Karpoori Thakur Jayanti: जब फूट-फूट कर रोने लगे थे जननायक कर्पूरी, उस वक्त नहीं बने थे बिहार के सीएम
कर्पूरी जी के राजनीतिक गुरु थे अमर स्वतंत्रता सेनानी पं. सत्यनारायण प्रसाद तिवारी। आदर्श राजनीति की गुर लेने हमेशा उनके पुरानी बाजार स्थित आवास पर जननायक पहुंचते थे। उनके प्रति जननायक के हृदय में अगाध श्रद्धा थी। उनके कई संस्मरण पुरानी बाजार स्थित सत्यनारायण भवन की ईंट से जुड़ी है। उनके ऐसे ही आंखों देखे संस्मरण सुना रहे हैं पं. सत्यनारायण प्रसाद तिवारी के पुत्र सेवानिवृत्त शिक्षक राघवेंद्र कौशिक।
दीपक प्रकाश, शाहपुर पटोरी। अमर स्वतंत्रता सेनानी पं. सत्यनारायण प्रसाद तिवारी कर्पूरी ठाकुर के राजनीतिक गुरु थे। आदर्श राजनीति की गुर लेने हमेशा उनके पुरानी बाजार स्थित आवास पर जननायक पहुंचते थे। उनके प्रति जननायक के हृदय में अगाध श्रद्धा थी।
उनके कई संस्मरण पुरानी बाजार स्थित सत्यनारायण भवन की ईंट से जुड़ी है। उनके ऐसे ही आंखों देखे संस्मरण सुना रहे हैं पं. सत्यनारायण प्रसाद तिवारी के पुत्र सेवानिवृत्त शिक्षक राघवेंद्र कौशिक।
बात 11 मार्च 1974 की है। जब जननायक को मालूम हुआ कि अमर स्वतंत्रता सेनानी पं. सत्यनारायण प्रसाद तिवारी जी का स्वर्गारोहण 7 मार्च को हो गया है, तो वे उनके पुरानी बाजार स्थित आवास पर पहुंचे। उस समय वे मुख्यमंत्री नहीं थे।
उनकी धर्मपत्नी के चरणों पर गिरकर जननायक फफक-फफक कर रोने लगे। उनके अंगरक्षकों और वहां मौजूद लोगों ने यह देखकर अपने आप को भावुक होने से नहीं रोक पाए। बाद में वे मुझसे लिपटकर बोले कि अब मैं अनाथ हो गया। राजनीतिक गुरु तिवारी जी का साया अब मेरे ऊपर से हमेशा हमेशा के लिए हट गया।
महीने में दो बार गुरुजी से मिलने आते थे कर्पूरी ठाकुर
पटोरी की मिट्टी से जुड़े जननायक की यादें पुरानी बाजार स्थित सत्यनारायण भवन के हर कण में मौजूद है। गांधी जी के साथ 21 दिनों से अधिक का अनशन करने वाले मेरे पिताजी अमर स्वतंत्रता सेनानी पंडित सत्यनारायण प्रसाद तिवारी को वे अपना राजनीतिक गुरु ही नहीं, बल्कि आदर्श मानते थे।उनके पुत्र त्रिवेदी कौशिक बताते हैं कि महीने में दो बार पिताजी से मिलने कर्पूरी जी अवश्य आया करते थे। गुरु और शिष्य परंपरा को ईमानदारी पूर्वक निर्वहन करने वाले जननायक हमेशा उनसे गुरु मंत्र लेने आते थे। उन्हें अपना ऐसा गुरु मानते थे की जमीन पर बैठकर ही उनसे गुरु मंत्र लिया करते थे।
सीएम बनने के बाद पहली बार उनका आगमन मेरे पैतृक आवास पर जनवरी माह 1971 में हुआ था। यह वाकया उन्हें अच्छी तरह याद है। तब वे अपने अंगरक्षकों को बाहर छोड़कर स्वर्गीय तिवारी जी से मिलने मकान के अंदर गए। उनका इस मकान के अंदर तक आना जाना होता था। आशीर्वाद लेकर लगभग आधे घंटे तक मंत्रणा की। मेरी माता जी ने उन्हें घी का हलवा अपने हाथों से बनाकर खिलाया था।
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