कोसी के किनारे मिट रहे गांव सारे
सहरसा। कोसी नदी के तट पर बसा महुआ गांव अब धीरे-धीरे नदी में समा रहा है। बाढ़ का पानी
By JagranEdited By: Updated: Tue, 28 Jul 2020 05:02 PM (IST)
सहरसा। कोसी नदी के तट पर बसा महुआ गांव अब धीरे-धीरे नदी में समा रहा है। बाढ़ का पानी घरों के अंदर घुसने को बेताब है। एक हफ्ते में दस घरों को नदी लील चुकी है। वहीं नदी ने अपना रुख भी बदल दिया है। मुख्य धारा से इतर एक छोटी धारा निकली है जो गांव समाप्त करने पर आमदा है। लोग डरे हुए हैं और घर छोड़ने को भी तैयार। लेकिन वो जाएं तो कहां ?
तटबंध के बाहर न पुनर्वास है और न लोगों के पास इतनी पूंजी है कि वो जमीन खरीद सकें। हालांकि यह एक बघवा की कहानी नहीं है बल्कि तटबंध के अंदर बसे अधिकांश गांवों की दशा है। दरअसल साल दो साल बाद यहां के ग्रामीणों को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ता है। कोसी अपने कटाव और धारा बदलने के लिए बदनाम रही है इसलिए भी कि इलाके का यह हर साल भूगोल बदलती है तो गांव का इतिहास मिटा देती है। कोसी में वो सपने भी विलीन हो जाते हैं जो भूल से ही यहां के वाशिदों ने देख लिए हों। बीते सात दशक में कोसी ने तटबंध के अंदर दर्जनों गांवों का अस्तित्व मिटा दिया। दो पाटों के बीच कोसी बांध तो दी गयी लेकिन न खतरा कम हुआ और न ही तबाही। हर साल तटबंध के अंदर कोसी कोहराम मचाती है। तटबंध के अंदर लगभग एक दर्जन ऐसे गांव हैं जिसका इतिहास और भूगोल बीते तीन दशक में बदल गया। आज भी कई गांव ऐसे हैं जो मोबाइल बने हैं। कटाव व विस्थापन के कारण इन गांवों के इतिहास भी समाप्त हो गये। कभी इलाके में अपनी समृद्धि से अलग पहचान रखने वाले गांव आज रेत के टीले में तब्दील हो गये। नवहट्टा प्रखंड का हाटी गांव इसका उदाहरण है। हाटी के रहने वाले कामेश्वर प्रसाद सिंह बताते हैं कि यहां उन दिनों में पक्के के मकान हुआ करते थे जब शहरों में भी इक्के-दुक्के मकान होते थे। लेकिन आज यहां दूर-दूर तक बालू के टीले नजर आते हैं। बघवा बस्ती के बुजुर्ग मोहीउद्दीन बताते हैं कि 1957 से पहले उनके गांव के बगल से एक नाला बहता था। कुछ सालों में यह नदी बन गयी। पूरा गांव समाप्त हो गया। ग्रामीणों ने सरकार के कहने पर गांव खाली कर दिया। सरकार द्वारा मिले पुनर्वास पर गांव वाले बस गए। लेकिन 1984 में नवहट्टा के नौलक्खा में बांध टूट गया। पूरा इलाका जलमग्न हो गया। नदी ने अपनी धारा बदल ली थी। पुनर्वास समाप्त हो गया। वहां नदी बहने लगी। एक बार फिर गांव वाले अपने पुराने ठिकाने पर आ गए। दरअसल कोसी ने उनके पुराने ठिकाने का आबाद कर दिया था। मोमीना खातून बताती हैं कि कुछ दशक तो ठीक रहा। लेकिन कोसी का मिजाज फिर बदल गया। वो बताती हैं कि जहां अभी नदी पूरी वेग में बह रही है वहीं उनलोगों का आशियाना तीन साल पहले तक था। अब जहां बसे हैं वहां फिर नदी आक्रमक है। आंगन से कोसी की धारा बह रही है। खेत-खलिहान खत्म हो गए। बरहरा निवासी वीरेंद्र यादव का यहां कामत था। दस जुलाई को उनके पिता का निधन हो गया। वो सभी गांव गए इसी दौरान कोसी में उनका कामत समा गया। पशु चारा, अनाज सब बह गया। फिलहाल पशु तो हैं लेकिन उनके चारे की कोई व्यवस्था नहीं है। यहां के लोग बताते हैं कि हमलोग बाहर चले भी जाएं तो ठिकेंगे कहां। कोई ठिकाना नहीं है। पूरा गांव अभी कोसी के शांत होने का इंतजार कर रहा है।
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