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Samastipur Golden Jubilee : विकास की यात्रा में सभी शामिल, कोई बहुत पीछे तो कोई रथ पर ही सवार

प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के पायदान में खिसका। उज्जवला के बावजूद गैस की खपत में वृद्धि नहीं। जातियों का मंच तैयार पर जिले के विकास के लिए कोई सामूहिक मंच नहीं। 2016-21 के बीच औसत पेट्रोल की खपत 29.6 मिट्रिक टन था जो 2020-21 में 34.2 मिट्रिक टन रहा।

By Mukesh KumarEdited By: Ajit kumarUpdated: Fri, 11 Nov 2022 12:41 PM (IST)
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जिले के विकास के बारे में गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। प्रतीकात्मक फोटो
समस्तीपुर, जासं। शमसुद्दीनपुर, समष्टिपुर और समस्तीपुर। पूर्व में जिले की जो भी स्थितियां थी, कालांतर में परिवर्तित होती गयी। जिले की परिस्थितियाें में आज सकारात्मक परिवर्तन दिख रहा है। विकास की इस शोभा यात्रा में सब शामिल हैं, पर कोई बहुत पीछे है तो कोई रथयात्रा में रथ पर हीं सवार है। इस संदर्भ में जिले में आधा दशक से चली आ रही विकास को कितना विकास माने इसकी पड़ताल आवश्यक है। विकास के मायने को विश्व बैंक 78 मापदंडों पर निर्धारित करती है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनजीपी प्रतिवर्ष एक रिपोर्ट जारी करती है, जिसे मानक विकास रिपोर्ट कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र के हर सदस्य देशों में तीन सूचकों में औसत जीवन संभावना वर्ष, व्यस्क साक्षरता दर, सकल नामांकन अनुपात तथा प्रति व्यक्ति सकल उत्पाद के आधार पर उस देश के विकास की स्थिति का मूल्यांकन करती है। यही स्थिति जिला स्तर पर भी होती है। प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के मामले में यह जिला 2017-18 में राज्य के जिलों में 17वें स्थान पर था। 2019-20 में नीचे लुढ़क कर 21वें स्थान पर आ गया। 2015-16 में ऐसी ही स्थिति थी। 2016-21 के बीच औसत पेट्रोल की खपत 29.6 मिट्रिक टन था जो 2020-21 में 34.2 मिट्रिक टन रहा।

अब भी बहुत आगे जाना है

डीजल की खपत में कोई खास वृद्धि नहीं हुई, लेकिन रसोई गैस की औसत 2016-21 में 49.6 मिट्रिक टन के साथ 2020-21 में 64.3 मिट्रिक टन था। ये आर्थिक गतिविधियों को दर्शाती हैं। 2020-21 में प्रति 1000 व्यक्ति पर सिर्फ 14.3 मिट्रिक टन रसोई गैस की ही खपत हुई जो दर्शाता है कि उज्जवला योजना के बावजूद खपत में वृद्धि नहीं हो पायी। जिले में 60 वर्ष से अधिक के व्यक्तियों की संख्या आज 3.81 लाख है। एक आंकलन के मुताबिक 2031 में बढ़कर 5.15 लाख हो जाएगी।जाने-माने समाजशास्त्री तथा भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व पदाधिकारी ब्रह्देव शर्मा का कहना है कि ऐसी हालत में दो ही विकल्प है या तो विकास के नाम पर होने वाली लीला को नियति के रूप में स्वीकार की जाए या फिर विकास की लहर मानवीय समाज के तटबंधों पर टकराने के बाद एक नया मानवीय रूप लेकर एक रूप में प्रति-प्रभावित हो।

सड़कों का बिछा जाल, वाहनों की संख्या में भी वृद्धि

पूरे जिला में पक्की सड़कों का जाल सा बिछ गया। 50 वर्ष पहले जहां जिला के सिर्फ एक चौथाई गांवों तक पक्की सड़क जाती थी आज लगभग हर गांव पक्की सड़क से जुड़ गई है। ग्रामीण सड़क की कुल लम्बाई 4172 किमी हो गयी है। राष्ट्रीय उच्च पथ, राज्य उच्च पथ तथा जिला पथ जोड़कर आज सड़कों की कुल लंबाई 5012 किमी है। सड़कों पर वाहनों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार केवल एक वर्ष 2020-2021 में समस्तीपुर में कुल 36281 नए वाहनों का निबंधन हुआ, तो इसके इतर सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या भी बढ़ती चली गई। 2016 में 298 सड़क हादसे हुए। 2017 में 290, 2018 में 337, 2019 में 298 हादसे, 2020 में 275 हादसे हुए। इस वर्ष 258 लोगों की मौत हो गई तो 209 जख्मी हो गए।

66 गांवों का हो रहा शहरीकरण

शहरीकरण को बढ़ावा देने के लिए समस्तीपुर जिला मुख्यालय नगर परिषद से नगर निगम बन गया। जिला के 16 पंचायत के 66 गांवों को निगम क्षेत्र में शामिल कर उसका शहरीकरण हो रहा है। जिला बनने के समय जहां जिला क्षेत्र के प्रति वर्ग किलोमीटर में 729 व्यक्ति (जनसंख्या घनत्व) रहते थे। जनगणना वर्ष 2011 के अनुसार 1467 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर में रहते थे। इसके दस वर्ष पहले जनसंख्या घनत्व 1175 थी। आज लगभग 1800 है। 1972 में शहर की आबादी 57100 थी जो 1981 में बढ़कर 88049 हो गया। उस समय 3.96 प्रतिशत आबादी शहर में रहती थी। 2011 की जनसंख्या के अनुसार 11.2 प्रतिशत आबादी शहरी है। 1981 में समस्तीपुर म्यूनिसिपैलिटीअपने क्षेत्र में प्रति व्यक्ति कुल सिर्फ 21.74 रुपया टैक्स वसूलता था आज यह केवल एक मद में वसूले जाने वाले टैक्स से यह कम ही है।

19वीं सदी में बूढ़ी गंडक नदी से होता था व्यापार

19 वीं सदी के उतरार्द्ध में बूढ़ी गंडक नदी जलमार्ग का श्रोता हुआ करता था। माल ढ़ोने तथा यातायात के अन्य कार्यों में उपयोग ऐसा कि यहां से मारिशस हल्दी, धनियां, मिर्च भेजा जाता था और वहां से गुड़, शक्कर एवं छोआ लाया जाता था। रेलपथ में बढ़ोतरी तथा अन्य कारणों से यह जलमार्ग बंद सा हो गया और बाढ़ ने नदी को खलनायक बना दिया।

आर्थिक पूंजी में वृद्धि हुयी तो घटी सामाजिक पूंजी

पिछले 50 वर्षों में प्रति व्यक्ति के आय में वृद्धि हुयी। एक ओर हमारा आर्थिक पूंजी बढ़ रहा है तो दूसरी ओर हमारी सामाजिक पूंजी घट रही है। भेद-भाव, आपसी भाईचारा में कमी, छोटी-छोटी बातों पर हत्या तक की स्थिति। राष्ट्रवाद तो बाद की चीज है हम उपराष्ट्रवादी भी नहीं बल्कि विभिन्न धर्मों एवं जाति समूहों में बंट गये हैं। समस्तीपुर क्षेत्र के विकास के लिए कोई भी मंच या समूह सक्रिय नहीं, परंतु इस जाति का मंच, उस जाति का मंच तैयार है और सक्रिय भी है। सब मिलाकर कहें तो जिला की सामाजिक पूंजी में ह्रास होता जा रहा है।

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