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Samastipur Golden Jubilee Year: मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेज खुलने से शैक्षणिक आयाम को लगे पंख

Samastipur Golden Jubilee Year स्लेट पेंसिल से डिजिटल पढ़ाई तक की दूरी तय। जिला बनने से पूर्व और अस्सी के दशक से पहले विद्यालय और महाविद्यालय निर्माण और संचालन में लोगों की जो दिलचस्पी थी धीरे-धीरे कम होती चली गई।

By Mukesh KumarEdited By: Ajit kumarUpdated: Sat, 12 Nov 2022 12:05 PM (IST)
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सरकारी मदद के बाद से लोगों का रुझान घटता चला गया है। फोटो: जागरण
समस्तीपुर, जासं। Samastipur Golden Jubilee Year: शिक्षा मानव विकास का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह मूल्यों को पुर्नस्थापित कर समाज में परिवर्तन लाती है। इस सोच को साकार करने के लिए पूर्वजों ने जिले में भी शिक्षालय को अपने ढंग से स्थापित किया। यह विभिन्न रूपों में सामने आया। कभी खानगी तो कभी ग्राम पाठशाला तो कभी मदरसा के रूप में। शिक्षा प्रेमियों की जिले में एक लंबी फेहरिस्त भी रही है। इनमें से कई ने देश स्तर पर जिले का नाम रोशन किया है। इस सबके बीच एक बात तो दृष्टिगोचर होती है वह यह कि जिला बनने से पूर्व और अस्सी के दशक से पहले विद्यालय और महाविद्यालय निर्माण और संचालन में लोगों की जो दिलचस्पी थी धीरे-धीरे कम होती चली गई। एक समय था जब शैक्षणिक संस्थानों को सरकारी स्तर पर अनुदान नहीं मिलता था। शनिचरा या मुठिया या फिर प्रति छात्र बच्चों से प्राप्त आना-दो आना की राशि से शिक्षकों का गुजारा होता था। उस समय गांव या समाज के हर छोटे-बड़े लोगों का जुड़ाव उस शैक्षणिक संस्थानों से होता था। लोग यथासंभव जमीन, श्रम या राशि दान देकर पाठशालाओं का निर्माण भी करते थे, लेकिन सरकारी मदद के बाद से लोगों का रुझान घटता चला गया।

1870 में पहले मध्य विद्यालय की स्थापना

परंपराओं के बीच 1870 ई. में संयुक्त दरभंगा जिले में प्रथम मध्य विद्यालय की स्थापना नरहन राज की ओर से की गई। 1881 ई. में समस्तीपुर के बहादुरपुर में इंग्लिश मिडिल स्कूल की स्थापना की गई। 1888 तक दरभंगा जिले में बालिका शिक्षा के लिए कोई विद्यालय नहीं थी। पहला विद्यालय दिघरा (पूसा) गांव में खुला। 31 मार्च 1905 में कुल 28 छात्राएं नामांकित हुईं। कालांतर में इसका विकास हुआ। आज जिले में छात्राओं के लिए कुल 9 विद्यालय संचालित है। एक महिला कॉलेज भी है। 31 मार्च 1905 को जिले में पहला हाईस्कूल केई स्कूल के रूप में अस्तित्व में आया। 1 वर्ष में 3177 रुपया फी के रूप में आया। उसी राशि से विद्यालय के सभी कर्मियों को भुगतान हुआ। परिणाम यह हुआ कि 2011 में महिला साक्षरता दर जिले में 51.5 प्रतिशत रहा। शहरी क्षेत्र का साक्षरता दर 80.7 प्रतिशत रहा जो सूबे में टॉप फाइव रैंकिंग पर रहा।

शिक्षा का बजट घटा

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021-22 के मुताबिक शिक्षा पर कुल व्यय 2016-17 में 19,939 करोड़ था जो 20-21 में घटकर 12,959 करोड़ हो गया। जिला बनने के बाद शैक्षणिक संस्थानों में उत्तरोत्तर वृद्धि हुयी। स्थापना के समय जिले में 1115 प्राथमिक विद्यालय एवं 231 मध्य विद्यालय थे। आज प्राथमिक एवं मध्य विद्यालय की संख्या 2527 हो गयी है। इसके अलावा 15 अनुश्रवित विद्यालय भी हैं। जिले में माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालयों की संख्या 403 है। जिले में इंजीनियरिंग कॉलेज , पॉलीटेक्निक, आईटीआई कॉलेज का निर्माण हुआ। उच्च शिक्षा की दशा बदली। एक मेडिकल कॉलेज भी निर्माणाधीन है। डा. राजेंद्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में परिणत हो गया।

अबतक 22 शिक्षको को मिल चुका है राष्ट्रीय पुरस्कार

जिले के उच्च विद्यालय के 15 और प्राथमिक विद्यालय के सात शिक्षकों को राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कृत किया जा चुका है। इसके अलावा बुनियादी विद्यालय के दो शिक्षक भी पुरस्कृत हुए।

साक्षरता दर में हुई वृद्धि

जिला बनने के लगभग नौ वर्षों के बाद जिला में साक्षरता दर 24.88 प्रतिशत था। सिर्फ 12.99 प्रतिशत महिलाएं साक्षर थीं। आज 51 वें वर्ष में जिला के 61.9 प्रतशित लोग साक्षर हैं। लगभग 51.5 प्रतशित महिलाएं साक्षर हैं। इसमें क्रमश: प्रतिवर्ष 16.7 तथा 20.1 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है। 1981 में साक्षरता दर जिले में 32.05 था। इसमें पुरुषों का आंकड़ा 46.60 था तो महिलाओं का 16.52 प्रतिशत था। इसी तरह 1991 में 38.48 प्रतिशत लोग साक्षर थे। इसमें 52.49 प्रतिशत पुरुष तो 22.89 प्रतिशत महिलाएं शामिल थीं। जिला में केवल 103 गांव ऐसे थे जो किसी शहर से पांच किलोमीटर की दूरी पर हों। आज निगम तथा म्यूनिसिपैलिटी के नए सीमांकन में कितने गांव ही शहर के भीतर आ गए हैं। 1981 में जिला के 10.000 जनसंख्या पर औसतन 2.04 हाईस्कूल थे, 2.50 मध्य विद्यालय तथा 5 प्राथमिक विद्यालय थे।

कोरोना महामारी में स्मार्ट फोन पर बढ़ी निर्भरता

कोरोना महामारी में मार्च 2020 से बंद हुए विद्यालय के बीच वर्ष 2021 में असर ने ऑनलाइन सर्वे किया। इसकी सोलहवीं ऐनयूअल स्टैटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) की रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों का नामांकन निजी से सरकारी विद्यालयों की ओर बढ़ा। 6-14 आयु वर्ग के बच्चों का निजी विद्यालयों में नामांकन 2018 में 32.5 प्रतशित से घटकर 2021 में 24.4 प्रतिशत हो गया, हालांकि अभी भी लड़कियों की तुलना में ज्यादा लड़के निजी स्कूलों में नामांकित हैं। 15.16 आयु वर्ग के बच्चों का सरकारी स्कूल में नामांकन का आंकड़ा 2018 में 57.4 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 67.4 प्रतिशत हो गया। इस दौरान विद्यालय बंद होने के कारण स्मार्ट फोन की उपलब्धि 2018 में 36.5 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 67.6 प्रतिशत हो गई है। सरकारी विद्यालयों में जाने वाले बच्चों की अपेक्षा 63.7 प्रतिशत निजी विद्यालय के ज्यादा बच्चों के पास स्मार्ट फोन उपलब्ध हैं।

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