पूसा भारतीय कृषि शिक्षा और अनुसंधान का क्षेत्र में अनूठा नाम है। 1905 में समस्तीपुर जिले में पहली बार कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान की शुरूआत की गई थी। माना जाता है कि इसके लिए हेनरी फिप्स ने तीस हजार ब्रिटिश पाउंड दान में दी थी जिससे यहां एक भव्य एवं विशाल भवन बनाया गया था। हेनरी फिप्स अमेरिका (यूएसए) की थी।
By Vinod GiriEdited By: Prateek JainUpdated: Sat, 01 Jul 2023 05:55 PM (IST)
विनोद कुमार गिरि, समस्तीपुर: पूसा भारतीय कृषि, शिक्षा और अनुसंधान का क्षेत्र में अनूठा नाम है।
1905 में समस्तीपुर जिले में पहली बार कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान की शुरूआत की गई थी।
माना जाता है कि इसके लिए हेनरी फिप्स ने तीस हजार ब्रिटिश पाउंड दान में दी थी, जिससे यहां एक भव्य एवं विशाल भवन बनाया गया था। हेनरी फिप्स अमेरिका (यूएसए) की थी। इसलिए एक किंवदंती चल पड़ी कि फिप्स के
पी
और
यूएसए
को मिलाकर पूसा का नामकरण किया गया, लेकिन यह सत्य नहीं है।
पूसा का नाम पूषा था, ऐतिहासिक तथ्य शोध में मिले प्रमाण
हेनरी फिप्स के यहां आने से पहले पूसा का नाम
पूषा
था। यह ऐतिहासिक तथ्य शोध में प्राप्त हुआ है। यह शोध कोई और नहीं, बल्कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के कुलपति डॉ पीएस पांडेय ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर की है।
शोध में मिले ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर उन्होंने दावा किया है कि पूसा का प्राचीन नाम
पूषा
था, जिसकी चर्चा कई जगहों पर मिलती है।
कुलपति डॉ. पीएस पांडेय बताते हैं कि यहां कुलपति का दायित्व संभालने के बाद मुझे इसके इतिहास के विषय में जानने की जिज्ञासा हुई।
इसके बाद अपने सहयोगियों के साथ मिलकर इस पर मैंने अनुसंधान शुरू करवाया। यह जानना आश्चर्यजनक था कि पूसा का नाम ब्रिटिशकालीन न होकर ऐतिहासिक है। उनके अनुसार, पूसा का प्राचीन नाम
पूषा
था। पूषन शब्द अति प्राचीन है।
ऋगवेद में पूषन देवता का जिक्र
इसका उल्लेख ऋगवेद में किया गया है। उनकी स्तुति कई आदित्य (सूर्य) में से एक के रूप में की गई है।
पूषन काे मिलन के देवता के रूप में ऋगवेद में वर्णन है तथा उन्हें शादी, यात्रा, सड़क और पशुओं का भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार बताया गया है।
पशुओं के लिए समृद्ध चारागाह उपलब्ध करने वाले के रूप में भी इसका वर्णन किया गया है।
ऋगवेद में दस सूक्त पूषन देवता को समर्पित है। एक सूक्त में बताया गया है कि इनके रथ को बकरे चलाते हैं।
पूषा गा अन्वेतु न् पूषा रक्षत्वर्तत। पूषा वाजं सनोतु न् ॥
पूषा गा अन्वेतु न् पूषा रक्षत्वर्वत:। पूषा वाजं सनोतु न् ॥ (ऋगवेद सूक्त- 6.54.5)
अर्थात पूषा हमारे मवेशियों की रक्षा करें। पूषा हमारे घोड़ों की रक्षा करें। पूषा हमें पोषण दे और अन्न प्रदान करें। इसी खोज के क्रम में पता चला कि पूसा पूर्व में मवेशियों के लिए चारागाह था। 5 जुलाई 1784 को ईस्ट इंडिया कंपनी को तिरहुत स्टेट की ओर से स्टड फार्म (घोड़ों के चारागाह) के लिए 1500 रुपये की मालगुजारी पर पूसा को दिया गया था।
सन् 1808 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा पशु चिकित्सक विलियम मूरक्राफ्ट को बंगाल स्टड फॉर्म पूसा का अधीक्षक नियुक्त किया गया था। इसका लिखित विवरण नेचर पत्रिका 1938 मार्च, 12, नंबर 3567 पृष्ठ संख्या 481 पर उपलब्ध है, जिसे पूसा को अंग्रजी में Poosha (पूषा) उल्लेखित किया गया है।
इससे सिद्ध होता है कि पूसा पूर्व में पूषा नाम से प्रचलित था। पूषा अर्थात हे पूषन। पूषा स्टड फॉर्म की चर्चा अन्य लिखित दस्तावेजों में भी है। पूषा का जिक्र तिरहुत के कार्यवाहक कलेक्टर ने 1854 में 14 जनवरी को पत्र संख्या 107 में किया है।
इस तरह के लगभग दस से अधिक प्राचीन दस्तावेजों में पूषा नाम का उल्लेख संदर्भ सहित मिलता है, जिससे लोगों की यह धारणा गलत साबित होती है कि पूसा का नाम फिप्स ऑफ यूएसए से हुआ।
कुलपति आगे बताते हैं कि पूषन शब्द का उल्लेख अति प्राचीन ईषावाषोपनिषद के 16 वें श्लोक में भी है।
पूषन्नेकर्षे यम सूर्य प्राजापत्य व्यूह रश्मीन्समूह।
तेज : यत्ते रूपं कल्याणतमं तत्ते पश्यामि योऽसावसौ पुरुष : सोऽहमस्मिम॥ 16 ॥
अर्थात - हे पोषक हे एकमात्र दृष्टा, हे विधाता एवं नियंता, हे प्रकाशदाता सूर्य, हे प्रजापति की शक्ति, आप अपनी किरणों को व्यूहबद्ध एवं व्यवरिथत कर ले, अपने प्रकाश को एकत्र एवं पूंजीभूत कर ले, आपका जो सबसे अधिक कल्याणकारी रूप है वही रूप में देखता हूं। वह जो पुरूष है वही मैं हूं।
कुलपति कहते हैं कि पूषा आज भी पोषक और कल्याणकारी है। कृषि के क्षेत्र में इस स्थान के महत्व को ऐतिहासिक बनाने के लिए 1934 के भूकंप के बाद जब पुराने संस्थान को दिल्ली में स्थानांतरित किया गया तो उसका नाम भी पूसा रखा गया। आज भी नई दिल्ली स्थित पूसा में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अवस्थित है।
’पूषा‘ पोषक रूप में किसानों के कल्याण में निरंतर अग्रसर है और रहेगा। वे पूषण देव से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे पूषन देव इस कल्याणकारी मार्ग में डॉ.राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्ववविद्यालय और हम सबका मार्गदर्शन करें कि हम किसानों के कल्याण में अपनी भूमिका का सम्यक निर्वहन करें।
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