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बिहार के इस मंदिर में पांडवों ने की थी चंडी मां की पूजा, महाभारत काल से जुड़ा है इतिहास; जानें रोचक तथ्य

Bihar Famous Temple बिहार के सहरसा में एक ऐसा मंदिर है जहां महाभारत काल में पांडवों ने मां चंडी की पूजा-अर्चना की थी। ऐसा कहा जाता है की मंदिर हजारों वर्ष पुराना है और मां चंडी यहां स्वयं अवतरित हुई थी। मान्यता है कि इसका निर्माण महाभारतकालीन राजा विराट द्वारा 1870 ई0 पूर्व कराया गया था। पुरातत्व विभाग को सर्वेक्षण में पुराने अवशेष भी मिले हैं।

By Kundan SinghEdited By: Rajat MouryaUpdated: Fri, 20 Oct 2023 03:42 PM (IST)
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बिहार के इस मंदिर में पांडवों ने की थी चंडी मां की पूजा, महाभारत काल से जुड़ा है इतिहास

जागरण संवाददाता, सहरसा। Bihar Famous Hindu Temple कोसी के कछेर पर बसा सहरसा जिला भले ही आर्थिक रूप से पिछड़ा हो। लेकिन इसकी सांस्कृतिक, साहित्यिक व धार्मिक विरासत काफी गौरवशाली व समृद्ध है। जिले में कई ऐसे मंदिर हैं जिनका पौराणिक महत्व है। वहीं, आज हम सोनवर्षा राज प्रखंड के विराटपुर गांव स्थित मां चंडी मंदिर कर बात रहे हैं। यह देश के चर्चित शक्तिपीठों में से एक है।

ऐसा कहा जाता है की मंदिर हजारों वर्ष पुराना है और मां चंडी यहां स्वयं अवतरित हुई थी। इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने यहां मां चंडी की पूजा-अर्चना की थी। बिहार पर्यटन विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर भी इससे संबंधित जानकारी दी गई है।

सर्वेक्षण में मिले हजारों वर्ष पुराने अवशेष

पुरातत्व विभाग द्वारा दो बार सर्वेक्षण किया गया है। सर्वेक्षण में हजारों वर्ष पुराने अवशेष भी मिले हैं। खुदाई से यह प्रमाण मिला है कि मंदिर हजारों वर्ष पुराना है और लोगों की प्रमुख आस्था का केंद्र है। वैसे तो सालोंभर यहां पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालु आते रहते हैं। लेकिन नवरात्र के समय यहां काफी भीड़ होती है। मान्यता है कि इसका निर्माण महाभारतकालीन राजा विराट द्वारा 1870 ई0 पूर्व कराया गया था।

पांडवों को मिला था विजयश्री का आर्शीवाद

मान्यता है कि जब पांडव अज्ञातवास में थे, उस वक्त यहां उन्होंने मां चंडी की पूजा-अर्चना की थी। काफी दिनों तक पूजा-अर्चना के बाद मां ने प्रसन्न होकर पांडवों को विजयश्री का आर्शीवाद दिया था। यहां उत्खन्न से प्राप्त काले व चमकदार पत्थर की मूर्तियां पालयुगीन सदी की है। अधिकांश पाल शासक बौद्ध धर्म के अनुयायी थे।

यही वजह है कि मंदिर में बची इन मूर्तियों पर तिब्बत तथा चीनी कलाओं का स्पष्ट प्रभाव नजर आता है। मंदिर के द्वार के सम्मुख मां छिन्नमस्तिका का चबूतरा नामक सिंहासन काले पत्थरों का बना हुआ है। जिसके ऊपर दिशा यंत्र अंकित है। मां छिन्नमस्तिका की पूजा के उपरांत काले पत्थर से बने इसी सिंहासन की पूजा की जाती है।

चढ़ाए गए जल का नहीं चलता पता

इस मंदिर में एक छोटा का कुंड है। मां चंडी की प्रतिमा के बगल में स्थित इस कुंड में कितना भी जल चढ़ाया जाए उसका जल स्तर एक समान बना रहता है। यहां लोगों के बीच यह धारणा है कि मां छिन्नमस्तिका को चढ़ाया गया जल गुप्त मार्ग से महिषी की मां उग्रतारा तथा धमाहरा की मां कत्यानी तक पहुंच जाता है। इस तरह यहां पूजा करने से तीनों स्थानों के भगवती के पूजन का फल भक्त को प्राप्त हो जाता है।

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