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    Bihar Chunav : चुनावी समीकरण उलझे, खामोश वोटर, बेचैन प्रत्याशी, किसके पक्ष में झुकेगा पलड़ा

    By Abhinav Kumar Edited By: Dharmendra Singh
    Updated: Tue, 04 Nov 2025 04:34 PM (IST)

    बिहार में आगामी चुनावों को लेकर राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है। चुनावी समीकरण उलझ गए हैं और मतदाता खामोश हैं, जिससे प्रत्याशियों में बेचैनी है। सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि मतदाताओं का पलड़ा किसके पक्ष में झुकता है।

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    इस खबर में प्रतीकात्मक तस्वीर लगाई गई है। 

    जागरण संवाददाता, समस्तीपुर । बिहार के समस्तीपुर जिले के मतदाताओं ने चुप्पी साध रखी है। कोई भी यह इशारा नहीं कर रहा कि वह किस मुद्दे पर इस बार वोट करने वाला है। आम मतदाताओं की इस चुप्पी ने प्रत्याशियों की बेचैनी बढ़ा रखी है।

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    सभी अपने-अपने दांव-पेंच लगा इन्हें अपनी ओर आकर्षित करने में जुटा है। इससे इतर रोड शो और सभाओं में खूब भीड़ जुट रही। भाषणों पर लोग जमकर तालियां भी बजा रहे लेकिन, जनता की खामोशी ने मैदान में डटे पहलवानों के दिल की धड़कन बढ़ रखी है।

    गांवों में पार्टियों के वांलेंटियर भी सक्रिय हो गए हैं। सभी अपने-अपने प्रत्याशियों के पक्ष में वोटर को गोलबंद करने में जुटे हैं लेकिन, मतदाता खामोशी धारण किए बैठा है।

    कोई विकास के वादों पर आधारित भाषण दे रहा है, तो कोई पिछले कार्यकाल चुनावी चक्रम को भूलों के लिए, नजरअंदाज करने की बात कर रहा है। युवाओं को गले लगाना और बुजुर्गों के पैर छूना अब सियासी रणनीति का हिस्सा बन गया।

    प्रत्याशी जनता के बीच प्यार भले बटोर रहे हैं, लेकिन अंदरखाने इस बात की चिंता है कि मतदाता आखिर सोच क्या रहा है। हर कोई अपने पक्ष में हवा चलने का दावा कर रहा है, पर हवा किस दिशा में बहेगी, इसका अंदाजा किसी को नहीं।

    साम, दाम, दंड और भेद को नीति अपनाने के बावजूद वोटरों की चुप्पी प्रत्याशियों की बेचैनी बढ़ा रही है।

    गांव-गांव में सक्रिय हुए वोट के ठेकेदार 

    जैसे-जैसे चुनाव की तिथि नजदीक आ रही है, प्रत्याशी अपने मैदान को सेनापतियों के हवाले कर खुद अधिक से अधिक मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश में हैं। गांव-गांव में वोट के ठेकेदार सक्रिय ही गए हैं।

    वे एक-एक मतदाता पर नजर रख रहे हैं, आश्वासन दे रहे हैं, पर खुद भी भीतर से असमंजस में हैं। उन्हें डर है कि कहीं अंतिम समय में मतदाता गुलाटी न मार दे, जैसा कि हरेक चुनावों की परंपरा रही है।

    विश्लेषकों का कहना है कि मतदाता अब पहले जैसी भावनाओं में नहीं बहते। वे सब सुनते हैं, देखते हैं, लेकिन बोलते नहीं। उन्हें मालूम है कि चुनावी मौसम में हर प्रत्याशी जनता का सेवक बन जाता है, पर चुनाव बीतते ही वही सेवक साहब बन जाता है। यही वजह है कि इस बार जनता ने मौन को ही अपना जवाब बना लिया है।

    खेमेबंदी और कशमकश का दौर शुरू 

    ग्रामीण इलाकों में अब खेमाबंदी शुरू हो चुकी है। दलीय और निर्दल दोनों ही खेमे अपनी-अपनी बिसात बिछा रहे हैं। वोटों के ठेकेदार अपने-अपने इलाके में सक्रिय हैं, पर मतदाता इस बार जरा अलग मूड में दिख रहे हैं।

    न कोई खुलकर समर्थन दे रहा है, न विरोध कर रहा है। हर कोई कह रहा है सोच लेंगे आखिरी दिन पर। यही आखिरी दिन प्रत्याशियों के लिए टेंशन का सबसे बड़ा दिन साबित होने वाला है।