सोनहर की पहाड़ी में छिपे हैं इतिहास के कई रहस्य
संजीव कुमार शिवसागर रोहतास। पुरातात्विक रूप से समृद्ध सोनहर पहाड़ी पर प्राचीन बसाव के अ
By JagranEdited By: Updated: Sun, 30 Aug 2020 05:06 PM (IST)
संजीव कुमार, शिवसागर : रोहतास। पुरातात्विक रूप से समृद्ध सोनहर पहाड़ी पर प्राचीन बसाव के अवशेष अब भी जहां -तहां बिखरे पड़े हैं। यहां मानव संस्कृति के विकास से जुड़े कई रहस्य छिपे हैं।
10 मीटर ऊंचा व एक हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में फैली पहाड़ी पर लाल, काला, धूसर, लाल और काला मृदभांड भी मिले हैं। मिट्टी के बर्तनों में हांड़ी, गगरी, कटोरा व कोठिला आदि के टुकड़े, पहाड़ी के ऊपर पूर्व मध्यकालीन स्तंभ व मूर्ति खुले आसमान के निचे बिखरे पड़े हैं। यह गांव प्राचीन सभ्यता का केंद्र रहा है। इस गांव में गहड़वाल राजा विजयचंद्र का ताम्रपत्र भी मिला है, जिसे विक्रम संवत 1223 के भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की नवीं तिथि सोमवार यानी पांच सितंबर 1166 को जारी किया गया था। यहां पहाड़ी की अगर खोदाई हो तो कई प्राचीन जानकारी इतिहासकारों को हासिल हो सकेगी। ग्रामीण बताते हैं कि शिवमंदिर में स्थापित बलुआ पत्थर की पूर्व मध्यकालीन नृत्यरत गणेश की मूर्ति स्थापित है। जिसकी लंबाई 36 इंच व चौड़ाई 25 इंच है। उसके समीप नंदी की भी उसी काल की एक मूर्ति स्थापित है। भगवान विष्णु की एक बलुआ पत्थर की मूर्ति मिली है, जिसके गले में वनमाला व कमर में करधनी अलंकृत है। पहाड़ी के ऊपर पूर्व मध्यकालीन स्तंभ व मूर्ति खुले आसमान के नीचे बिखरे हैं। गांव के पूरब व पश्चिम में स्थित मंदिर के भीतर और बाहर प्राचीन मूर्तियों का ढेर लगा है। जिनमें अधिकतर खंडित हैं। हालांकि यह पहाड़ी भी उपेक्षा की शिकार हो गई है। गहड़वाल वंश के शासन का गवाह है सोनहर : सोनहर का उल्लेख गहड़वाल राजा विजयचंद्र के ताम्रपत्र लेख में मिलता है। यह अभिलेख सोनहर के ग्रामीण राम खेलावन को खेत जोतते समय प्राप्त हुआ था, जिसे उनके पौत्र गरीबन महतो ने राष्ट्रीय संपत्ति समझकर 11 मार्च 1959 को पटना के तत्कालीन आयुक्त डॉ. श्रीधर वासुदेव को सौंप दिया। गहड़वालों द्वारा जारी किया गया जिले का पहला अभिलेख सोनहर का ताम्रपत्र है। यह अभिलेख गहड़वाल राजा विजयचंद्र का एक घोषणापत्र है। जिसे विक्रम संवत 1223 के भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की नवीं तिथि सोमवार यानी पांच सितंबर 1166 को जारी किया गया था। कहते हैं इतिहासकार : सोनहर में पूर्व मध्यकाल के अवशेष के रूप में मृदभांड व मंदिर के ध्वंशावशेष प्राप्त हुए हैं। कई ऐसी खंडित मूर्तियां भी मिली हैं, जिसकी पहचान नहीं हो पाई है। पूर्व में यहां से 43.2 सेंटीमीटर लंबा व 32 सेंटीमीटर चौड़ा तामपत्र मिला है। इसके सामने 26 व पीछे 10 पंक्तियां संस्कृत भाषा में अंकित हैं। पुरातात्विक ²ष्टिकोण से इस महत्वपूर्ण पहाड़ी की गोद में काफी प्राचीन रहस्य छिपे हैं, जिन्हें उत्खनन के बाद ही प्रकाश में लाया जा सकता है। डॉ. श्यामसुंदर तिवारी इतिहासकार एवं पूर्व शोध अन्वेषक
डॉ. केपी जायसवाल शोध संस्थान- पटना
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