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भोजपुरी शेक्सपियर: आज भी कानो में गूंजती है जातिवाद के खिलाफ उठी भिखारी ठाकुर की आवाज, नाच की गढ़ी थी नई परिभाषा

Bhikhari Thakur लोक कवि भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर 1887 को सारण जिले में हुआ था। भिखारी ठाकुर अपनी बात समाज के सामने रखने में कभी नहीं डरे। उन्होंने समाज की हर कुरीतियों पर चोट किया। उनके नाटक इतने शानदार थे कि उन्हें भोजपुरी शेक्सपियर कहा जाता है। आज से सौ साल पहले उन्होंने जातिवाद की पीड़ा को दिखाया था।

By Jagran NewsEdited By: Aysha SheikhUpdated: Mon, 18 Dec 2023 10:51 AM (IST)
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भोजपुरी शेक्सपियर: आज भी कानो में गूंजती है जातिवाद के खिलाफ उठी भिखारी ठाकुर की आवाज
जागरण टीम, पटना/छपरा। भिखारी ठाकुर किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। लोक कवि भिखारी ठाकुर ने नाच की नई परिभाषा गढ़ी। उन्हीं के शब्दों में ’नाच ह कांच, बाकी बात ह सांच, एह में लागे ना आंच।’ इसका अर्थ है कि नाच कांच है। इसमें टिकाऊ नहीं है पर सच है। इसलिए प्रस्तुति में कोई डर-भय नहीं है।

भिखारी ठाकुर अपनी बात समाज के सामने रखने में कभी नहीं डरे। उन्होंने समाज की हर कुरीतियों पर चोट किया। उन्होंने देश की सामंतवादी संस्कृति व गंवई लोगों पर चढ़े जाति व समुदाय के रंग के खिलाफ गीतों के माध्यम से जमकर प्रहार किया।

जीवन संघर्ष दिखाते रहे और सामंती ठसक, गांव की गरीबी, जातिवाद का जहर, पलायन की पीड़ा और विरह की वेदना उनके नाटकों में स्पष्ट दिखती थी। जातिवाद के खिलाफ उठी भिखारी ठाकुर की वह आवाज आज भी प्रासंगिक हैं। आज से सौ साल पहले उन्होंने जातिवाद की पीड़ा को दिखाया।

साहित्यकार से लेकर विभागाध्यक्ष तक की जुबान पर भिखारी

हिंदी व भोजपुरी के साहित्यकार डा. भगवती प्रसाद द्विवेदी कहते हैं कि भिखारी ठाकुर के नाटक गबर घिचोर में जब पंचायत बैठती है तो जातीय जकड़न के खिलाफ भिखारी ठाकुर के विद्रोह के स्वर उठते हैं।

लंगट सिंह महाविद्यालय में भोजपुरी के विभागाध्यक्ष डाक्टर जयकांत सिंह जय कहते हैं कि भिखारी ठाकुर ने विप्र वंदना की। जो लोग जातीयता के हिमायती हैं, वही उन पर अनुसूचित जाति के प्रश्रय के आरोप मढ़ते हैं। उन्होंने तो अपने जीवन दर्शन में साफ-साफ यह साबित कर दिया है कि वह सामंतवाद के खिलाफ नहीं बल्कि उसके गलत तरीके व जातिवाद के खिलाफ हैं।

अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा. ब्रजभूषण मिश्र कहते हैं कि यह ठीक है कि भोजपुरिया सामंती समाज ही भिखारी ठाकुर के चोट से आहत होता था, परंतु चोट मारकर उसे धीरे से सहलाने का हुनर भी वे जानते थे। इसलिए जब-जब उन्होंने जातीय कटुता पर प्रहार किया समाज ने उसे सहर्ष स्वीकार किया।

लोक कवि भिखारी ठाकुर का जीवन परिचय

लोक कवि भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर 1887 ई को सारण जिला के सदर प्रखंड अंतर्गत कुतुबपुर गांव में एक नाई परिवार में हुआ था। जिस वक्त उनका जन्म हुआ था, उस समय कुतुबपुर शाहाबाद का हिस्सा हुआ करता था।

