Bihar Politics: 'पद को लेकर मेरे मन में न कोई ख्वाहिश है और न च्वॉइस', ...फिर क्यों कांग्रेस से खफा हैं Nitish Kumar ?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शनिवार को आईएनडीआईए के घटक दलों के साथ हुई वर्चुअल बैठक में कहा कि पद को लेकर मेरे मन में न कोई ख्वाहिश है और न च्वॉइस। बता दें कि नीतीश जिस समय राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने की शुरुआत कर रहे थे अपने लिए किसी पद के बारे में यही कहा था कि उन्हें किसी पद की आकांक्षा नहीं है।
राज्य ब्यूरो, पटना। "पद को लेकर मेरे मन में न कोई ख्वाहिश है और न च्वॉइस" मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यह भावना शनिवार को आईएनडीआईए के घटक दलों के साथ हुई वर्चुअल बैठक में भी जाहिर हुई।
नीतीश जिस समय राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने की शुरुआत कर रहे थे, अपने लिए किसी पद के बारे में यही कहा था कि उन्हें किसी पद की आकांक्षा नहीं है। छह महीने बाद जब उन्हें आईएनडीआईए का संयोजक बनने का प्रस्ताव शनिवार को मिला तो उन्होंने उसे विनम्रता से अस्वीकार कर दिया।
कांग्रेस की सुस्ती से नाराज हैं नीतीश!
राजनीतिक गलियारे में उनकी अस्वीकृति को गठबंधन और खासकर कांग्रेस की बेहद सुस्त गति से जोड़कर देखा जा रहा है। हालांकि, सूचना एवं जन संपर्क मंत्री संजय झा कहते हैं कि संयोजक पद के प्रस्ताव पर पार्टी में विचार किया जाएगा। हां, मुख्यमंत्री ने यह इच्छा प्रकट की कि कांग्रेस के नेता ही गठबंधन के चेयरपर्सन बनें।विरोधी दलों को एक साथ ले आये थे नीतीश
इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा विरोधी दलों को एक मंच पर लाने का विचार नीतीश कुमार के ही मन में आया था। वे पिछले साल मई से ही इस मुहिम में लगे। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं को एक मंच पर बिठाने का श्रेय उन्हीं को दिया गया।इनके अलावा भी कई परस्पर विरोधी विचारधारा के दलों को एक मंच पर लाने में भी उन्हें सफलता मिली। जून महीने में पहली बैठक नीतीश कुमार के आवास पर ही हुई। लेकिन, बंगलुरू की बैठक में उन्हें यह अहसास हो गया कि गठबंधन उनजून से उन्होंने एकता की पहल की थी।
कांग्रेस की सुस्ती पर कई बार नाराजगी प्रकट कर चुके हैं नीतीश
गठबंधन और खासकर कांग्रेस नेतृत्व की सुस्ती को लेकर उनकी अप्रसन्नता कई बार प्रकट हुई। तीन राज्यों-मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव की व्यस्तता के नाम पर कांग्रेस ने गठबंधन की बैठक में रूचि नहीं दिखाई। उसने दूसरे दलों को औपचारिकतावश भी पूछा नहीं। इन चुनावों में कांग्र्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच कटुता काफी बढ़ गई। वह आज तक समाप्त नहीं हुई।
नीतीश ने भाजपा के एक के मुकाबले विपक्ष का एक उम्मीदवार देने का सूत्र दिया था। गठबंधन के सभी दल इससे सहमत तो हुए, मगर इसे जमीन पर उतारने में कांग्रेस ने रूचि नहीं दिखाई। गठबंधन में शामिल दलों के नेताओं में अपने दम पर सरकार चलाने का सबसे बड़ा अनुभव नीतीश कुमार के पास है। उनके समर्थकों को भी यह अच्छा नहीं लग सकता था कि गठबंधन में नीतीश को दूसरे स्थान का पद प्रस्तावित किया जाए। खिन्नता का यह भी एक कारण है।
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