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Vaishali Lok Sabha Seat: जातितंत्र में उलझी लोकतंत्र की जननी, वीणा देवी और मुन्ना शुक्ला ने लगाया पूरा दम!

Vaishali Lok Sabha Seat वैशाली की जनता विकास और रोजगार की बात तो करती है मगर जाति का चश्मा नहीं उतरता। वैशाली में पिछले दो चुनाव से राजपूत उम्मीदवार ही आमने-सामने रहे। इस बार मुन्ना शुक्ला के आने से भूमिहार उत्साहित दिख रहे और वैशाली के रास्ते मुजफ्फरपुर पर वापस कब्जा जमाने के मौके के रूप में हवा दे रहे।

By Rajat Kumar Edited By: Rajat Mourya Updated: Wed, 22 May 2024 04:52 PM (IST)
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जातितंत्र में उलझी लोकतंत्र की जननी, वीणा देवी और मुन्ना शुक्ला ने लगाया पूरा दम!
कुमार रजत, वैशाली। Vaishali Lok Sabha Election 2024 लोकतंत्र की जननी मानी जाने वाली वैशाली जातितंत्र में उलझी है। भूमिहार बनाम राजपूत की लड़ाई में मुद्दे पीछे हैं और जातियों की गोलबंदी आगे। लोजपा (रामविलास) की वीणा देवी लगातार दूसरी जीत की तलाश में हैं तो राजद ने इस बार लालगंज के पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला को उम्मीदवार बनाया है।

राजद को पारंपरिक यादव-मुस्लिम वोटरों के साथ भूमिहार वोट में बड़ी हिस्सेदारी मिलने की उम्मीद है। वहीं, वीणा राजपूत-पासवान वोटरों को तो साध रहीं मगर अन्य जातियों के वोटरों के लिए वह सीधे-सीधे भाजपा और नरेन्द्र मोदी के नाम के सहारे दिख रही हैं। लव-कुश के साथ यहां पिछड़ी जातियों के वोटर निर्णायक हो सकते हैं।

लड़ाई तगड़ी है और जीत की राह मुश्किल।

वैशाली की जनता विकास और रोजगार की बात तो करती है, मगर जाति का चश्मा नहीं उतरता। वैशाली में पिछले दो चुनाव से राजपूत उम्मीदवार ही आमने-सामने रहे। इस बार मुन्ना शुक्ला के आने से भूमिहार उत्साहित दिख रहे और वैशाली के रास्ते मुजफ्फरपुर पर वापस कब्जा जमाने के मौके के रूप में हवा दे रहे।

बीते विधानसभा चुनाव में जदयू की सीटों पर लोजपा के उम्मीदवार उतारने की बात से कुर्मी वोटर अंदर-अंदर नाराज हैं और दुविधा में दिख रहे। पिछड़ी-अतिपिछड़ी जातियों का वोटबैंक बड़ा है, मगर वह उस तरह मुखर नहीं। बदलाव की छटपटाहट तो दिखती है, मगर केंद्र में नरेन्द्र मोदी भी चाहिए।

वैशाली प्रखंड मुख्यालय के बाहर चुनावी चौपाल में जाति बनाम विकास की चर्चा हो रही। अभय कुमार कहते हैं, इस बार भूमिहार के लिए गोल्डेन चांस है, अब नहीं तो कभी नहीं। उमेश कुमार कहते हैं, मोदी जी जहां हैं ठीक हैं, मगर वैशाली की अपनी लड़ाई है। कमल छाप रहता तो सोचते मगर इस बार नए को मौका देना है। पास में ही वैशाली शांति स्तूप और ऐतिहासिक अभिषेक पुष्करणी सरोवर है। स्तूप की चारदीवारी टूटी है, तो पुष्करणी सरोवर जलकुंभी से पटा है।

स्थानीय संतोष कुमार सवाल करते हैं, बिहार में क्या नालंदा-राजगीर ही सबकुछ है। वैशाली को सिर्फ झूठा वादा मिला है। इस बार तो वैशाली महोत्सव तक नहीं हुआ। चुनाव तो कई बार हुए मगर आयोजन टलता नहीं था। यह भेदभाव नहीं चलेगा। पारू के सरैया कोठी बाजार में ललिता देवी अपनी बहू के साथ साड़ी खरीद रही हैं। कहती हैं, नीतीश-मोदी जी तो महिला को आगे बढ़ाए हैं, तो हम भी महिला को आगे बढ़ाएंगे।

