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बिहार : सीमांचल की जैविक मछल‍ियां... गजब है स्‍वाद, स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक, आप भी चखें, महानगरों में बढ़ी डिमांड

बिहार के सीमांचल में मखाना के बाद सीमांचल से महानगरों तक पहुंचेगी जैविक मछली। प्रमंडल के भरगामा प्रखंड के एक किसान के प्रयोग को देखने दिल्ली से पहुंच चुकी है टीम। जल्द ही निकलने वाली है मछली की पहली खेप।

By Jagran NewsEdited By: Dilip Kumar shuklaUpdated: Thu, 10 Nov 2022 03:37 PM (IST)
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बिहार के सीमांचल में जैविक मछली : मत्स्य पालन का तकनीक जानने किसान पहुंचते हैं पैकपार।
प्रकाश वत्स, पूर्णिया। जैविक मखाना के बाद अब सीमांचल की जैविक मछली भी जल्द महानगरों तक पहुंचेगी। जल्द ही जैविक मछली की पहली खेप यहां निकलने वाली है। पूर्णिया प्रमंडल के अररिया जिला स्थित भरगामा प्रखंड के पैकपार निवासी किसान प्रभात कुमार सिंह मुन्ना ने इसका उत्पादन शुरू किया है। उनके इस प्रयोग को देखने दिल्ली व पटना से भी विभागीय टीम पहुंच चुकी है और अब उन्हीं के तालाब के निकट राज्य सरकार की ओर से मत्स्य पालन प्रशिक्षण केंद्र का निर्माण भी हो रहा है।

तमिलनाडु व बांग्लादेश में ले चुके हैं प्रशिक्षण

किसान प्रभात कुमार स‍िंह मुन्ना जैविक मछली उत्पादन का यह प्रयोग शुरु करने से पूर्व तमिलनाडु के साथ-साथ बांग्लादेश में भी प्रशिक्षण ले चुके हैं। तकरीबन 26 एकड़ के तालाब में मछली उत्पादन व मछली बीज उत्पादन वे कर रहे हैं। इसमें एक साल पूर्व उन्होंने तकरीबन दो एकड़ के तालाब में जैविक मछली का उत्पादन शुरु किया है। मछलियों की पहली खेप एक-दो माह में ही निकलने वाली है।

अनाज व खल्ली के सहारे कर रहे मछली पालन

किसान प्रभात सिंह के मुताबिक अमेरिकन रेहू व कतला समेत कई अन्य वेरायटी के मछली का उत्पादन वे जैविक विधि से कर रहे हैं। इन मछलियों को भोजन के रुप में सरसों की खल्ली के साथ-साथ उबाला हुआ मक्का, गेहूं व धान आदि दिया जाता है। यूरिया अथवा फास्फेट आदि का उपयोग इसमें नहीं किया जाता है। उन्होंने बताया कि केमिकल उपयोग वाले मछली के विपरीत जैविक विधि पालन में मछली के ग्रोथ में मामूली अंतर रहता है। सामान्य पालन में जहां एक साल में मछली तैयार हो जाती है, वहीं जैविक विधि में 13 से 14 माह का समय लगता है।

महानगरों में है ज्यादा डिमांड, ज्यादा मिलती है कीमत

किसान प्रभात सिंह मुन्ना के मुताबिक जैविक विधि से उत्पादित मछली की डिमांड विशेषकर दिल्ली, कोलकाता, पटना के साथ-साथ अन्य नगरों व महानगरों में ही विशेष रुप से होती है। इस तरह की मछली की कीमत आम मछली से कुछ ज्यादा मिलती है। स्वास्थ्य के लिए भी यह सर्वोत्तम मानी जाती है। इसके लिए व्यापारी खुद यहां पहुंचने लगे हैं।

बीज उत्पादन का बन चुका है बड़ा केंद्र

पैकपार अब विभिन्न मछलियों के बीज उत्पादन का भी बड़ा केंद्र बन चुका है। किसान प्रभात ङ्क्षसह मुन्ना ने गत दो साल से बीज उत्पादन शुरु किया और अब यहां उत्पादित बीज सहरसा, सुपौल, पूर्णिया, मधेपुरा आदि जिलों में जाने लगा है। बता दें कि पूर्व में उत्तर बिहार के किसान मछली बीज के लिए पूरी तरह पश्चिम बंगाल पर निर्भर थे।

माछ, मखान व पान रही है मिथिलांचल की पहचान

माछ यानि मछली, मखान यानि मखाना व पान मिथिलांचल की पहचान रही है। यहां के लोग मखान व पान के साथ मछली के काफी शौकीन होते हैं। साथ ही मछली यहां की संस्कृति का हिस्सा भी बना हुआ है। नदियों के संजाल वाले इस इलाके में मत्स्य उत्पादन जीविका का बड़ा माध्यम भी है।

पैकपार के किसान ने अनूठा प्रयोग किया है। जैविक मछली उत्पादन के साथ मछली बीज उत्पादन का कार्य भी उनके द्वारा किया जा रहा है। विभाग के स्तर से वहां प्रशिक्षण केंद्र का निर्माण भी कराया जा रहा है। आसपास के जिलों से किसान यहां भ्रमण पर पहुंचते हैं। किसान को विभाग के स्तर से हर संभव सहयोग दिया जा रहा है। - जिला मत्स्य पदाधिकारी, अररिया।

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