पटना का बैकठपुर धाम: यहां अद्भुत है शिवलिंग, एक साथ हैं शिव-पार्वती, जानिए
पटना जिले के बैकठपुर गांव में स्थित गौरीशंकर मंदिर अतिप्राचीन मंदिर है। यहां शिवलिंग के रूप में भगवान शिव के साथ माता पार्वती भी विराजमान हैं।
By Kajal KumariEdited By: Updated: Mon, 24 Jul 2017 11:25 PM (IST)
पटना [जेएनएन]। पटना जिले के बैकठपुर शिव मंदिर का एतिहासिक और पौराणिक महत्व है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां शिवलिंग रूप में भगवान शिव के साथ माता पार्वती भी विराजमान हैं। बैकठपुर गांव में स्थित प्राचीन और एतिहासिक शिवमंदिर को श्री गौरीशंकर बैकुण्ठधाम के नाम से भी जाना जाता है। इस प्राचीन मंदिर की महिमा अतीत के कई युगों से जुड़ी हुई है।
यहां शिवलिंग रूप में भगवान शिव के साथ माता पार्वती भी विराजमान हैं, इतना ही नहीं पूरे शिवलिंग पर 108 छोटे-छोटे शिवलिंग भी बने हुए हैं। यहां भगवान शिव और पार्वती एक साथ एक ही शिवलिंग रूप में विराजमान हैं। छोटे शिवलिंगों को रूद्र कहा जाता है और ऐसा माना जाता है कि बैकठपुर जैसा शिवलिंग पूरी दुनिया में कहीं और नहीं है।
रामायण में है बैकटपुर मंदिर की चर्चा
प्राचीनकाल में गंगा के तट पर बसा यह क्षेत्र बैकुंठ वन के नाम से जाना जाता था। आनंद रामायण में इस गांव की चर्चा बैकुंठा के रूप में हुई है। लंका विजय के बाद रावण को मारने से जो ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था, उस पाप से मुक्ति के लिए भगवान श्रीराम इस मंदिर में आए थे। यहां उन्होंने भगवान शंकर की पूजा की थी। कहा जाता है कि काफी साल पहले मंदिर के आसपास जंगल थे, जहां ऋषि-मुनि तप करते थे।
यह भी कहा जाता है कि यहां आने के लिए गंगा नदी के उस तरफ के एक गांव में श्रीरामचंद्र जी रात्रि विश्राम किया था, जिसके कारण कारण उस गांव का नाम राघवपुर पड़ा जो वर्तमान में वैशाली जिले के राघोपुर के नाम जाना जाता है।
यहां जरासंध को मिली थी असीम शक्तिइस मंदिर का इतिहास महाभारत के जरासंध से भी जुड़ा हुआ है। मान्यताओं के अनुसार जरासंध भगवान शंकर का बड़ा भक्त था। जरासंध रोज इस मंदिर में राजगृह से पूजा करने आता था। किंवदंतियों के अनुसार इसी बैकुण्ठ नाथ के आशीर्वाद से जरासंध को मारना असंभव था।
कहा जाता है कि जरासंध हमेशा अपनी बांह पर एक शिवलिंग की आकृति का ताबीज पहना करता था। भगवान शंकर का वरदान था कि जब तक उसके बांह पर शिवलिंग रहेगा तब तक उसे कोई हरा नही सकता है। कहते हैं कि जरासंध को पराजित करने के लिए श्रीकृष्ण ने छल से जरासंध की बांह पर बंधे शिवलिंग को गंगा में प्रवाहित करा दिया और तब उसे मारा गया। जरासंध की बांह पर बंधे शिवलिंग को जिस जगह पर फेंका गया उसे कौड़िया खाड़ का गया था।
यहीं फंसी थी मानसिंह की नाव
कहा जाता है कि अकबर के सेनापति रहे राजा मान सिंह जब जलमार्ग से बंगाल विद्रोह को खत्म करने सपरिवार रनियासराय जा रहे थे उसी वक्त राजा मान सिंह की नौका कौड़िया खाड़ में फंस गई।
काफी प्रयास के बाद भी जब राजा मानसिंह की नौका कौड़िया खाड़ से नहीं निकल सकी तो पूरी रात मानसिंह को सेना सहित वहीं डेरा डालना पड़ा। कहते हैं कि रात को ही राजामान सिंह को सपने में भगवान शंकर ने दर्शन दिया और अपने जीर्ण-शीर्ण मंदिर को फिर स्थापित करने को कहा। मान सिंह ने उसी रात मंदिर के जीर्णोद्धार का आदेश दिया और उसके बाद यात्रा शुरू की और बंगाल में उन्हें विजय प्राप्त हुई।
सीएम नीतीश कुमार भी हैं इस मंदिर के भक्त
पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व वाले इस मंदिर में सीएम नीतीश कुमार भी आते-रहते हैं। यही नहीं बैकटपुर मंदिर में पुरी के शंकराचार्य जगतगुरू निश्चलानद जी भी 2007 में आ चुके हैं। वैसे तो हर साल इस मंदिर में श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है लेकिन श्रावण माह में भोलेनाथ यहां आने वाले भक्तों की संख्या लाखों में पहुंच जाती है।
भक्तों की मंदिर पर है अगाध आस्था
भक्तों की इस मंदिर पर अगाध श्रद्धा बताती है कि सच्चे मन से बैकुंठधाम में भोले शंकर की जो पूजा करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। सावन माह में इस मंदिर में लाखों की संख्या में लोग जलाभिषेक करते हैं। पटना के कलेक्टेरिएट घाट फतुहा के त्रिवेणी कटैया घाट से भी हजारों की संख्या में लोग रविवार को जल उठा कर रात भर की यात्रा कर सोमवार को जल चढाते है।
काशी में विश्वनाथ और देवधर में बैद्यनाथ धाम के बाद इस मंदिर को बिहार का बाबाधाम कहा जाता है। चीनी यात्री फाह्यान ने यात्रा वृतांत में नालंदा दौरे के दौरान बैकठपुर मंदिर की चर्चा की है। अकबर का सेनापति राजामान सिंह ने इस मंदिर के जीर्णेद्धार कराया। वर्तमान जो स्वरूप देखा जा सकता है वह राजा मान सिंह द्धारा ही बनाया गया है।
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