दहेज की कुरीति से दूर बिहार का यह आदिवासी समाज, यहां शादी कर रहे जोड़े को मिलता भगवान का दर्जा
बिहार के पश्चिम चंपारण में रहने वाले थारू समाज में दहेज रहित शादी होती है। यहां के लोग आधुनिकता के बीच अपनी परंपराओं से प्यार करते हैं। थारू समाज के बारे में जानिए इस खबर में।
By Amit AlokEdited By: Updated: Wed, 19 Feb 2020 10:19 PM (IST)
तूफानी चौधरी, पश्चिम चंपारण। बिहार में एक समाज ऐसा भी है जो शादी कर रहे जोड़े को भगवान (God) का दर्जा देता है। इसमें दहेज (Dowry) की कुरीति नहीं पायी जाती। हम बात कर रहे हैं पश्चिम चंपारण के थारू (Tharu) आदिवासियों (Tribe) की। आधुनिकता में वे किसी से कम नहीं, लेकिन सोच ऐसी कि ये कुरीतियों को इर्द-गिर्द नहीं फटकने देते। इस समाज में नारी सशक्तीकरण (Woman Empowerment) को देखना हो तो यह जान लीजिए कि शादी (Marriage) के लिए वर (Groom) पक्ष शादी का प्रस्ताव लेकर कन्या (Bride) के यहां जाता है। पसंद आने पर पांच रुपये और एक धोती के नेग पर शादी हो जाती है।
रिश्ता लेकर लड़की के घर जाते जाते लड़के वालेपश्चिम चंपारण के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (VTR) से लेकर भिखनाठोरी (Bhikhnathori) तक जंगल (Forest) के सीमांचल में करीब तीन लाख थारू आदिवासी निवास करते हैं। वे आज भी अपनी संस्कृति (Culture) बचाए हुए हैं। इस समाज में विवाह के लिए लड़की वालों की जगह लड़के वाले रिश्ता लेकर जाते हैं। विवाह तय कराने में गजुआ (अगुआ) की भूमिका अहम होती है। वे वर व वधू के जीजा या फूफा होते हैं।
केवल एक धोती व पांच रुपये में हो जाती शादी शादी की संपूर्ण तैयारी गजुआ-गजुआइन (Bride and Groom) के द्वारा की जाती है। उन्हें यह समुदाय भगवान (God) का दर्जा देता है। दहेज के नाम पर वर की पुजाई के समय कन्या पक्ष को सिर्फ एक धोती व पांच रुपये ही देने होते हैं। साथ ही आसपास के हर घर के लोग और नाते-रिश्तेदार (Relatives) सामान की जगह अनाज (Food Grains) गिफ्ट (Gift) करते हैं। इस समाज के बहुत से लोग पढ़-लिखकर आज डॉक्टर, इंजीनियर व अधिकारी बन चुके हैं। इसके बावजूद बिना दहेज के शादी करते हैं।
दहेज की कुप्रथा से दूर यह आदिवासी समुदायबिना दहेज शादी (Dowryless Marriage) करने वाले दोन गोबरहिया गांव निवासी डॉ. प्रेमनारायण काजी कहते हैं कि वे खुशनसीब हैं कि थारू समुदाय से आते हैं, जहां दहेज जैसी कुप्रथा नहीं है। डॉ. कृष्ण मोहन राय की पुत्री डॉ. अरुणा की शादी बेरई गांव निवासी डॉ. संजय से बिना दहेज हुई है।
अधिकांश आबादी शिक्षित, देशभर में दे रहे सेवा थारू जनजाति शिक्षा (Education) के प्रति जागरूक है। उनकी 70 फीसद आबादी पढ़ी-लिखी (Educated) है। इलाके के रहने वाले थारू जनजाति के 70 डॉक्टर (Doctor) और 200 इंजीनियर (Engineer) देशभर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। करीब आधा दर्जन डॉक्टर सरकारी नौकरी छोड़ हरनाटांड़ (Harnatand) में रहकर समाज सेवा कर रहे हैं। जनजाति के आधा दर्जन लोग विभिन्न विभागों में सरकारी अधिकारी (Government Officers) हैं। मोहना निवासी राकेश कुमार ने हाल में ही बीपीएससी (BPSC) के माध्यम से खाद्य व आपूर्ति विभाग में अधिकारी बने हैं। नौतनवां के राजेश गौरव पूर्वी चंपारण में जज हैं। दीपू महतो मद्य निषेध विभाग में दारोगा (SI) हैं।
कायम रखी पूर्वजों की बनाई संस्कृतिनारंगिया दरदरी के मुखिया (Mukhiya) बिहारी महतो व भारतीय थारू कल्याण महासंघ के अध्यक्ष दीपनारायण प्रसाद का कहना है कि वे पूर्वजों (Forefathers) की बनाई संस्कृति (Culture) कायम रखे हुए हैं। समाज का अगर कोई व्यक्ति दहेज की मांग करता तो उसे दंडित करने का नियम बना हुआ है। हालांकि, अभी तक इस तरह का कोई मामला सामने नहीं आया है।
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