पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर्यावरण और परिवेश के लिए खतरा
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कहते हैं कि जो बोवोगे, वही काटोगे। जिले में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से उत्पन्न परिस्थितियों में यह कहावत सटीक बैठती है। जिले में सड़कों और नहरों के किनारे लगे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हुई है। यह पर्यावरण और परिवेश के लिए घातक साबित हो रहा है। पेड़ों की अंतहीन कटाई ने जहां मानवीय जीवन को प्रभावित किया है, वहीं असंतुलित मौसम चक्र को भी जन्म दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार मानव जीवन के लिए वनों का संरक्षण जरुरी है। अगर वनों की कटाई यूं ही होती रही, तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी पर मानव जीवन दुश्वार हो जाएगा। साथ ही जानवरों व पक्षियों के अस्तित्व पर भी संकट के बादल छा जाएंगे। कभी सासाराम से ताराचंडी रोड में घनकी जामुन के नाम से जाना जाने वाला इलाका आज विरान हो गया है। कहते हैं कि इस पथ पर इतने घने वृक्ष थे, कि एक पेड़ से दूसरे पेड़ के बीच कभी धूप आती ही नहीं थी। लेकिन तस्करों ने जिले के ऐसे कई इलाकों को वृक्ष विहीन कर दिया है। एक-एक कर गायब हो रहे हाइवे किनारे के पेड़ :
जिले से गुजर रही नेशनल हाइवे व स्टेट हाइवे के साथ ही नहरों व नदी तटों से पेड़ गायब हो रहे हैं। सूत्रों की मानें तो इन पेड़ों को लकड़ी माफिया थोड़ा-थोड़ा कर किश्तों में काटते हैं। जिससे पेड़ तो खड़े रहते हैं, लेकिन धीरे-धीरे सूखते जाते हैं। अंत में रात में काटकर गिरा देते हैं।