कुशेश्वरस्थान पक्षी विहार की आपत्ति, दरभंगा-कुशेश्वरस्थान परियोजना अटकी
समस्तीपुर रेल मंडल के मिथिलांचल की दो-दो महत्वाकांक्षी परियोजनाएं दरभंगा- कुशेश्वरस्थान और सकरी-हसनपुर रेल लाइन पर लगा ब्रेक अब तक सुलझ नहीं सका है। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कुशेश्वरस्थान पक्षी विहार में प्रत्येक वर्ष अप्रवासी पक्षी आते हैं। उसके समीप से ही रेलवे लाइन गुजरने वाली है जिससे पक्षियों को परेशानी होगी।
समस्तीपुर । समस्तीपुर रेल मंडल के मिथिलांचल की दो-दो महत्वाकांक्षी परियोजनाएं दरभंगा- कुशेश्वरस्थान और सकरी-हसनपुर रेल लाइन पर लगा ब्रेक अब तक सुलझ नहीं सका है। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कुशेश्वरस्थान पक्षी विहार में प्रत्येक वर्ष अप्रवासी पक्षी आते हैं। उसके समीप से ही रेलवे लाइन गुजरने वाली है, जिससे पक्षियों को परेशानी होगी। दोनों परियोजनाओं पर कुल 922 करोड़ रुपये खर्च होने हैं। वन विभाग की आपत्ति के बाद से ही कुशेश्वरस्थान पक्षी विहार के समीप निर्माण कार्य पर ठप है। पर्यावरण एवं वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (भारतीय वन्य जीव संस्थान) देहरादून की टीम परियोजना को लेकर जांच कर रही।
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हसनपुर तक रेल लाइन का निर्माण होना बाकी
दरभंगा-कुशेश्वरस्थान के बीच 70 किलोमीटर नई रेल लाइन के लिए 205 करोड़ रुपये और सकरी-हसनपुर के बीच 79 किलोमीटर नई रेल लाइन के लिए 717 करोड़ रुपये स्वीकृत हैं। वर्तमान में दोनों रेलखंडों में हरिनगर तक परिचालन किया जा रहा। दरभंगा से सकरी बेनीपुर व बिरौल होते हुए कुशेश्वरस्थान से पहले तक रेल लाइन का निर्माण पूरा हो चुका है। जबकि, कुशेश्वरस्थान से बिथान होते हुए हसनपुर तक रेल लाइन का निर्माण होना बाकी है। वन विभाग द्वारा एनओसी नहीं देने के कारण रेल परियोजना का कार्य ठप है। पक्षी विहार प्रबंधन ने इसे खतरा बताते हुए एनओसी देने से मना कर दिया है।
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वाइल्ड लाइफ काउंसिल से हरी झंडी मिलने का इंतजार
हालांकि, वन विभाग ने पक्षी विहार के समीप पशुओं के आने-जाने के लिए रास्ता बनाने की बात पर अपनी सहमति प्रदान कर दी है। इससे कुशेश्वरस्थान पक्षी विहार के समीप से ट्रेन गुजरने की उम्मीद जगी है। इसके लिए वन विभाग ने देहरादून नेशनल वाइल्ड लाइफ काउंसिल को रिपोर्ट भेजी है। हरी झंडी मिलते ही परिचालन शुरू हो जाएगा।
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15 साल से लंबित है परियोजना
सकरी-हसनपुर रेल परियोजना को लेकर वर्ष 1951 में सर्वे शुरू किया गया था। इसके बाद 1953 में रेलवे बोर्ड ने बाढ़ का इलाका होने के कारण रोक लगा दी थी। 1972 में तत्कालीन रेलमंत्री ललित नारायण मिश्रा ने सर्वे कराने की घोषणा की। उनके बाद योजना की फाइल बंद कर दी गई। 1997 में तत्कालीन रेल मंत्री रामविलास पासवान ने इसे मिथिलांचल के विकास के लिए आवश्यक बताते हुए पुन: शिलान्यास किया। उनके मंत्री से हटते ही योजना को राशि नहीं मिली। 2004 में लालू प्रसाद के रेल मंत्री बनने पर इस योजना के लिए राशि आवंटित हुई।