बचपन में भिखारी ठाकुर मवेशी चराते थे। बड़े होने पर उन्हें अपने पारंपरिक पेशा नाई के काम को अपनाना पड़ा। हालांकि वह कुछ और ही करना चाहते थे इसीलिए वह अपने गांव के पड़ोसी गांव फतनपुर में चले गए। 1914 में जब वह 27 वर्ष के थे तो उनके गांव में अकाल पड़ा।

उसके बाद उन्होंने काम की तलाश में परिवार को छोड़ दिया। उनके पिता का नाम दालसिंगार ठाकुर था। बाद में गांव में आये और उन्होंने एक नाटक मंडली बनाई और शुरुआत में रामलीला का मंचन करते थे। इसके बाद उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों पर प्रहार करते हुए उसी के अनुरूप नाटकों का मंचन किये।

उनकी मृत्यु 10 जुलाई 1971 को हुई। उन्हीं की नाटक मंडली में लौंडा का नाच करने वाले रामचंद्र मांझी को वर्ष 2021 में भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया गया। सम्मानित होने के कुछ दिनों बाद उनका भी निधन हो गया। भिखारी ठाकुर के प्रमुख नाटकों में विदेशिया, भाई विरोध, बेटीबेचवा, गबर घिचोर, कलजुग प्रेम, राधेश्याम बाहर, बटोहिया आदि प्रमुख हैं।

भिखारी ठाकुर के नाम पर किया जाएगा प्रेक्षागृह का नामकरण

छपरा शहर के राजकीय कन्या उच्च विद्यालय परिसर में स्थित प्रेक्षागृह का नाम लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के नाम पर किया जाएगा। कला संस्कृति एवं युवा विभाग के मंत्री जितेंद्र कुमार राय ने पिछले दिनों प्रेक्षागृह का नामकरण भिखारी ठाकुर के नाम पर करने की घोषणा की थी।

इससे साहित्य और संस्कृति कर्म से जुड़े लोगों में हर्ष का माहौल है। सभी लोग उस समय का इंतजार कर रहे हैं, जब इसकी विधिवत घोषणा हो जाये। उल्लेखनीय हो कि सारण स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से विधान पार्षद डा. वीरेंद्र नारायण यादव ने विधान परिषद में प्रेक्षागृह का नामकरण भोजपुरी के लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के नाम पर करने की मांग की थी।

भोजपुरी के शेक्सपियर कहे गए भिखारी

भिखारी ठाकुर एक समर्थ लोक कलाकार, नवजागरण के संदेशवाहक, समाज सुधारक, भोजपुरी भाषा को समृद्ध करने वाले और लोक संगीत को व्यापक प्रचार-प्रसार करने वाले महान व्यक्तित्व थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।

भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर के नाच और नाटकों को शहरवासियों के साथ जिले के विभिन्न प्रखंडों के लोग भी देखते और सराहते थे। कभी शहर के मीरगंज के स्व. रामध्यान सिंह के हाता में भिखारी ठाकुर का कार्यक्रम होता था।

भिखारी ठाकुर के कार्यक्रम की शुरुआत

स्व. रामध्यान सिंह के हाता में प्राचीन समय से दशहरा के अवसर पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना होती थी। रामध्यान सिंह के भतीजा केश रंजन सिंह ने बताया कि मेरे पिता जी स्व. बालेश्वर सिंह एक मित्र के माध्यम से भिखारी ठाकुर को कार्यक्रम के लिए बुलाया। पहले तो भिखारी ठाकुर मना कर दिया।

उनको भ्रम था कि कार्यक्रम के दौरान भीड़ नहीं कंट्रोल हो पाएगी। मगर जब उन्हें आश्वासन दिया गया कि कोई परेशानी नहीं होगी और भीड़ को कंट्रोल कर लिया जाएगा तो वे मान गए और लगभग 70 साल पूर्व सप्तमी के दिन अपनी टीम के साथ आएं। यहां की व्यवस्था देखकर वे प्रभावित हुए और तीन दिनों का आयोजन हुआ।

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