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Uniform Civil Code: समान नागरिक संहिता पर चर्चा तेज, इससे क्या-क्या बदलेगा; जानें कोर्ट ने अब तक क्या कुछ कहा?

Uniform Civil Code समान नागरिक संहिता पर देश में एक बार फिर से चर्चा हो रही है। आखिर ये यूसीसी है क्या? इससे क्या कुछ बदल जाएगा? यह देश में कहां लागू है? कानून और कोर्ट ने अब तक इस पर क्या कहा है?

By Jagran NewsEdited By: Yogesh SahuUpdated: Sun, 18 Jun 2023 09:43 PM (IST)
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Uniform Civil Code: समान नागरिक संहिता पर चर्चा तेज, इससे क्या-क्या बदलेगा।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली/पटना। Uniform Civil Code: देश में समान नागरिक संहिता का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। कारण कि देश के 22वें विधि आयोग ने 14 जून को इस पर सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों के साथ विभिन्न हितधारकों से सुझाव मांगे हैं।

इससे पहले 21वें विधि आयोग ने भी समाज के सभी वर्गों पर भले ही उनका धर्म कुछ भी हो, समान नागरिक संहिता लागू करने की आवश्यकता को परखा था।

वहीं, साल 2018 में 21वें विधि आयोग ने 'पारिवारिक कानून में सुधार' शीर्षक से एक परामर्श पत्र भी प्रकाशित किया था।

हालांकि, 22वें विधि आयोग का कहना है कि चूंकि परामर्श पत्र जारी हुए तीन साल से अधिक समय हो गया है। ऐसे में इस विषय की प्रासंगिकता और महत्व पर विभिन्न अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए नए सिरे से विचार-विमर्श करना जरूरी है।

वहीं, इसके चर्चा में आने का दूसरा कारण बीती 14 जून को ही उत्तराखंड में आयोजित एक संवाद कार्यक्रम रहा। यह कार्यक्रम उत्तराखंड सरकार की ओर से यूसीसी का मसौदा तैयार करने के लिए गठित समिति की ओर से आयोजित किया गया था।

इधर, पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से रविवार को एक कार्यक्रम के बाद मीडिया कर्मियों ने इस संबंध सवाल किया तो वह इसे टाल गए। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि बहुत गर्मी है, इस पर बाद में चर्चा करेंगे।

बता दें कि बिहार में 23 जून को विपक्षी दलों की एकता और महागठबंधन की मजबूती के लिए बैठक आयोजित होनी है। इसके आयोजक नीतीश कुमार ही हैं, ऐसे में साफ है कि सीएम फिलहाल बैठक पर फोकस करना चाहते हैं।

इस पूरे घटनाक्रम के बीच, आइए समझते हैं कि यूसीसी क्या है, इससे क्या कुछ बदलेगा और कोर्ट ने अब तक क्या कुछ कहा है:

समान नागरिक संहिता क्या है?

सरल शब्दों में कहें तो UCC का अर्थ है एक कानून जो विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने, रखरखाव आदि जैसे मामलों में सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होगा। भारत में अपने सभी नागरिकों के लिए एक समान या 'आपराधिक संहिता' है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है।

यूसीसी से जुड़े संवैधानिक प्रावधान

भारतीय संविधान में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों से जुड़े अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि 'राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता (यूसीसी) सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।'

1985 में चर्चित शाह बानो मामले में शीर्ष अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 44 एक "मृत पत्र" के समान बताया और एक समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर जोर दिया था।

संविधान सभा ने UCC के बारे में क्या कहा था?

भारतीय संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बीआर अंबेडकर ने कहा था कि हमारे पास पूरे देश में एक समान और पूर्ण आपराधिक संहिता है, जो दंड संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में निहित है।

हमारे पास संपत्ति के हस्तांतरण का कानून है, जो संपत्ति और उससे जुड़े मामलों से संबंधित है और पूरे देश में लागू है। फिर नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट हैं: और मैं कई अधिनियमों का हवाला दे सकता हूं, जो यह साबित करेंगे कि इस देश में व्यावहारिक रूप से एक नागरिक संहिता है, इनके मूल तत्व एक समान हैं और पूरे देश में लागू हैं।

उन्होंने कहा कि सिविल कानून एकमात्र विवाह और उत्तराधिकार कानून का उल्लंघन करने के मामले में सक्षम नहीं हैं।

