शहरनामा ::: सहरसा :::
मेरे बारे में बात कीजिए साहब अब पुराने हो चले हैं। शहर को पहचानने लगे हैं। यहां की
By JagranEdited By: Updated: Sun, 14 Jun 2020 03:07 PM (IST)
मेरे बारे में बात कीजिए
साहब अब पुराने हो चले हैं। शहर को पहचानने लगे हैं। यहां की राजनीति भी उन्हें खूब समझ में आ गई है। अब वे किसी के बहकावे में नहीं आते। कान में फुसफुसाने वालों की दाल नहीं गल रही है। ऐसा नहीं कि हर किसी से उनकी नहीं बनती। साहब से कुछ लोगों की अच्छी बन रही है। एक पुराने कर्मी साहब तक पहुंच रखने वाले लोगों के गले पड़ रहे हैं। अभी कुछ महीने पहले तक जिनके बारे में बुरा बताने वाले कर्मी अब ऐसे लोगों की खुशामद में पड़े हैं। वे कहते हैं, मेरे बारे में साहब से बात कीजिए। लॉकडाउन के दौरान अपनी नजदीकी बनाने के लिए वे अपने हुनर का प्रदर्शन कर चुके हैं। यहां उनका हुनर काम ही नहीं आया। वैसे, उन्हें अब अंदेशा हो रहा है कि जिन लोगों के खिलाफ उन्होंने कान भरा था, वही लोग आज उनका काम लगाने में जुटे हैं। ===== दूसरी पारी में बदलाव
साहब वर्दीधारी हैं। एक पद पर दूसरी पारी में आए हैं। अब उनका गुस्सा नाक पर ही रहता है। अधीनस्थों पर भी लाल-पीले हो जाते हैं। अबकी कुर्सी मिली तो कुछ दिनों बाद लॉकडाउन हो गया। काम का प्रेशर बढ़ गया। अब चिड़चिड़े हो गए। अगर कोई साहब के डेरा की ओर चला जाए तो उसकी खैर नहीं..। वैसे, साहब दिल के अच्छे आदमी हैं। पहली पारी में साहब से सब खुश थे। अभी उनकी प्रोन्नति का समय है, सो वो हर काम को फूंक-फूंककर करते हैं। दौड़-भाग तो उनके कार्य में ही शामिल हैं। लेकिन, उन्हें पहली पारी में अपने रहे लोगों से भी अब डर लगता है। वैसे किसी करीबी का पैरवी आ जाता है तो मन ही मन चिढ़ते ही रहते हैं। उनके इस नए रुख से लोग भी परहेज करते हैं। वैसे, इनके कोरोना काल में किए गए अच्छे कामों की चर्चा फिलहाल चर्चा में है। =====
अभी मंदा है धंधा नेताजी एक बार पंचायती राज के सर्वाेच्च संस्था से प्रतिनिधि बन चुके हैं। महिला सीट हो गया तो उन्होंने पत्नी को उतारा और जीत हासिल की। उनकी पहचान धरना व अनशन के लिए होती है। वे कोरोना काल में बेरोजगार हो गए हैं। उन्हें फिलहाल कोई नया मुद्दा नहीं मिल रहा है कि धरना या अनशन कर सके। मुद्दा नहीं मिलने के कारण नेताजी का अधिक समय आवास पर ही बीत रहा है। बीच-बीच में अपनी पत्नी के निर्वाचन क्षेत्र का में दौरा कर लेते हैं। मुद्दों से उनकी राजनीति चमकती रहती थी। लेकिन, कोरोना ने राजनीतिक धंधे को चौपट कर दिया। वैसे, नेताजी एक बड़े मुद्दे को लेकर घर पर ही धरना पर बैठे थे। अब लॉकडाउन खत्म होने के बाद नेताजी बयान जारी करने में लगे हुए हैं। अखबार में न सही तो सोशल मीडिया पर भी, सक्रिय रहकर मुद्दे को जगाने की कोशिश में वे जुटे हैं। ======== मंत्रीजी के दामाद हैं साहब एक विभाग में बड़े पद हैं। पूर्णिया के साथ सहरसा का भी जिम्मा है। कई जिले का कार्य रहने के बाद भी उनका अधिक समय राजधानी में ही गुजरता है। अगर किसी ने कुछ कह दिया तो जवाब मिलता है, हम मंत्रीजी के दामाद हैं, जो करना है कर लीजिए। साहब की हनक को देखकर कई अधिकारी उनके सामने कुछ नहीं बोल पाते हैं। कई दफे महीनों तक उन्हें कोई देख नहीं पाता है। जिले के बड़े अधिकारी भी जब भी साहब को खोजते हैं तो नहीं मिलते हैं। काफी पत्राचार के बाद समय मिल जाता है तो कभी आकर बड़े साहब से मुलाकात कर लेते हैं। साहब के विभाग में इन दिनों कई महत्वपूर्ण काम है। कई फाइलों पर उनका हस्ताक्षर आवश्यक रहता है। हस्ताक्षर नहीं होने के कारण कई फाइलें अटक जाती है। पर सब ऐसे ही चल रहा है। आखिर वे मंत्रीजी के दामाद जो हैं।
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