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Karpoori Thakur Jayanti: जब फूट-फूट कर रोने लगे थे जननायक कर्पूरी, उस वक्‍त नहीं बने थे बिहार के सीएम

कर्पूरी जी के राजनीतिक गुरु थे अमर स्वतंत्रता सेनानी पं. सत्यनारायण प्रसाद तिवारी। आदर्श राजनीति की गुर लेने हमेशा उनके पुरानी बाजार स्थित आवास पर जननायक पहुंचते थे। उनके प्रति जननायक के हृदय में अगाध श्रद्धा थी। उनके कई संस्मरण पुरानी बाजार स्थित सत्यनारायण भवन की ईंट से जुड़ी है। उनके ऐसे ही आंखों देखे संस्मरण सुना रहे हैं पं. सत्यनारायण प्रसाद तिवारी के पुत्र सेवानिवृत्त शिक्षक राघवेंद्र कौशिक।

By Deepak Prakash Edited By: Prateek Jain Updated: Tue, 23 Jan 2024 08:22 PM (IST)
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Karpoori Thakur Jayanti: जब फूट-फूट कर रोने लगे थे जननायक कर्पूरी, उस वक्‍त नहीं बने थे बिहार के सीएम
दीपक प्रकाश, शाहपुर पटोरी। अमर स्वतंत्रता सेनानी पं. सत्यनारायण प्रसाद तिवारी कर्पूरी ठाकुर के राजनीतिक गुरु थे। आदर्श राजनीति की गुर लेने हमेशा उनके पुरानी बाजार स्थित आवास पर जननायक पहुंचते थे। उनके प्रति जननायक के हृदय में अगाध श्रद्धा थी।

उनके कई संस्मरण पुरानी बाजार स्थित सत्यनारायण भवन की ईंट से जुड़ी है। उनके ऐसे ही आंखों देखे संस्मरण सुना रहे हैं पं. सत्यनारायण प्रसाद तिवारी के पुत्र सेवानिवृत्त शिक्षक राघवेंद्र कौशिक।

बात 11 मार्च 1974 की है। जब जननायक को मालूम हुआ कि अमर स्वतंत्रता सेनानी पं. सत्यनारायण प्रसाद तिवारी जी का स्वर्गारोहण 7 मार्च को हो गया है, तो वे उनके पुरानी बाजार स्थित आवास पर पहुंचे। उस समय वे मुख्यमंत्री नहीं थे।

उनकी धर्मपत्नी के चरणों पर गिरकर जननायक फफक-फफक कर रोने लगे। उनके अंगरक्षकों और वहां मौजूद लोगों ने यह देखकर अपने आप को भावुक होने से नहीं रोक पाए। बाद में वे मुझसे लिपटकर बोले कि अब मैं अनाथ हो गया। राजनीतिक गुरु तिवारी जी का साया अब मेरे ऊपर से हमेशा हमेशा के लिए हट गया।

महीने में दो बार गुरुजी से मिलने आते थे कर्पूरी ठाकुर 

पटोरी की मिट्टी से जुड़े जननायक की यादें पुरानी बाजार स्थित सत्यनारायण भवन के हर कण में मौजूद है। गांधी जी के साथ 21 दिनों से अधिक का अनशन करने वाले मेरे पिताजी अमर स्वतंत्रता सेनानी पंडित सत्यनारायण प्रसाद तिवारी को वे अपना राजनीतिक गुरु ही नहीं, बल्कि आदर्श मानते थे।

उनके पुत्र त्रिवेदी कौशिक बताते हैं कि महीने में दो बार पिताजी से मिलने कर्पूरी जी अवश्य आया करते थे। गुरु और शिष्य परंपरा को ईमानदारी पूर्वक निर्वहन करने वाले जननायक हमेशा उनसे गुरु मंत्र लेने आते थे। उन्हें अपना ऐसा गुरु मानते थे की जमीन पर बैठकर ही उनसे गुरु मंत्र लिया करते थे।

