बिहार का 200 साल पुराना मंदिर... जहां पूजा करने वालों की पूरी होती है हर मन्नत, भर जाती है सूनी गोद
पूर्णिया में सुखसेना की जन्माष्टमी पूरे सीमांचल में प्रसिद्ध है। खास बात यह है कि इस मंदिर में निसंतान दंपतियों की सुनी कोख भर जाती है। लोगों में ऐसी आस्था है कि इस मंदिर में पूजा करने से कोख भर जाती है और निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है। वहीं मन की मुराद पूरी होने पर लोग भगवान कृष्ण को बांसुरी चढ़ाते हैं।
By Manoj KumarEdited By: Shashank ShekharUpdated: Wed, 06 Sep 2023 05:54 PM (IST)
बिनय सिंह, संवाद सूत्र, बीकोठी (पूर्णिया): पूर्णिया का सबसे बड़ा गांव सुखसेना की जन्माष्टमी पूरे सीमांचल में प्रसिद्ध है। खास यह है कि यहां निसंतान दंपतियों की भीड़ ज्यादा होती है।
लोगों में यह आस्था है कि यहां आने से कोख भर जाती है और निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है। इस आस्था ने एक अनूठे रिवाज को बढ़ावा दिया है। मन की मुराद पूरी होने पर लोग भगवान कृष्ण को मिठाई या फल के साथ उन्हें बांसुरी चढ़ाते हैं।
औसतन हर साल चार से पांच सौ सोने व चांदी के बांसुरी इस मंदिर में चढ़ाये जाते हैं। यह परंपरा मंदिर की स्थापना से ही है। ग्रामीण ने इसके बारे में बताया कि पूर्वजों से जो हो रहा है उसका निवर्हन कर रहे हैं।
दो सौ साल पुराना है श्रीकृष्ण मंदिर का इतिहास
जिले के बड़हरा कोठी प्रखंड मुख्यालय से तीन किलोमीटर की दूरी पर ब्राह्मण बाहुल्य गांव सुखसेना में स्थापित श्री कृष्ण मंदिर का इतिहास दो सौ साल पुराना है। इस मंदिर में खासकर महिला श्रद्धालुओं की भीड़ पूजा-अर्चना करने के लिए दूर-दूर से आती हैं।
मान्यता है कि यहां सच्चे मन से जो महिलाएं कोख भरने (संतान प्राप्ति) के लिए पूजा-अर्चना करती हैं, उनकी मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होती है। जिसकी इच्छा पूर्ण होती है वे कृष्ण मंदिर में जन्माष्टमी के मौके पर सोने, चांदी और बांस की मुरली चढ़ाते हैं। यह प्रथा यहां वर्षों पूर्व से चली आ रही है।
पिछले साल पांच सौ बांसुरी श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ायी गई थी। इसमें पांच सोने, तीन सौ चांदी और शेष बांस की बांसुरी शामिल थी। इस मंदिर में रोजाना पुरुष से अधिक महिला श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होती है।
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