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Purnia News: 19 मई की काली रात को याद कर सिहर उठते हैं मझुवा के लोग, अगलगी के बाद बूढ़े और बच्‍चों को भी नहीं छोड़ा

पूर्णिया के मझुवा के लोग आज भी 19 मई की काली रात को याद कर सिहर उठते हैं। अगलगी के बाद उन लोगों ने महिला और बच्‍चों को भी नहीं छोड़ा। हर किसी के साथ बेरहमी से मारपीट की।

By Edited By: Updated: Mon, 24 May 2021 07:47 PM (IST)
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पूर्णिया के मझवा गांव में पसरा सन्‍नाटा। जागरण।
जासं, पूर्णिया। मझुवा में 19 मई की काली रात का खौफ आज भी पीड़ितों के चेहरे पर दर्ज है। रिटायर्ड चौकीदार नेवालाल की हत्या व धू-धू कर जलते आशियाने के उड़ते शोले का वह खौफनाक दृश्य आज भी वहां के अनुसूचित जाति के पीड़ित लोगों की आंखों में तैर रहे हैं। दहशत का माहौल ऐसा कि पुलिस फोर्स और मजिस्ट्रेट की बहाली के बाद भी पीड़ित कुछ बताने से पहले चार बार दाएं-बाएं झांकते हैं। अपने पर बीती दहशत की कहानी भी बताने से वे काफी परहेज करते हैं। काफी कुरदने पर धीमी आवाज में फुसफुसाकर बात करते हैं। यानि यहां हर चेहरा खौफजदा है और जेहन में बस गई है दहशत।

अनहोनी की आशंका से सबों की जुबां पर अघोषित पहरा सा लग गया है। 24 मई को दोपहर जब जागरण टीम मझुवा पहुंची पीड़ितों को एक टेंट के नीचे खाना खिलाया जा रहा था। जिला प्रशासन ने घटना के बाद सभी पीड़ितों को दो टाइम खाना खिलाने की वहां व्यवस्था की है। वहीं से खाना खाकर लौट रहीं थीं घटना में मारे गए रिटायर्ड चौकीदार नेवालाल की पतोहु किचकिन देवी। बगल से गुजरीं तो नाम पूछ लिया, काफी सहमते हुए अपना परिचय बताईं। फिर सुरजापुरी भाषा में कुछ बोलीं जिसका अर्थ नहीं समझ सका। बगल वाले ने बताया कि वह कह रही थी, सब देखने तो आते हैं लेकिन कोई इंसाफ नहीं दिलाता। उन्हें सांत्वना दिया तो अपने साथ अपने ससुर के कब्र पर ले गईं।

घर के बगल में ही जहां दहशतगर्दों ने पीट-पीट कर उसके ससुर नेवालाल की दिनदहाड़े हत्या की थी, वहीं पर उनका कब्र बनाया है। बताईं उसने ही अपने पति और ससुर को घर के आगे टट्टी (परदा) लगाने के लिए कही थी। 18 मई को उनके पति और ससुर ने मिलकर टाट बनाया तथा दोपहर बाद करीब चार बजे उसे लगाने के लिए वहां खंभा गाड़ रहे थे। लेकिन पास में रह रहे दबंग लोगों को यह रास नहीं आया। तभी वे लोग करीब दर्जन की संख्या में लाठी, फरसा लेकर आए और उनके पति और ससुर को मारने लगे। पति तो किसी तरह अपनी जान बचाने में सफल रहे लेकिन ससुर को लाठी, साइकिल की चेन, फरसा से उन लोगों ने इतना मारा कि वे सदा के लिए सो गए। पर दहशतगर्दों का इतना से ही मन नहीं भरा, उसका इरादा तो कुछ और था।

दरअसल, उन लोगों को यह रास नहीं आ रहा था कि उनके घर के रास्ते में भूखे, नंगे लोग व टूटी फूटी झोपड़ी रहे। वह उन्हें टाट की पैबंद की तरह खटकती थी। सड़क किनारे से उन्हें हटाने के लिए उन लोगों ने पहले ही प्ला¨नग की थी तथा कुछ गांव के लोगों के साथ बैठक कर रणनीति तैयार कर ली थी। उस दिन नेवालाल की मौत के बाद अनुसूचित जाति टोले के लोग गम में थे तथा सभी उनके बहु-बेटों को सांत्वाना दे रहे थे। इसी बीच रात के करीब 11 बने उन पर काल बनकर टूट पड़ं सैकड़ों लोग। कोई लाठी, तो कोई दबिया, रड तो कोई चेन लेकर चारों तरफ से उन लोगों को घेर लिया तथा मार-काट शुरू कर दिया। चारों तरफ चीख पुकार मच गयी।

जिसे जिधर रास्ता मिला भागने लगे। दहशतगर्दों ने पेट्रोल छिड़कर उनके घरों को आग के हवाले कर दिया। घरों में जो भी दाना-कपड़े वगैंरह थे सब जलकर खाक हो गए साथ ही जल गए उनके अरमान भी। आज भी उजड़े घर, जली झोपड़ी, आग में जले धान से उठ रही गंध और नेवालाल की कब्र पर चढ़ी कच्ची मिट्टी उस रात की दहशत की कहानी बयां कर रही है। किचकिन देवी की आंख के आंसू तो सूख गए हैं लेकिन आंखों में समाए दर्द और उस रात का जख्म आज भी ताजा हैं। उनकी आंखों को इंतजार है कि उनके जख्म पर मरहम कब लगेगा, कौन उन्हें इंसाफ दिलाएगा..।

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