सीएम बनने के बाद पहली बार उनका आगमन मेरे पैतृक आवास पर जनवरी माह 1971 में हुआ था। यह वाकया उन्हें अच्छी तरह याद है। तब वे अपने अंगरक्षकों को बाहर छोड़कर स्वर्गीय तिवारी जी से मिलने मकान के अंदर गए। उनका इस मकान के अंदर तक आना जाना होता था। आशीर्वाद लेकर लगभग आधे घंटे तक मंत्रणा की। मेरी माता जी ने उन्हें घी का हलवा अपने हाथों से बनाकर खिलाया था।

गुरु ने कर्पूरी ठाकुर से कही थी मिट्टी का कर्ज उतारने की बात

मेरे पिताजी अक्सर कहा करते थे कि कर्पूरी तुम इस मिट्टी का कर्ज अवश्य उतारना। कर्पूरी जी उनकी बातों को ब्रह्मा की लकीर मान कर उसपर अमल किया करते थे। पटोरी में बड़ी लाइन बनने की बात सदन में उठाकर वह काफी अधिक चर्चित हुए थे।

उन्होंने पटोरी में एएनडी कॉलेज की स्थापना के लिए घर-घर घूम कर सहयोग मांगा था ।तिवारी जी के सर्वधर्म और सर्वजातीय कल्याण के मंत्र को जननायक ने अपने जेहन में उतार लिया था। अगड़े और पिछड़े वर्ग के लोगों में आज भी वे देवता के समान पूजे जाते हैं।

त्रिवेदी कौशिक बताते हैं कि मार्च 1971 में तो हद ही हो गई। उस समय वे बिहार के मुख्यमंत्री थे। स्थानीय गुलाब बूबना उच्च विद्यालय के प्रांगण में उनकी एक सभा आयोजित होनी थी। समय से लगभग आधे घंटे विलंब से जननायक मैदान में पहुंचे। मंच पर चढ़ते ही उन्होंने पूछा कि क्या तिवारी जी आए हैं।

जब संचालकों ने कहा कि वह नहीं पहुंच सके हैं तो उन्होंने अपने अंगरक्षक को निर्देश दिया कि वह गाड़ी में बैठे। वे मंच से उतरे और गाड़ी में बैठकर पहले सत्यनारायण भवन की ओर प्रस्थान कर लिया। जब तिवारी जी को वे साथ लेकर मंच पर आए तब उनकी सभा शुरू हुई।

पटोरी के कई घरों से जुड़ी है कर्पूरी ठाकुर की याद 

पटोरी के कई ऐसे घर हैं जो कर्पूरी जी की यादों से आज भी जुड़ी हुई हैं। धमौन, चकसलेम, इमनसराय, शाहपुर उंडी, हवासपुर, जोरपुरा के प्रमुख लोगों को वे नाम सहित जानते थे। पटोरी में उनकी हमेशा मीटिंग और सभाएं हुआ करती थीं। त्रिवेदी कौशिक बताते हैं कि जब भी उनसे मुलाकात होती थी मेरे पिताजी के विषय में अवश्य पूछते थे।

मेरे पिताजी क्षेत्र के प्रमुख सत्याग्रहियों में एक थे। वे कुल सात बार जेल गए और नेहरू जी के द्वारा एमपी के टिकट दिए जाने के पेशकश को भी ठुकरा दिया था। साथ ही उन्होंने आजीवन स्वतंत्रता सेनानी का पेंशन नहीं लिया। उनके त्याग और बलिदान को जननायक हमेशा अपना आदर्श मानते रहे।

उन्होंने मुझे एक बार कहा था कि तिवारी जी के आदर्शों से मेरे जीवन में काफी बदलाव आया है। उनके बताए गई एक-एक बातों पर मैंने अमल किया है और मुझे जीवन भर मलाल नहीं होगा कि मैं उनके आदर्श को अपनाने में कोई कसर छोड़ी है।

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