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Bihar Bhumi Survey 2024: संघर्ष के साथ रिश्तों की खाई को पाट रहा भूमि सर्वे, दशकों बाद मिल रहे रिश्तेदार

बिहार में भूमि सर्वेक्षण की शुरुआत के साथ ही जमीन के दस्तावेजों की खोज के साथ-साथ रिश्तेदारों की भी खोज शुरू हो गई है। कई ऐसे लोग जो पीढ़ियों से अलग-थलग थे अब करीब आ रहे हैं। इस प्रक्रिया में भूले-बिसरे रिश्ते भी ताजा हो रहे हैं। कुछ दिलचस्प केस स्टडीज के साथ जानिए कैसे भूमि सर्वेक्षण लोगों को उनके रिश्तों से जोड़ रहा है।

By Rajesh Kumar Roy Edited By: Rajat Mourya Updated: Mon, 16 Sep 2024 08:16 PM (IST)
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रिश्तों की खाई को पाट रहा भूमि सर्वे (प्रतीकात्मक तस्वीर)
राजेश राय पप्पू, नवहट्टा (सहरसा)। भूमि सर्वे को लेकर जहां कई परिवारों में संघर्ष शुरू है, वहीं यह रिश्तों की खाई को भी पाट रहा है। कई ऐसे लोग, जिनका कुछ पीढ़ियों से आपस में संपर्क नहीं था, आज करीब आ रहे हैं। जिन्होंने दशकों से अपने गांव की सूरत नहीं देखी, अब उन्हें अपना गांव व अपने रिश्तेदार याद आ रहे हैं।

बिहार में भू-सर्वेक्षण (Bihar Bhumi Survey 2024) की शुरुआत होते ही जमीन के दस्तावेज व कागजात की तरह नाते-रिश्तेदारों की भी खोज शुरू हो गई है। दूसरे राज्यों एवं विदेश में बसे लोगों को अपने दादा-परदादा की याद आने लगी है।

भू-सर्वेक्षण को लेकर ऐसे लोगों द्वारा फोन आदि अन्य माध्यमों से जानकारी ली जा रही है। इस प्रक्रिया की जानकारी लेने के लिए जब लोग बाहर में अरसे से बसे अपने नाते-रिश्तेदारों को कॉल करते हैं तो भूले-बिसरे रिश्ते भी ताजा होते हैं।

परदेस में कुछ समय से बसे कई ऐसे लोग हैं जो अपने दादा एवं परदादा के नाम तक भूल चुके हैं। माता-पिता व भाई-बंधु की टोह लेना भी ये जरूरी नहीं समझते थे। सर्वेक्षण की प्रक्रिया ऐसी है कि पुरखों के नाम सटीक याद होने चाहिए।

केस स्टडी-1

डरहार पंचायत निवासी तरुण विजय अमेरिकी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। लगभग 20 वर्ष पूर्व वे विदेश गए थे। वहां उन्होंने किसी लड़की से शादी कर ली। इसी बात को लेकर घरवालों से अनबन हुई। गांव लौट कर नहीं आए। माता-पिता गांव में ही रहते हैं। सर्वे की खबर लगते ही एक बार परिवार के लोगों से बातें शुरू हुई हैं।

केस स्टडी-2

चंद्रायण के विलास कुमार ने पिता रामशरण यादव व अन्य भाइयों से झगड़ने के बाद 1992 में ही घर छोड़ा। गुजरात के सूरत में प्रारंभ में मजदूरी की। अब कपड़े के बड़े कारोबारी हैं। घर के लोगों व नाते-रिश्तेदार से कोई संपर्क नहीं रखते थे। भू-सर्वे के बाद जायदाद में हक का चिंता सताने लगी तो परिवार के साथ गांव के लोगों से भी संपर्क साध रहे हैं।

केस स्टडी-3

कुछ ऐसी ही कहानी सत्तौर पंचायत के कोयला निवासी रामदुखी पासवान की है। वे रोजी-रोटी की तलाश में 2002 में हरियाणा के जिंद शहर गए। वहां खेती में काम करते करते कुछ जमीन खरीद ली और बाद में गाय-भैंस पालकर डेयरी खोल ली। शादी भी वहीं रचा ली।

जब तक पिता जीवित थे, गांव कभी-कभार आना-जाना था। पिता का देहांत नौ साल पहले हुआ। उसके बाद वे कभी घर नहीं आए। अब गांव के लोग ही उन्हें खोज रहे हैं।

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