Bihar: भीमबेटका जैसे दुर्लभ हैं कैमूर पहाड़ी के पाषाणकालीन शैलचित्र, बिहार सरकार की उपेक्षा की झेल रहे मार
खूबसूरत विंध्य पर्वत शृंखला ने पाषाण कालीन सभ्यता-संस्कृति को तब से अपने में समेट रखा है जब ये जन्म ले रही हैं। हालांकि दुख की बात यह है कि यह दुर्लभ धरोहर आज भी उपेक्षित है। कैमूर पहाड़ी की विभिन्न गुफाओं में दुर्लभ शैलचित्र भरे पड़े हैं। हालांकि पर्यटन का महत्वपूर्ण केंद्र बनने की झमता रखने वाली यह पहाड़ी बिहार सरकार की बेकदरी की मार झेल रही है।
By brajesh pathakEdited By: Mohit TripathiUpdated: Sun, 03 Dec 2023 12:31 AM (IST)
ब्रजेश पाठक, सासाराम (रोहतास)। खूबसूरत विंध्य पर्वत शृंखला ने पाषाण कालीन सभ्यता-संस्कृति को तब से अपने में समेट रखा है, जब ये जन्म ले रही हैं। बिहार के रोहतास जिले में कैमूर पहाड़ी की विभिन्न गुफाओं में दुर्लभ शैलचित्र (राक पेंटिंग) भरे पड़े हैं। इसकी महत्ता से अपरिचित स्थानीय लोग उसे खुरच रहे हैं। गुफाओं में ईंट के टुकड़ों से कहीं आड़ी-तिरछी लकीरें तो कहीं कुछ लिखा जा रहा है। सैकड़ों वर्ष पुरानी कलाकृतियां मिट रही हैं।
मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में इसी पर्वत शृंखला में भीमबेटका प्रसिद्ध है, जिससे कैमूर पहाड़ी की गुफाओं में बनाई गई कलाकृतियां भी मेल खाती हैं, पर इसे संरक्षित करने का जो प्रयास होना चाहिए, नहीं हो सका है।भीमबेटका मध्य पाषाणकालीन शैलचित्रों के कारण देश-विदेश के लोगों के लिए पर्यटन केंद्र बना हुआ है, जबकि कैमूर की गुफाएं प्रसिद्धि के मानचित्र पर अभी तक नहीं आ सकी हैं।
नव पाषाण काल के दो सौ से अधिक शैलचित्र
यहां दो सौ से अधिक शैलचित्र हैं, जिनके मध्य से लेकर नव पाषाण काल के होने का अनुमान है। इन शैलचित्रों में विभिन्न जानवरों, उत्सवों व क्रियाओं को प्रदर्शित किया गया है। ये चित्र पत्थर को पीस कर पतली कूची से बनाए गए हैं। इससे उस समय के चित्रकला कौशल की भी जानकारी मिलती है। साथ ही यह भी कि तब की सभ्यता किस तरह विकास की ओर आगे बढ़ रही थी।
क्या कहते हैं इतिहासकार ?
रोहतास के सांस्कृतिक व पुरातात्विक धरोहरों पर शोध कर चुके इतिहासकार डॉ. श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं कि कि उन्होंने यहां के कई शैलचित्रों की खोज की है। 15-20 वर्ष पूर्व काशी हिंदू विश्वविद्यालय के तत्कालीन प्राध्यापक व पुरातत्ववेत्ता प्रो. बीपी सिंह के साथ भी कई शैलचित्रों की खोज की गई, जिसका संबंध मध्य पाषाण से लेकर नव पाषाण काल तक के होने का अनुमान लगाया गया था।बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्राध्यापक रहे डॉ.बीपी सिंह, वर्तमान में प्राध्यापक डॉ. विकास कुमार सिंह द्वारा कराए गए उत्खनन में मिली कई सामग्रियां मिलीं। इससे यह तथ्य भी स्थापित हुआ कि विंध्य कैमूर शृंखला गंगा के मैदानी इलाकों की मानव सभ्यता के इतिहास के प्रमुख स्थलों के रूप में भी काफी महत्व रखता है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।