UCC के पक्ष में न्यायालय की ओर से आए महत्वपूर्ण निर्णय और टिप्पणी

शाह बानो केस: सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि एक सामान्य नागरिक संहिता परस्पर विरोधी विचारधाराओं वाले कानून के प्रति असमान वफादारी को हटाकर राष्ट्रीय एकीकरण में मदद करेगी।

सरला मुद्गल बनाम भारत संघ: इस मामले में शीर्ष अदालत ने कहा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1954 में संसद में समान नागरिक संहिता के बजाय हिंदू कोड बिल पेश करने का बचाव करते हुए कहा था, "मुझे नहीं लगता कि मेरे लिए इसे आगे बढ़ाने की कोशिश करने का भारत में परिपक्वता के लिहाज से यह सही समय है।

ऐसा प्रतीत होता है कि साल 1949 से अब तक 41 साल बाद भी शासक अनुच्छेद 44 को ठंडे बस्ते से वापस लेने के मूड में नहीं हैं।

इसमें कहा गया है कि सरकारें- जो आईं और चली गईं - अब तक सभी भारतीयों के लिए एकीकृत पर्सनल लॉ की दिशा में कोई भी प्रयास करने में विफल रही हैं। इसके पीछे के कारण बहुत ही स्पष्ट हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 को हिंदू कानून के रूप में कहीं अधिक संहिताबद्ध किया गया है।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम 1956 और हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 ने विभिन्न विचारधाराओं और शास्त्र कानूनों के आधार पर पारंपरिक हिंदू कानून को एक एकीकृत कोड में बदल दिया है।

जब 80 फीसदी से अधिक नागरिकों को पहले ही संहिताबद्ध व्यक्तिगत कानून के तहत लाया जा चुका है, तो भारत के सीमाक्षेत्र में सभी नागरिकों के लिए "समान नागरिक संहिता" की शुरूआत को स्थगित रखने का कोई औचित्य नहीं है।"

UCC के मामले में एक अपवाद है गोवा

गोवा एक ऐसा राज्य है, जहां उसके सभी नागरिकों के लिए यूसीसी पहले से लागू है।

गोवा के निवासियों से जुड़े 2019 के उत्तराधिकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों की चर्चा करने वाले भाग IV के अनुच्छेद 44 में संविधान के संस्थापकों ने आशा और अपेक्षा की थी कि राज्य भारत के सभी क्षेत्रों में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा, आज तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है।

हालांकि हिंदू कानूनों को वर्ष 1956 में संहिताबद्ध किया गया था, लेकिन इस न्यायालय के आग्रह के बावजूद देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है।

यदि यूसीसी लागू होगा तो क्या-क्या बड़े बदलाव होंगे?

  1. लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ा दी जाएगी, ताकि वह कम से कम ग्रेजुएट हो जाएं।
  2. ग्राम स्तर पर शादी के रजिस्ट्रेशन की सुविधा होगी। बगैर रजिस्ट्रेान के सरकारी सुविधा बंद हो जाएगी।
  3. पति-पत्नी दोनों को तलाक के समान आधार और अधिकार उपलब्ध होंगे। अभी पर्सनल लॉ बोर्ड में अलग-अलग कानून हैं।
  4. बहुविवाह पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी।
  5. उत्तराधिकार में लड़के-लड़की की बराबर की हिस्सेदारी (पर्सनल लॉ में लड़के का शेयर ज्यादा होता है) होगी।
  6. नौकरीपेशा बेटे की मौत पर पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में माता-पिता के भरण-पोषण की जिम्मेदारी भी शामिल होगी।
  7. पत्नी की मौत के बाद उसके अकेले माता-पिता का सहारा महिला का पति बनेगा।
  8. मुस्लिम महिलाओं को गोद लेने का हक मिलेगा, प्रक्रिया आसान कर दी जाएगी।
  9. हलाला और इद्दत पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी।
  10. लिव-इन रिलेशन का डिक्लेरेशन देना होगा।
  11. बच्चे के अनाथ होने पर गार्जियनशिप की प्रक्रिया आसानी की जाएगी।
  12. पति-पत्नी में झगड़े होने पर बच्चे की कस्टडी ग्रैंड पैरेंट्स (दादा-दादी या नाना-नानी) को दी जाएगी।
  13. जनसंख्या नियंत्रण पर भी बात होगी।
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