी आना बंद हो जाता है, तब इसे डीजल से चलाया जाता है। इस आयल मिल में आठ कोल्हू हैं। आज भी सरसों की पेराई इसी कोल्हू से होती है।

मिल के प्रबंधक रास बिहारी प्रसाद ने बताया कि जून में सोन नहर में पानी आ जाने पर टरबाइन से ही मिल को चलाते हैं। नवंबर में एक महीने नहर में पानी की आपूर्ति बंद होने को छोड़ दें तो मार्च तक इसी से काम चलाते हैं। गर्मी के तीन चार महीने डीजल से कोल्हू चलाना पड़ता है।

रोजाना ढाई सौ लीटर तेल का उत्पादन

रास बिहारी प्रसाद बताते हैं आजकल स्पेलर वाली मिलों से ज्यादा तेल की पेराई होती है। इसमें कम समय में पेराई हो जाती है। कोल्हू से तेल पेराई में अधिक समय लगता है। 10 किलो की एक घानी सरसों की पेराई करने में डेढ़ से दो घंटे लग जाते हैं। इस मिल में आठ से 10 क्विंटल सरसों की प्रतिदिन पेराई होती है। दो ढाई सौ लीटर तेल रोजाना तैयार होता है।

तेल की अच्छी डिमांड

आधुनिक तकनीक के जमाने में पुरानी तकनीक से चलने वाली यह आयल मिल अगर चल रही है तो इसके पीछे कारण सिर्फ है इसके तेल की अच्छी डिमांड का होना। मिल गेट पर ही आकर लोग तेल खरीद ले जाते हैं। क्वालिटी बनी रहे, इसके लिए प्रबंधन राजस्थान और मध्यप्रदेश से सरसों मंगाता है।

प्रबंधक रास बिहार प्रसाद बताते हैं कि बाजार में मिलने वाला तेल तीन-चार महीने उपयोग नहीं करने पर खराब होने लगता है। पर कोल्हू से तैयार सरसों तेल साल भर रखने पर भी खराब नहीं होता। इसमें कड़वाहट भी बाजार में मिलने वाले तेल से ज्यादा होती है।

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