मड़वन चौक पर भरी दोपहरी में चुनावी गपशप जारी है। युवाओं का दो गुट आमने-सामने है। संतोष कुमार कहते हैं, एनडीए को पिछली बार मौका दिए मगर सांसद का चेहरा तक नहीं देख पाए। सुधाकर गुप्ता टोकते हैं, सांसद का काम गांव-गांव घूमना है क्या? चिल्लाते रहिए, मोदी जी की सरकार बनने की गारंटी है। विक्रम कुमार कहते हैं, मगर रोजगार की गारंटी तो तेजस्वी यादव दे रहे। अमित शाह तो बोले थे कि सहारा का पैसा दिलवाएंगे, अभी तक हम इंतजार ही देख रहे।

सुरेंद्र राय कहते हैं, यादव एकजुट है। सरकार कोई बने, विपक्ष भी टाइट रहना चाहिए। बरूराज के मोतीपुर में कभी चीनी मिल थी मगर ढाई दशकों से ताला लटका है। इलाके में तीन-चार इथेनाल व अन्य प्लांट लगे हैं, मगर स्थानीय लोगों को उस स्तर पर रोजगार नहीं मिल पाया है। मोतीपुर से साहेबगंज जाने वाली सड़क में लछमिनिया चौक के पास पकौड़े की दुकान के बाहर मजमा लगा है। शिवजी साह कहते हैं, सड़क खराब है। कोई नेता नहीं आता है।

हियालाल ठाकुर कहते हैं, प्लांट तो बना मगर मजदूर गांव के बाहर से आते हैं। अवध सिंह कहते हैं, वीणा देवी की जगह मुन्ना शुक्ला लोजपा के टिकट पर रहते तो जीत जाते। कैंडिडेट ही गलत है, मगर मजबूरी में वोट जाएगा। युवा वोटर अजीत और राहुल कहते हैं, हमलोग कोई छाप नहीं जानते, मोदी जी को जानते हैं। शिवजी साह जातीय समीकरण समझाते हुए बताते हैं कि पासवान लोजपा के साथ है।

लीची का स्वाद फीका

कांटी के कोल्हुआ में लीची की तुड़ाई जारी है। बगान में करीब 50-60 महिलाओं-लड़कियों का झुंड लीची को तोड़ने और पेटियों में पैक करने में जुटा है। यह लीची की पहली खेप है, जो लखनऊ और मुंबई जाएगी। प्रमिला देवी, माला देवी, तिलिया देवी, फूलो देवी कहती हैं, 300 रुपया दिहाड़ी मिलती है। दो टाइम खाना और घर जाते समय 10 लीची फ्री। वोट के नाम पर कहती हैं, यहां तो लालटेन छाप चलता है।

लीची व्यापारी धर्मेंद्र चौबे कहते हैं, इस बार गर्मी से लीची जल गई है, महज 20 प्रतिशत उत्पादन है। लीची में सरकार, सांसद किसी की दिलचस्पी नहीं है। ट्रांसपोर्ट सुविधा बेहतर हो तो कमाई बढ़ेगी और लीची व्यवसाय भी।

...इसलिए कहते हैं लोकतंत्र की जननी

वैशाली को पहला गणराज्य माना जाता है। ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक, ईसा से 725 वर्ष पूर्व लिच्छवी गणतंत्र विकसित हुआ था, जिसे वज्जि संघ कहा जाता था। इसके शासक जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुने जाते थे। वहां उस समय छोटी-छोटी समितियां थीं, जो जनता के लिए नियम और नीतियां बनाती थीं। माना जाता है कि लोकतंत्र की प्रेरणा यहीं से मिली।

वैशाली लोकसभा सीट

वैशाली लोकसभा सीट में वैशाली विधानसभा के अलावा मुजफ्फरपुर के पांच विधानसभा क्षेत्र मीनापुर, कांटी, बरूराज, पारू और साहेबगंज हैं। इनमें भाजपा के पास तीन, राजद के पास दो और जदयू के पास एक विधानसभा सीट है। इस लोकसभा क्षेत्र में राजपूत, यादव और भूमिहार जाति के सर्वाधिक मतदाता हैं। पिछड़ों और दलितों की संख्या भी निर्णायक है।

पांच बार लगातार जीते थे रघुवंश बाबू

वैशाली लोकसभा सीट कभी राजद का गढ़ थी। राजद के कद्दावर नेता रघुवंश प्रसाद सिंह यहां 1996 से 2009 तक लगातार पांच बार सांसद चुने गए। लोजपा ने इस गढ़ में सेंधमारी की। लोजपा के टिकट पर वर्ष 2014 में रामाकिशोर सिंह तो पिछले चुनाव में वीणा देवी सांसद बनीं। इस बार वीणा देवी फिर से लोजपा (रामविलास) के टिकट पर किस्मत आजमा रही हैं।

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