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पहिए पर झूमती है जिदगी

सहरसा। साइकिल की सवारी भले ही स्टेटस सिबल के कारण बीते दिनों की बात बनती जा रही है

By JagranEdited By: Updated: Tue, 02 Jun 2020 04:48 PM (IST)
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पहिए पर झूमती है जिदगी
सहरसा। साइकिल की सवारी भले ही स्टेटस सिबल के कारण बीते दिनों की बात बनती जा रही है, परंतु आज भी गांव और शहर के पुराने लोग इसकी सवारी कर गौरान्वित महसूस कर रहे हैं। साइकिल ऐसी सवारी है जो मजदूरी करने वाले लोगों से लेकर कॉलेज के शिक्षक इसका उपयोग करते हैं। नए जमाने के पारिवारिक सदस्यों का उनपर इसकी सवारी छोड़ने के लिए दबाव भी बनाया जाता है, परंतु इन बुजुर्गों का मानना है कि घूमते पहिए की तरह साइकिल की सवारी उनकी आयु को भी बढ़ा रही है। आज के परिवेश में जब कम उम्र के लोग मधुमेह, उच्च रक्तचाप आदि के शिकार हो रहे हैं, तो ऐसे समय में साइकिल चलाने वाले बुजुर्गों को इस तरह की बीमारियां छू भी नहीं सकी है जो लोग इन बीमारियों के शिकार हो गए हैं, वे भी अब शौकिया साइकिल खरीदकर अपनी बीमारी पर काबू करने का जतन कर रहे हैं। एक जमाना था, जब लोग प्रतिदिन दो-दो किलोमीटर साइकिल की सवारी करते थे।

लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में मजदूर दिल्ली से हजारों मील साइकिल की सवारी कर अपने घर पहुंचे। इन मजदूरों की जुबानी से साइकिल की अहमियत की कहानी एक बार फिर हमसबों को देखने को मिल रहा है। आज के जमाने में जब लाख-डेढ़ लाख तक की शौकिया साइकिल बन गई है। ऐसे समय में साइकिल की खरीद जरूर कम हुई है, परंतु इसकी अहमियत आज भी कम नहीं हुई है। साइकिल दुकानदार संजय साह कहते हैं कि एक दशक पूर्व से साइकिल की बिक्री लगभग ठहर सी गई थी। सरकार द्वारा साइकिल योजना प्रारंभ होने के बाद इसमें जान आई। इसके कारण अब लगभग हर घरों में साइकिल देखा जा सकता है। कुछ लोग स्वास्थ्य के लिहाज से सुबह टहलने के बजाय व्यायाम के बदले साइकिल की सवारी कर पसीना निकाल रहे हैं, जबकि गांव देहात से अभी भी लोग एक साइकिल को 10-15 वर्षों से उपयोग करते हैं। देहात से आज भी दर्जनों लोग खासकर बुजुर्ग साइकिल से बाजार का काम करने आते हैं और समय पर वापस घर भी पहुंच जाते हैं।

नंदलाली के राजेन्द्र यादव कहते हैं कि उनकी उम्र 68 वर्ष हो गई है वे आज भी प्रतिदिन कम से कम बीस किलोमीटर साइकिल चलाते हैं, जरूरत पड़ने पर 50-60 किलोमीटर भी चला सकते हैं। उनका कहना है कि साइकिल चलाने के कारण वे आज भी पूरी तरह स्वस्थ है। जबकि हमारे परिवार के मोटरसाइकिल चलाने वाले 25 वर्ष के युवा मधुमेह की दवा खाते हैं। साहपुर के खेदन राम का कहना है कि प्रतिदिन 40-50 किलोमीटर साइकिल चलाकर अनाज खरीदते हैं। शाम को 50-60 किलोग्राम वजन लेकर भी वापस आते हैं, परंतु उन्हें कोई परेशानी नहीं होती, सुबह उसी स्फूर्ति से अपने काम पर निकल जाते हैं। उनका कहना है कि लॉकडाउन के दौरान उनके साथ गांव के दर्जनों लोग प्रतिदिन साइकिल से बाजार अपना काम करने जाते हैं। लोगों का कहना है कि साइकिल की प्रासंगिकता कभी समाप्त होनेवाली नहीं है। बदलते परिवेश में शौक से नहीं तो मजबूरी के लिए भी इसके उपयोग करना ही होगा।

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