Rohtash News: कल के जमींदार आज हो गए खेतिहर मजदूर, रेत से ढक गई किस्मत
रोहतास जिले में सोन नदी के किनारे बसे कई गांवों के किसानों की हालत रेत की वजह से खराब हो गई है। पहले वे खेत के मालिक थे लेकिन अब मजदूर बन गए हैं। कई किसानों के खेत नदी में कट गए हैं फिर भी वे लगान भर रहे हैं पर उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिल रहा।
प्रेम कुमार पाठक,डेहरी ऑन सोन (रोहतास)। सोन के रेत से रोहतास के दर्जनभर से अधिक गांव के किसानों की किस्मत ढक गई है। पहले ये किसान खेत के मालिक थे अब खेतिहर मजदूर हो गए हैं। यह एक गांव का मामला नहीं, सोन तटीय क्षेत्र में बसे अधिकांश गांव की कमोबेश यही हाल है।
सोन नदी किनारे नौहट्टा प्रखंड के तियरा कला, नवाडीह, परछा, सिंहपुर व रोहतास प्रखंड के जमुआ, तुंबा, रसूलपुर गांव के दर्जनों किसान के खेत कटाव से सोन में समाहित हो गए, जिस पर राज्य सरकार बालू निकासी पर प्रतिबंध लगाए हुए है और खेत के स्वामी आज भी उसका राजस्व लगान देते हैं।
इसके बदले उन्हें ना मुआवजा मिलती है, ना ही खेत पर हक। बाल पंचाट भूमि मान उस पर खेती के लिए अंचल द्वारा रोक भी लगा दी गई है। ऐसी स्थिति में कल के खेतिहर आज के मजदूर बन गए हैं।
नदियां वरदान और अभिशाप दोनों रूप का प्रदर्शन करती हैं। ऐसा ही सोन नदी अपने तटीय क्षेत्र के किसानों के लिए भी कभी वरदान तो कभी अभिशाप बन जाया करती है। सोन नदी के जलस्तर बढ़ने के कारण सोन तटीय तीन दर्जन गावों के 25 वर्षों में एक हजार एकड़ से अधिक भूमि कट कर सोन नदी का हिस्सा बन गया।
कभी के जमींदार आज खेतिहर मजदूर हो गए है। कटाव का ज्यादा प्रभाव सोन नदी के ऊपरी भाग उत्तर प्रदेश से सटे क्षेत्र मधुकुपिया, तियरा कला, नवाडीह खुर्द, बांदू, बेलौंजा, सिंहपुर, जमुआ, नवाडीह, रसूलपुर, ढेलाबाद, तुंबा समेत तीन दर्जन गांवों में है, जहां प्लाट के प्लाट भूमि सोन में समाहित हो गए।
उस पर खेती करने वाले किसान भूमि सोन में समाहित हो जाने के कारण आज खेतिहर मजदूर बनकर रह गए हैं। ये 25 वर्ष पहले तक अपने खेत का मालिक बनकर खुद खेती करते और करवाते थे।
क्या कहते हैं किसान?
नवाडीह खुर्द गांव के किसान बचरु चंद्रवंशी, सुखाड़ी राम, मेघनाथ पासवान, गनौरी चौधरी, अरुण चौबे, जनार्दन चौबे, चांद चौबे आदि कहते हैं कि खाता संख्या 55, 60 के राजस्व ग्राम नवाडीह खुर्द में 30 एकड़ भूमि 10 किसानों के नाम खतियान में दर्ज है।
वहीं तियरा कला के विजय मिश्र, कृष्णा मिश्र के खाता 67 में 15 एकड़ भूमि का कटाव सोन नदी से हुआ है,जिसका राजस्व लगान आज भी किसान देते है, किंतु खेत का अता पता नहीं, वह सोन में समाहित हो गया।
इसे लेकर पूर्व में जिला पदाधिकारी व अंचलाधिकारी को आवेदन दिया गया था, किंतु स्थिति यथावत है। अधिकांश किसान अब दूसरे से मनी बटैया लेकर खेती करते हैं। खेत नहीं होने के कारण मेघनाथ पासवान, गनौरी समेत कई लोग दूसरे के खेत में काम करते हैं।
जब खेती का मौसम नहीं रहता है, तो अन्य प्रांतों में मजदूरी करने जाते हैं। यही नहीं नवाडीह खुर्द, तियरा कला व मधुकुपिया गांव के 500 एकड़ से अधिक भूमि पूर्व में सोन में समाहित हो गई, जिसका खाता संख्या 55, 60, 61 व 67 राजस्व मौजा नवाडीह खुर्द, तियरा कला है।
सिंहपुर गांव के रवि प्रकाश पांडेय की एक एकड़ जमीन जिसका राजस्व लगान देते हैं वह भी बाजू के ढेर तब्दील हो गया। कुछ का राजस्व लगान 1970 तक किसानों द्वारा दिया गया है, किंतु अब यह भूमि बाल पंचाट बिहार सरकार हो गई।
इस पर गांव के अन्य लोग कब्जा कर खेती करते है। रसूलपुर गांव के बैजनाथ सिंह, प्रदीप सिंह, दारोगा सिंह कुशवाहा, मधुकुपिया गांव के राम करण यादव समेत अनुमंडल के नौहट्टा, रोहतास, तिलौथू व डेहरी प्रखंड के 150 किसानों की भी यही वेदना है। लगान तो देते है, पर खेत पर कब्जा सोन नदी का है।
क्या कहते हैं अधिकारी
डेहरी के अनुमंडल पदाधिकारी नीलेश कुमार ने कहा कि किसानों द्वारा अगर इसकी लिखित शिकायत प्राप्त होती है, तो कटाव वाली भूमि के राजस्व माफी तथा मुआवजे के प्रावधान की जानकारी के लिए वरीय अधिकारी से लिखित मार्गदर्शन लिया जाएगा। अभी तक किसी किसान से इस प्रकार की शिकायत प्राप्त नहीं है। रही बात पंचाट भूमि की, तो वह अब सोन नदी के मध्य में है, इसलिए उस पर किसी का स्वामित्व नहीं होगा।
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