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कामधेनू बस पड़ाव के लिए गिरती रही है लाशें..

पूर्णिया अंतरराजीय बस पड़ाव अप्रत्यक्ष रूप से बाहुबलियों व अपराधियों के लिए भी कामधेनू रहा है। यह पर्दे के पीछे से भारी-भरकम आमदनी का बड़ा खेल चलता है। टिकट बुकिग की गारंटी को लेकर कोई न कोई यहां स्वयंभू मेठ होता है और फिर बुकिग एजेंट के सहारे उनकी झोली में पैसा खुद ब खुद पहुंचता रहता है।

By JagranEdited By: Updated: Thu, 06 Jan 2022 08:17 PM (IST)
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कामधेनू बस पड़ाव के लिए गिरती रही है लाशें..

प्रकाश वत्स, पूर्णिया। पूर्णिया अंतरराजीय बस पड़ाव अप्रत्यक्ष रूप से बाहुबलियों व अपराधियों के लिए भी कामधेनू रहा है। यह पर्दे के पीछे से भारी-भरकम आमदनी का बड़ा खेल चलता है। टिकट बुकिग की गारंटी को लेकर कोई न कोई यहां स्वयंभू मेठ होता है और फिर बुकिग एजेंट के सहारे उनकी झोली में पैसा खुद ब खुद पहुंचता रहता है। इस स्थिति के चलते कामधेनू बस पड़ाव के लिए बंदूकें भी गरजती रही है और लाशें भी गिरती रही है। यह दौर नया नहीं है। यह दौर दो दशक पूर्व और तेज था। सुशासन में बहुत दिनों तक यह दौर पूरी तरह गुम रहा। हाल के पांच वर्षों से एक बार फिर उस दौर को दोहराने की कोशिश चल रही है।

गुरुवार को इसी कार्य से जुड़े नीरज कुमार झा की हत्या दिनदहाड़े गोली मार कर दी गई। इस वारदात के बाद लगाए जा रहे आरोप प्रत्यारोप से यहां का सियासी गलियारा भी गर्म हो गया। बहरहाल पुलिस की जांच में यह मामला भी बस पड़ाव से जुड़े विवाद की ओर बढ़ चुका है। पुलिस इस बिदु पर अपनी जांच आगे बढ़ा रही है। इसके अलावा अन्य संभावित कारणों पर पुलिस की नजर है, लेकिन मुख्य फोकस बस पड़ाव से जुड़े विवाद पर है। बता दें कि बस पड़ाव से जुड़े विवाद में हत्या की कड़ी यहां पहले से ही लंबी है। श्रीनगर के सिघिया के धीरेंद्र यादव की हत्या फिर लडडू सिंह, सिपाही टोला की हत्या जैसी वारदातें लोगों की जेहन में कैद है। इसी तरह चंदवा के अमरदीप सिंह, मधेपुरा के शैलेंद्र यादव, चंदवा के ही गोपाल सिंह व बंबू सिंह जैसे कई लोगों के नाम इस कड़ी में हैं। दरअसल ये तमाम हत्याएं बुकिग एजेंट के मेठ पद को लेकर ही हुई है। बता दें कि बस पड़ाव में यह व्यवस्था बनी हुई है कि कोई भी गाड़ी मालिक या उसके चालक अथवा कंडक्टर गाड़ी बुक नहीं करेंगे। इसकी बुकिग कोई न कोई एजेंट करेगा। एजेंट का कार्य करने वाले पांच दर्जन से अधिक लोग यहां सक्रिय हैं। इन लोगों द्वारा गाड़ी बुकिग चार्ज के रुप में तय प्रतिशत में कमीशन लेते हैं। यह फिलहाल 10 से 15 तक है। इसमें दो से तीन फीसदी मेठ के पास जाता है। इस एवज में कहीं भी विवाद हो जाने पर मेठ द्वारा उसे संरक्षण प्रदान किया जाता है। ऐसे में यह आमदनी का बढि़या जरिया होता है। इसपर कब्जे के लिए ही यहां पूर्व से बंदूकें गरजती रही है।

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