Bihar News: महाराणा प्रताप के लिए गाडोलिया लोहारों ने सबकुछ दिया था त्याग, आज ये काम करने के लिए हैं मजबूर
कबाड़ से रोजगार की प्रेरणा देने वाले गाड़ोलिया लोहार राजस्थान से आए हैं जो जिले के विभिन्न जगहों पर सड़क किनारे रेवटी लगा कृषि उपकरण बनाते हैं। उनका कहना है कि पूर्वज महाराणा प्रताप और उनकी सेना के लिए हथियार तैयार करते थे। जब तक स्थिति अनुकूल हुई तब तक समाज के हालात बदल चुके थे और वे अपना खोया हुआ रुतबा दोबारा हासिल नहीं कर सके।
By Pramod TagoreEdited By: Mohit TripathiUpdated: Tue, 19 Sep 2023 06:56 PM (IST)
प्रमोद टैगोर, संझौली (रोहतास): हाथों में चूड़ी, कानों में कुंडल, माथे पर बड़ी टिकुली, गले में मंगलसूत्र के साथ राजस्थानी पहनावा वाली महिलाएं जब हाथों में हथौड़ा लेकर तपते लोहे को पिटती हैं, तो राहगीर ठिठक जाते हैं।
ये महिलाएं कबाड़ से लाए गए लोहे को आकार दे कृषि औजार तैयार कर, धान के कटोरे वाले इस जिले में किसानों की समृद्धि का आधार तैयार कर रही हैं।गाड़ोलिया लोहार समाज की ये महिलाएं खूबसूरती के साथ लोहे को कृषि यंत्रों में ढाल देती हैं। कबाड़ से रोजगार की प्रेरणा देने वाले गाड़ोलिया लोहार राजस्थान से आए हैं, जो रोहतास जिले के विभिन्न जगहों पर सड़क किनारे रेवटी लगा कृषि उपकरण बनाते हैं।
पूर्वज बनाते थे राणा प्रताप के लिए हथियार
सड़क किनारे बनाए गए औजारों को बेचते गाडोलिया लोहार।
जब तक स्थिति अनुकूल हुई, तब तक समाज के हालात बदल चुके थे और वे अपना खोया हुआ रुतबा दोबारा हासिल नहीं कर सके। तब से सैकड़ों किलोमीटर दूर एक से दूसरे स्थान पर घूम घूमकर वे अपना हुनर बाद की पीढ़ियों को सौंपते रहे हैं।
इस काम में सर्वाधिक महिलाएं ही हैं। ये कुदाल, हंसिया, खुरपी, रामी, गहदल, गैतीं, कड़ाही, तावा, बेलन, चिमटा, चूल्हा, ताला, सिकड़, हथौड़ा, तलवार, भाला, खंजर, कुल्हाड़ी, आरी, छेनी, फरसा, चाकू बनाते हैं।
कच्चा माल यानि लोहा यहां के कबाड़ की दुकानों से खरीदते हैं। मिट्टी के चूल्हे और हीटिंग के लिए कोयला या गोबर के उपलों का उपयोग करते हैं।
लोहे को चूल्हे पर गर्म कर हथौड़े से पीटकर मनचाहा आकार में ढाल देते हैं। रोहतास जिले में करीब दो सौ से अधिक लोग सड़क के किनारे किसानों, बिल्डरों, राज मिस्त्रियों और अन्य कारीगरों के लिए उपकरण बनाते हैं।
इनके अनुसार, सूबे के विभिन्न हिस्सों में करीब आठ हजार लोग इस पेशे से जुड़े हैं। बुजुर्गों का कहना है कि पहले ये बैलगाड़ियों पर यहां आते थे और कृषि यंत्र बनाते थे। स्थानीय स्तर पर इस पेशे को छोड़ चुके लोगों के लिए गाड़ोलिया लोहार एक प्रेरणा हैं।
गाड़ोलिया लोहार की कहानी बेहद अजीब है। इस्पाती जवानों ने कसम खाई थी कि जब तक मेवाड़ और चित्तौड़ पर फिर से महाराणा प्रताप का राज नहीं हो जाता, तब तक वे अपने घर नहीं लौटेंगे। शताब्दियां बीतीं, पर इन्होंने प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी।
अतीत से जुड़े वचन को वह पिछले पांच सौ साल से निभाते हुए यायावर जिंदगी जी रहे हैं। उनकी कहानी हम लोहा तोड़ते हैं, आकाश ओढ़ते हैं .. जैसे संकल्प में बंधे अतीत को जोड़ती नजर आती है।
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गाड़ोलिया लोहार की महिलाएं रानी पद्मावती को अपना आदर्श मानती हैं। उनकी शौर्य व पराक्रम को याद कर हाथों में हथौड़ उठाती हैं व गर्म लोहे पर लगातार वार कर औजारों में ढाल देती हैं।
पाटन (कोटा) निवासी रंजीत लोहार की पत्नी पूनम व मंचा कोहरा निवासी शांतुन की पत्नी मंजू कहती हैं कि रानी पद्मावती के शौर्य को याद कर ही वे हथौड़ा उठाती हैं। काम करने से पहले रेवटी में रखी उनकी तस्वीर की पूजा करना नहीं भूलती।
जयपुर के पाटन गांव निवासी 70 वर्षीय डाली के अनुसार एक परिवार के लोग संयुक्त रूप से मिलजुल कर काम करते हैं, तो दो से तीन हजार की आमदनी हो जाती है।
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