त्योहारों में भी महानगरों की ओर पलायन कर रहे बिहार के हजारों मजदूर, काफी मशक्कत के बाद भी गांवों में नहीं मिलता काम
बिहार में मजदूरों का पलायन त्योहारों के मौसम में भी बदस्तूर जारी है। कोसी क्षेत्र में रेल मार्ग के जरिए औसतन 1200 मजदूर प्रतिदिन रोजगार की तलाश में परदेस जा रहे हैं। मजदूरों की टोली रात में ही सहरसा स्टेशन पहुंच जाती है। सहरसा से सुबह में चलने वाली जनसेवा एक्सप्रेस इन मजदूरों से खचाखच भरी रहती है।
संवाद सूत्र, सहरसा। बिहार में मजदूरों का पलायन त्योहारों के मौसम में भी बदस्तूर जारी है। कोसी क्षेत्र में रेल मार्ग के जरिए औसतन 1200 मजदूर प्रतिदिन रोजगार की तलाश में परदेस जा रहे हैं।
मजदूरों की टोली रात में ही सहरसा स्टेशन पहुंच जाती है। सहरसा से सुबह में चलने वाली जनसेवा एक्सप्रेस इन मजदूरों से खचाखच भरी रहती है।
मजबूरी क्या न कराए
ट्रेन से जालंधर में मजदूरी करने जा रहे रामप्रीत बताते हैं कि हमलोग मजदूरी नहीं करेंगे तो परिवार कैसे चलेगा? हमारे लिए कोई पर्व-त्योहार नहीं है। गांव में काम नहीं मिलता है। साल में छह महीने बाहर ही रहते हैं। छह महीने तक बाहर रहकर कमाकर घर लौटते है, तो घर भी बन जाता है और घर में बेटी की शादी के लिए भी कुछ रुपये जमा हो जाते हैं।
इस वजह से पलायन को हैं मजबूर
रामप्रीत आगे कहते हैं कि गांव में काफी मशक्कत करने के बाद भी महीने में सिर्फ पांच से दस दिन ही काम मिलता है। शेष दिन घर बैठकर ही खाना पड़ता है, इसलिए जालंधर जा रहे है। वहां खेतों में फसल बोने से लेकर काटने तक का ठेका मजदूरों को ही मिलता है। मजदूरों की संख्या अभी कम ही रहती है। सीजन में पूरी बोगी भी मजदूरों के लिए कम पड़ती है।
4-5 हजार लोग कर रहे पलायन
शनिवार को जनसेवा से जा रहे मधेपुरा जिले के आलमनगर प्रखंड के प्रियवर्त मुखिया और धनेश्वर ने बताया कि धान कटनी के लिए अंबाला (हरियाणा) जा रहे है। दो महीने काम करने के बाद घर लौटेंगे। 15 लोगों का जत्था है। सब मिलकर एक ही खेत में काम करते है।
धनेश्वर आगे कहते हैं कि वहां मजदूरी के अलावा रहने व खाने के लिए मिल जाता है। हर मजदूर कमोबेश प्रतिदिन 800 से 1000 रुपये रोज कमा लेता है। जनसेवा सहित अन्य ट्रेनों के लिए सहरसा से प्रतिदिन औसतन 1000-1200 टिकट लंबी दूरी के लिए कटाया जा रहा है। हालांकि त्योहार के बाद इसकी संख्या 4000-5000 तक पहुंच जाती है।