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'हिंदुत्व बचाने के लिए...', समस्तीपुर में अनिरुद्धाचार्य का बड़ा बयान; बिहार के लोगों से की ये अपील

समस्तीपुर में श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कथावाचक डॉ. अनिरुद्धाचार्य ने हिंदुत्व की रक्षा के लिए एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने जातिवाद से बाहर निकलकर संगठित होने मतांतरण रोकने और सनातन धर्म को मजबूत करने पर जोर दिया। साथ ही उन्होंने बिहार के नौजवानों से शराब नहीं पीने और व्यवसाय शुरू करने को कहा। उन्होंने कथा के दौरान ब्रह्मचर्य को भी समझाया।

By Mukesh Kumar Edited By: Rajat Mourya Updated: Tue, 08 Oct 2024 02:43 PM (IST)
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हिंदुत्व बचाने के लिए जातिवाद से बाहर निकल हों संगठित : अनिरुद्धाचार्य

संवाद सूत्र, सरायरंजन (समस्तीपुर)। सरायरंजन के उदयपुर में श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन सोमवार को कथावाचक डॉ. अनिरुद्धाचार्य ने व्यक्तिगत, पारिवारिक एवं सामाजिक गुण एवं संस्कार पर विस्तृत चर्चा की। कहा कि मन को हमेशा वश में रखना चाहिए। मन जग में लगा तो सांसारिक बंधन है। वहीं जगन्नाथ में लगा तो स्वर्ग है, इसलिए मन को ईश्वर में लगाना चाहिए।

महाराज ने गुण एवं संस्कार पर चर्चा करते हुए कहा कि नारी सम्मान सर्वोपरि है। उन्होंने लोगों से जातिवाद से बाहर निकलकर संगठित होने की अपील की, ताकि हिंदुत्व को बचाया जा सके। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए एकजुट होने और मतांतरण रोकने के लिए सनातन धर्म को मजबूत करने का आह्वान किया।

आचार्य ने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र को एक माता की संतान बताया।

बिहार के नौजवानों से शराब नहीं पीने की अपील:

कथा के दौरान महाराज के भजन श्याम तेरे भरोसे मेरा परिवार है, तू ही मेरी नाव का मांझी तू ही पतवार है एवं बनवारी तेरी यारी दीवाना बना दिया के भजन पर पूरा पंडाल झूम उठा था। अनिरुद्धाचार्य जी ने आयोजक मुकुंद झा के सुपुत्र अमन की मंच से सराहना करते हुए कहा कि हर बेटे को अमन जैसा बनना चाहिए, जो आज अपने मां-बाप और समाज को भागवत कथा सुना रहा है।

उन्होंने बिहार के नौजवानों से शराब नहीं पीने की अपील की। साथ ही नौकरी के पीछे भागने के बजाय व्यवसाय शुरू करने को कहा। कहा कि मेहनत करो, लेकिन शारीरिक नहीं दिमागी रूप से। आजकल लोग गलत जगह दिमाग लगाते हैं। उन्होंने चाणक्य और रावण का अलग-अलग उदाहरण देकर इसे समझाया।

उन्होंने ब्रह्मचर्य को भी समझाया। कहा कि शरीर का केंद्र बिंदु नाभि होता। उससे नीचे जो एनर्जी चली जाए वह वासना हो जाती है और जो एनर्जी नाभि से ऊपर चली जाए तो वह उपासना बन जाती है।

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