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बिहार में बेटा-बेटी के साथ मां भी दे रही परीक्षा, बेहद अनोखी है प्रतिमा कुमारी की ये कहानी

प्रतिमा की शादी 2003 में सुसाडी के उत्तम कुमार के साथ हुई थी। पति पूर्व सरपंच भी रह चुके हैं और सामाजिक सरोकार से जुड़े हैं। प्रतिमा पूछती हैं क्या शिक्षित होना गुनाह हैं। बेटी और बेटे के साथ परीक्षा देने में आखिर दिक्कत क्या है। क्या अपनी संतानों के साथ साथ मां नहीं पढ़ सकती? गांव में प्रतिमा कुमारी की खूब चर्चा होती है।

By Pramod Tagore Edited By: Rajat Mourya Updated: Mon, 05 Feb 2024 02:21 PM (IST)
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बिहार में बेटा-बेटी के साथ मां भी दे रही परीक्षा, बेहद अनोखी है प्रतिमा कुमारी की ये कहानी
प्रमोद टैगोर, संझौली (रोहतास)। बेटा-बेटी के साथ मां का भी परीक्षार्थी बन परीक्षा में शामिल होने का जज्बा उम्मीद और जीत की कहानी है। शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक सोच और खूबसूरत बदलाव का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है। यह किसी अद्भुत मिसाल से कम नहीं। रोहतास जिले में अभी स्नातक पार्ट एक और इंटरमीडिएट की परीक्षा चल रही है।

इन परीक्षाओं में एक मां भी अपने बेटे और बेटी के साथ शामिल होकर बेजोड़ सामाजिक मिसाल पेश कर रही हैं। मां, बेटी और बेटे की यह आकर्षक जोड़ी रोहतास जिले के संझौली प्रखंड की सुसाड़ी गांव की है। वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित स्नातक खंड एक की परीक्षा में सुसाडी के पूर्व सरपंच उत्तम कुमार की 18 साल की बेटी तनवी पटेल कॉलेज बिक्रमगंज परीक्षा केंद्र में शामिल है।

वहीं, इंटरमीडिएट की परीक्षा में तनवी की मां प्रतिमा कुमारी भी 17 वर्षीय बेटे रिषभ के साथ दे रहीं है। हालांकि मां बेटे का परीक्षा केंद्र और विषय अलग अलग हैं। मां इंटर कला की परीक्षा में उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय डिलियां (डेहरी ऑन सोन ) में परीक्षार्थी हैं, जबकि बेटा का परीक्षा केंद्र सासाराम के संत अन्ना विद्यालय है।

गांव में लोगों में इनकी खूब चर्चा है। प्रतिमा पूछती हैं, क्या शिक्षित होना गुनाह हैं। बेटी और बेटे के साथ परीक्षा देने में आखिर दिक्कत क्या है। क्या अपनी संतानों के साथ साथ मां नहीं पढ़ सकती? प्रतिमा की शादी 2003 में सुसाडी के उत्तम कुमार के साथ हुई थी। पति पूर्व सरपंच भी रह चुके हैं और सामाजिक सरोकार से जुड़े हैं।

22 साल बाद शुरू की पढ़ाई

पत्नी ने शादी से पूर्व 2000 में झारखंड के लालमटिया उच्च विद्यालय से मैट्रिक की पास की थी। गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों में पढ़ाई छूट गई। वित्तीय हालात भी अच्छी नहीं थी। तीन संतानों को पढ़ाने - लिखाने की जिम्मेदारियां भी कंधे पर आई। प्रतिमा को आगे पढ़ाई पूरी नही होने की बात हमेशा खलती। बड़ी बेटी ने मां के सपनों को फिर से पूरा करने की हिम्मत दी। बेटे और बेटी के कहने पर प्रतिमा ने ठान ली और अपने बच्चों के साथ पढ़ने लगी।

बीए में पढ़ते हुए बेटी ने मां को पढ़ाया। वह दोबारा पढ़ाई जारी रखने का श्रेय बच्चों के साथ अपने पति को भी देती हैं। उन्होंने कहा, मैं 22 साल बाद दोबारा कॉलेज जाने को लेकर काफी डरी हुई थी। पर कुछ दिनों बाद उन्हें अच्छा लगने लगा। बेटी कहती है कि भाई के साथ मां भी साथ साथ पढ़ी और आज हम दोनो भाई-बहन, मां के साथ साथ परीक्षा भी दे रहें हैं। प्रतिमा बताती हैं कि नौकरी के लिए अब तो उम्र भी नहीं बच्ची है, लेकिन पढ़े-लिखे होने का मान अलग है।

क्या कहते हैं एसडीएम?

मां, बेटी और बेटे की शिक्षा के क्षेत्र में यह जोड़ी समाज के लिए अनुकरणीय है। यह किसी क्रांति से कम नहीं। ऐसी महिलाएं ही समाज के लिए आदर्श बनती हैं। परिवार में शिक्षा को ले ऐसी जागरूकता बिक्रमगंज अनुमंडल के लिए अच्छी बात है। अन्य लोग भी इससे प्रेरणा के सकते हैं। - अनिल बसाक, एसडीएम, बिक्रमगंज

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