फूड वैन की संस्कृति अब महानगरों से होता हुआ पटना भी पहुंच गया है और सबसे खास बात यह है कि इसकी कमान महिलाओं ने थाम रखी है। इसी के साथ राजधानी की सड़कों पर ऐसी महिलाएं पूरे आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भरता का संदेश भी दे रही हैं। यहां लोगों को गर्मागर्म चाय फ्रेंच फ्राई से लेकर लिट्टी चोखे तक का भी स्वाद मिल जाता है।
सोनाली दुबे, पटना। व्यंग्य भरी मुस्कान में छिपे तानों को वे खूब समझती थीं, पर चुपचाप बढ़ती चली गईं अपनी राह पर। हुनर था, उसे स्वावलंबन का माध्यम बनाया। किसी पर आश्रित नहीं, स्वयं पर विश्वास। अब चार और लोगों को रोजगार दे रहीं ये महिलाएं इसी समाज की हैं, जिन्होंने हुनर को आर्थिकी में परिवर्तित करने का मंत्र सीख लिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस संदेश ने प्रेरणा दी, जिसमें स्वयं को रोजगार देने लायक बनाने की क्षमता उत्पन्न करने का संकल्प हो।
राजीव नगर में रूपम सिंह चला रहीं फूड वैन
यह फूड वैन संस्कृति है। महानगरों से होता हुआ पटना भी पहुंच गया, पर उसकी चाबी महिलाओं के हाथ में हो तो! राजधानी की सड़कों पर ऐसी महिलाएं पूरे आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भरता का संदेश भी दे रही हैं। इनकी कहानियों में चुनौतियां भी हैं, उससे लड़ने का साहस भी। राजीव नगर में रूपम सिंह फूड वैन चला रही हैं। यानी, गाड़ी पर ही रेस्टोरेंट।
वैन में मिल जाती है गर्मागर्म चाय से लेकर दूसरे आइटम
सीतामढ़ी के एक छोटे से गांव से पटना पहुंच साल भर पहले इसकी शुरुआत की। वे बताती हैं, मुख्य उद्देश्य था बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना। आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। शुरुआती दिनों में घर से बाहर निकलकर काम में थोड़ी झिझक जरूर हुई। सामाजिक परिवेश भी कुछ ऐसा ही है, पर अब वह दूर हो चुका है। इसी क्षेत्र में और आगे जाने की इच्छा है। अभी ठंड में गरमा-गरम काफी, चाय, फ्रेंच फ्राई आदि लोग खूब पसंद कर रहे हैं।
महिलाओं ने थामी फूड वैन की कमान
माधुरी वर्मा! ये भी बोरिंग रोड में फूड वैन चला रही हैं। कंकड़बाग से प्रतिदिन आती हैं। यूं कहें पति के सपने को पूरा कर रही हैं। फूड वैन का सपना पति ने देखा था। उनका निधन हो गया। उन्होंने निश्चय किया कि घर-परिवार पर आश्रित नहीं रहेंगी। रिश्तेदारों ने कहा भी कि महिला होकर सड़क पर यह सब कैसे करोगी, पर उन्होंने संकल्प ले लिया तो ले लिया। आज देसी खाने के तड़के से फूड वैन को सबसे अलग बना रखा है।
मोकामा की मूल निवासी प्रियंका सिंह, हालांकि इन्हें परिवार का अचछा सहयोग मिला। गुरुग्राम में थीं तो सोसाइटी फूड फेस्टिवल में अपने स्वादिष्ट लिट्टी चोखे एवं अन्य व्यंजन के लिए कालोनी में प्रसिद्ध थीं। वापस बिहार आने के बाद एनर्जी पार्क के पास अपने फूड वैन की शुरुआत की। इसमें उनके पति, ननद और परिवार ने खूब साथ दिया। वे कहती हैं कि कमियां निकालने वाले निकालते रहेंगे, पर उसे सकारात्मक रूप से लेते हुए उस पर काम करना जो सीख गया, उसके सपने जरूर पूरे होंगे।
प्रियंका का सपना है कि राजधानी से बाहर दूसरी जगहों पर इसे ले जाएं। एक और जोड़ी है मां-बेटी की। पहली बार कैमरा सदृश्य फूड वैन। इसे मीशा जैन चला रही हैं। वे कहती हैं कि यह सोच उनकी बेटी रोशनी का था। वह फोटोग्राफी में रुचि रखती है। इसी से प्रेरित होकर वैन को इसी तरह का आकार दिया। फूड वैन की अवधारणा तो विदेश की है, पर इसमें हमने स्वाद देसी मिट्टी का डाला है। राजधानी की सड़कों पर ये महिलाएं हुनर से स्वावलंबन का संदेश दे रही हैं।
यह भी पढ़ें: Bihar News: ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड में CBI ने नहीं पेश की डायरी, अब अगली सुनवाई एक फरवरी को
यह भी पढ़ें: Bihar News: रातोंरात तालाब गायब करनेवालों माफियाओं के खिलाफ एक्शन में DM, अधिकारियों को दिए सख्त कार्रवाई के निर्देश
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।