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1981 Bihar Train Accident: बागमती नदी रेल हादसे की 42वीं बरसी आज, सैकड़ों लोग मरे; जो बचे उनसे हुई लूटपाट

1981 Bihar Train Accident इतिहास के पन्नों का वह कला दिन जिसे याद कर आज भी दिल सिहर उठता है। आज से ठीक 42 साल पहले की उस घटना की याद आज भी सिहरन पैदा कर देती है।

By Mithilesh KumarEdited By: Prateek JainUpdated: Tue, 06 Jun 2023 01:13 AM (IST)
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बागमती नदी रेल हादसे की 42वीं बरसी आज, सैकड़ों लोग मरे; जो बचे उनसे हुई लूटपाट
सिमरीबख्तियारपुर (सहरसा), मिथिलेश कुमार: इतिहास के पन्नों का वह कला दिन जिसे याद कर आज भी दिल सिहर उठता है। आज से ठीक 42 साल पहले की उस घटना की याद आज भी सिहरन पैदा कर देती है।

छह जून 1981 को सहरसा-मानसी रेलखंड के धमारा घाट के पुल संख्या 51 पर हुई यह रेल दुर्घटना भारत की सबसे बड़ी और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी ट्रेन दुर्घटना थी।

मालूम हो कि विश्व की सबसे बड़ी ट्रेन दुर्घटना श्रीलंका में 2004 में हुई थी। तब सुनामी की तेज लहरों में 1700 से अधिक यात्रियों के साथ ओसियन क्वीन एक्सप्रेस विलीन हो गई थी।

छह जून को आई दुर्घटना की याद

ठीक आज से 42 साल पहले छह जून 1981 को देश की उस सबसे बड़ी ट्रेन दुर्घटना की याद ताजा हो गई है, जो बच गए, वे आज भी उस मंजर को याद कर सिहर पड़ते हैं। धमरा घाट पुल संख्या 51 पर एक पैसेंजर ट्रेन और बाहर तेज बारिश।

ट्रेन के भीतर यात्री अपने में मस्त, सभी को घर पहुंचने की जल्दी। तभी अचानक ड्राइवर ने ब्रेक लगाया और ट्रेन की नौ में से सात बोगियां फिसलकर पुल संख्या 51 को तोड़ते हुए लबालब नदी में विलीन हो गईं।

बोगियों के नदी में गिरने के बाद चीख-पुकार मच गयी। कुछ चोट लगने या डूब जाने से जल्द मर गए, कुछ जो तैरना जानते थे, उन्होंने किसी तरह गेट और खिड़की से खुदको और अपने प्रियजनों को निकाला।

मानवता पर लगे बदनुमां दाग

इसके बाद जो हादसा हुआ, वह मानवता के दामन पर बदनुमा दाग बन गया। घटना स्थल की ओर तैरकर बाहर आने वालों से कुछ स्थानीय लोगों ने लूटपाट शुरू कर दी। यहां तक कि प्रतिरोध करने वालों को कुछ लोगों ने फिर से डुबोना शुरू कर दिया।

मंजर याद कर सिहर उठता है दिल

बाद में जब पुलिस ने घटनास्‍थल के निकटवर्ती रोहियार बंगलिया, हरदिया और बल्कुंडा गांवों में छापेमारी की तो कई घरों से टोकरियों में सूटकेस, गहने व लूट के अन्य सामान मिले थे।

इससे यात्रियों के आरोपों की पुष्टि हुई। सिमरी बख्तियारपुर निवासी सुरूज बरय,अरविंद भगत की इस दुर्घटना में मौत हो गई थी। उनके स्वजन बताते हैं कि दुर्घटना के दौरान उनके पूर्वजों ने बताया था कि उस समय यह बात सामने आई थी और लूटपाट की पुष्टि भी हुई थी।

तीन हजार तक हुई मौतें

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 500 लोग ही ट्रेन में थे, लेकिन बाद में रेलवे के दो अधिकारियों ने मीडिया से बातचीत में मृतकों की संख्या 1000 से 3000 के बीच बताई थी। गौरतलब बात यह है कि यह पैसेंजर ट्रेन थी, इसमें कितने लोग थे, निश्चित अंदाजा लगा पाना मुश्किल था।

दुर्घटना के बाद स्थानीय व रेल प्रशासन ने राहत व बचाव अभियान चलाया। गोताखोर लगाए गए। भारतीय नौसेना ने तो पानी के अंदर विस्फोटकों का इस्तेमाल कर 500 लाशें निकालने की योजना बनाई, हालांकि ऐसा नहीं हो सका।

आज तक दुर्घटना के कारण अज्ञात

आखिर वह दुर्घटना कैसे हुई थी? वजह का आज तक पता नहीं चल सका है। हालांकि, दो कारण बताए गए हैं। पहला यह कि ट्रैक पर अचानक एक भैंस आ गई, जिसे बचाने के क्रम में ड्राइवर ने ब्रेक मारे। ट्रैक पर फिसलन के कारण ट्रेन फिसलकर नदी में जा गिरी

वहीं, दूसरा कारण यह बताया जाता है कि उस वक्त तूफानी हवाओं के साथ बारिश हो रही थी। इस कारण यात्रियों ने खिड़कियां बंद कर लीं। इस कारण ट्रेन से तूफानी हवाओं के क्रॉस करने के सारे रास्ते बंद हो गए और भारी दबाव के चलते ट्रेन पलट गई।

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