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त्रेतायुगीन है रोहतासगढ़ किला, सत्ता का भी रहा है केंद्र

कैमूर पहाड़ी पर स्थित रोहतासगढ़ किला त्रेता युग का माना जाता है। इसके इतिहास के संदर्भ में किला के मुख्यद्वार के पास दो बोर्ड लगे हुए हैं। उस पर लिखा हुआ है कि यह किला सत्य हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने बनवाया था। विभिन्न कालखंडों में यह किला आदिवासी राजा (खरवार उरांव चेर ) के अधीन रहा है। आदिवासी इस किले को शौर्य का प्रतीक भी मानते है। बाद में यह किला शेरशाह के अधीन हुआ। शेरशाह के बाद इस किले से ही अकबर के शासनकाल में बिहार और बंगाल के सूबेदार मानसिंह के समय में ने यहां से शासन सत्ता चलाई गई व यह सत्ता का केंद्र बना।

By JagranEdited By: Updated: Sun, 17 Apr 2022 11:21 PM (IST)
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त्रेतायुगीन है रोहतासगढ़ किला, सत्ता का भी रहा है केंद्र

सासाराम (रोहतास), ब्रजेश पाठक। कैमूर पहाड़ी पर स्थित रोहतासगढ़ किला त्रेता युग का माना जाता है। इसके इतिहास के संदर्भ में किला के मुख्यद्वार के पास दो बोर्ड लगे हुए हैं। उस पर लिखा हुआ है कि यह किला सत्य हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने बनवाया था। विभिन्न कालखंडों में यह किला आदिवासी राजा (खरवार, उरांव, चेर ) के अधीन रहा है। आदिवासी इस किले को शौर्य का प्रतीक भी मानते है। बाद में यह किला शेरशाह के अधीन हुआ। शेरशाह के बाद इस किले से ही अकबर के शासनकाल में बिहार और बंगाल के सूबेदार मानसिंह के समय में ने यहां से शासन सत्ता चलाई गई व यह सत्ता का केंद्र बना। यह किला आज इतिहासकारों के लिए रहस्यमय बना हुआ है। इस किले के बारे में कई किवदंतियां हैं, तो कई प्रमाणिक साक्षय। कैमूर पहाड़ी की शीर्ष पर स्थित यह किला आदिकाल से साहस, शक्ति व सर्वोच्चता के प्रतीक के रूप में खड़ा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के नियंत्रण में रहने के बाद भी इस किले को विश्व विरासत की सूची में शामिल कराने का प्रस्ताव अबतक नहीं भेजा जा सका है।

स्थानीय लोग जहां इस किले का निर्माण त्रेतायुगीन राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व का कराया गया मानते हैं। वहीं आदिवासी इसे अपनी मातृभूमि करार देते हैं। कुल 28 वर्गमील क्षेत्र में फैले इस किले में 83 दरवाजे हैं। ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार सातवीं सदी में बंगाल के शासक शशांक देव ने यहीं से अपना शासन चलाया था। उनका मुहर भी प्राप्त हुआ है। वहीं अकबर के शासन में राजा मान सिंह इसी किले से बिहार-बंगाल पर शासन चलाते थे। इसे प्रांतीय राजधानी घोषित किया था। रोहतास की सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास पर शोध कर चुके इतिहासकार डॉ. श्याम सुन्दर तिवारी कहते हैं कि यह जिला आदि काल में कारुष प्रदेश था। जिसका वर्णन ब्रह्मांड पुराण में भी आया है। रोहतास गढ़ के नाम पर ही इस क्षेत्र का नामकरण रोहतास होता रहा है। कभी भारत के बादशाह शाहजहां भी इस किले में अपनी बेगम के साथ रहे हैं। मुगल साम्राज्य से पूर्व भी 1494 ई. में दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी ने राजा शालिवाहन को चैनपुर व रोहतास का राज्य सौंपा था। इस किले की प्राचीनता व वैभव के बाद भी इसे विश्व विरासत की सूची में शामिल कराने का प्रस्ताव एएसआइ ने नहीं भेजा। जनप्रतिनिधि व अधिकारी भी कभी पहल नहीं किए।

इस बाबत रोहतास के जिलाधिकारी धमरर््द्र कुमार ने कहा कि रोहतासगढ़ किला को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए प्रशासन द्वारा कई कार्य किए जा रहे हैं। वहां रोपवे का निर्माण कार्य भी कराया जा रहा है ताकि पर्यटक आसानी से पहाड़ी पर स्थित इस किला तक पहुंच सकें। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए इस वर्ष से रोहतासगढ़ महोत्सव भी शुरू कराया गया है। यहां पर्यटक सुविधाओं को बढ़ाने के लिए कई कार्य किए जा रहे हैं।

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