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बिहार : देश का पहला मेला, जहां 'लंगोट अर्पण' करने की है अनोखी परंपरा

बिहारशरीफ में महान संत बाबा मणि राम की समाधि देश का अकेला ऐसा स्थल है जहां लोग आकर लंगोट चढ़ाते हैं और मन्नतें मांगी जाती है। यहां बड़ी-बड़ी हस्तियों ने भी आकर लंगोट अर्पण किया है।

By Kajal KumariEdited By: Updated: Mon, 18 Jul 2016 08:01 PM (IST)
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पटना [वेब डेस्क]। बाबा की समाधि और अनोखा प्रचलन, यहां लोग फूल-प्रसाद नहीं चढ़ाते बल्कि लंगोट चढ़ाकर बाबा से मन्नतें मांगते हैं। बिहारशरीफ के शहर के अखाड़ा पर स्थित महान संत बाबा मणि राम की समाधि देश का अकेला ऐसा स्थल है जहां लोग आकर लंगोट चढ़ाते हैं और पूजा कर मन्नतें मांगी जाती है।

सूफी संतों की धरती कही जाने वाली बिहारशरीफ की धरती और यहां के बाबा मणिराम की समाधि काफी प्रसिद्ध है। लंगोट अर्पण मेले की खासियत यह है कि मेले की शुरुआत सबसे पहले जिला प्रशासन द्वारा लंगोट अर्पण कर की जाती है।

लंगोट अर्पण मेले की शुरुआत की कहानी

बाबा मणिराम अखाड़ा के बारे में कहा जाता है कि पटना में पदस्थापित अवकारी विभाग के अधिकारी कपिलदेव प्रसाद पुत्र प्राप्ति के लिए देश के कोने-कोने में मत्था टेक चुके थे। परंतु पुुत्र की प्राप्ति न हो पायी। बाबा की ख्याति सुनकर इन्होंने बाबा की समाधि पर जाकर घंटों याचना की। कहा जाता है कि उसी वर्ष उन्हें पुत्र की प्राप्ति हो गयी। इस खुशी में विद्धानों से मत लेकर गुरु पूर्णिमा के दिन लंगोट अर्पण की शुरुआत की। यह कार्य 6 जुलाई 1952 ई. में संपन्न हुआ। जिसमें शहर के कई अधिकारी मौजूद थे।

मन्नतें पूरी करते हैं बाबा

ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई मन्नत को बाबा जरूर पूरी करते हैं। यहां पूर्व राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर कई बड़ी हस्तियों ने आकर माथा टेका है। बाबा मणिराम के प्रताप का फल है कि यहां का साम्प्रदायिक सद्भाव हमेशा बना रहता है। इस वर्ष 19 जुलाई से लंगोट अर्पण मेला शुरू हो रहा है। जबकि एक दिन पहले से अखंड शुरू होगा।

गुरु पूर्णिमा से लगता है भव्य लंगोट मेला

वैसे तो यहां सालों भर लोग लंगोट अर्पण करने आते हैं लेकिन प्रत्येक साल आषाढ़ पूर्णिमा यानी गुरु पूर्णिमा से भव्य लंगोट अर्पण मेला शुरू होता है। पांच दिनों तक चलने वाले इस मेले में भारी भीड़ उमड़ती है। पूरे प्रदेश ही नहीं दूसरे राज्यों से भी लोग यहां लंगोट अर्पण करने आते हैं।1973 से ही बाबा की समाधि की सेवा कर रहे पुजारी आनंद मिश्रा ने बताया कि यह दर्शनीय स्थल मनोकामना मंदिर के रूप में भी प्रसिद्ध है।

बड़े-बड़े राजनेताओं ने लंगोट किया है अर्पण

यहां लंगोट अर्पण करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी, स्व. राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी सहित कई मंत्री और बड़े-बड़े नेता यहां लंगोट अर्पण कर चुके हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव सहित कई मुख्यमंत्री भी यहां आकर राज्य में अमन-चैन की दुआ मांग चुके हैं।

मेला को लेकर मुकम्मल है तैयारी

बाबा मणिराम अखाड़ा न्यास समिति के सचिव अमरकांत भारती ने बताया कि इस वर्ष शुरू हो रहे लंगोट अर्पण मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को किसी तरह की परेशानी न हो इसके लिए सारी तैयारियां पूरी कर ली गई है। न्यास द्वारा कोई कसर नहीं छोड़ा जा रहा है। वर्ष 2012 में अखंड ज्योति स्थापित की गई थी जो आज भी लगातार प्रज्जवलित है।

कौन थे संत मणिराम

बाबा मणिराम 1248 ई. में हरिद्वार से आए थे और शहर के दक्षिणी छोर पर स्थित पिसत्ता घाट जिसे आज बाबा मणिराम अखाड़ा के नाम से जाना जाता है पर डेरा डाला था। सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ उन्होंने स्वच्छ मन के लिए स्वच्छ तन जरूरी है का उपदेश दिया था। इसके लिए एक अखाड़ा बनवाया जो आज भी मौजूद है। लोग यहां मल्लयुद्ध करते थे। खुद बाबा भी बहुत बड़े मल्लयुद्ध योद्धा थे।

1300 ईस्वी में ली थी जीवित समाधि

सन 1300 ईस्वी में बाबा ने समाधि ली थी। बाद में इनके चार शिष्यों में से दो अयोध्या निवासी राजा प्रह्लाद सिंह और वीरभद्र सिंह तथा दो अन्य बिहारशरीफ के कल्लड़ मोदी और गूही खलीफा ने भी समाधि ली थी। यहां मां तारा मंदिर, सूर्य मंदिर तालाब और यज्ञशाला, शिवालय सहित प्राचीन मूर्तियां मौजूद है। यहां के शिवालय का महत्व इस कारण काफी है कि वहां एक ही मंदिर में एक साथ चार शिवलिंग स्थापित है। मांगलिक कार्यों लिए बाबा मणिराम अखाड़ा काफी प्रसिद्ध है।

लोटा, सोटा और लंगोटा लेकर आए थे बाबा

पुजारी आनंद मिश्रा ने बताया कि बाबा अपने साथ लोटा, सोटा और लंगोटा लेकर आये थे। स्वस्थ शरीर और स्वच्छ मन के लिए मल्लयुद्ध पर उनका जोर था। इस कारण लंगोट चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। देश में कहीं भी किसी भी मंदिर या समाधि पर लंगोट चढ़ाने की परंपरा नहीं है।

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