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Bihar News: इस फूल की खेती से मालामाल हो रहे हैं यहां के किसान, एक एकड़ में इतनी होती है कमाई; लागत भी कम

सारण जिले के एक गांव आधा दर्जन किसान गेंदे के फूल की खेती करते हैं। यह गांव गेंदा के फूल की खेती का हब बन गया है। इसकी खेती से ही उनके परिवार की परवरिश होती है। गांव के एक किसान द्वारा जो इसकी शुरूआत की गई अब उनसे प्रेरित होकर आधा दर्जन किसान आठ एकड़ में गेंदा के फूल की खेती कर रहे हैं।

By rajeev kumar Edited By: Mukul Kumar Updated: Mon, 04 Mar 2024 06:07 PM (IST)
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चंचलिया में लहलहाते गेंदा के फूल। फोटो- जागरण
राणा प्रताप सिंह, तरैया (सारण)। परंपरागत खेती को छोड़ कर प्रखंड के चंचलिया पंचायत के चंचलिया गांव में आधा दर्जन किसान गेंदे के फूल की खेती करते हैं। यह गांव गेंदा के फूल की खेती का हब बन गया है। इसकी खेती से ही उनके परिवार की परवरिश होती है।

गांव के एक किसान द्वारा जो इसकी शुरूआत की गई, अब उनसे प्रेरित होकर आधा दर्जन किसान आठ एकड़ में गेंदा के फूल की खेती कर रहे हैं। सभी किसान अब इसके अलावा रजनीगंधा व अन्य फूलों की भी खेती कर रहे हैं और आर्थिक रूप से स्वावलंबी हुये हैं।

इसका बाजार सारण जिला के साथ साथ वैशाली व पटना है। इसके कारण कोलकाता के फूलों पर निर्भरता कम हुई है। वहां वर्ष 2004 में एक-दो कट्ठा में गेंदे के फूल की खेती कर इसकी शुरुआत की गई थी। किसान अंबिका भगत ने बताया कि जैसे जैसे फूल की मांग बढ़ी, वैसे वैसे दायरा बढ़ते चला गया।

इसका बाजार सारण जिला के साथ साथ वैशाली व पटना हैं। अब लगभग 17 वर्षों से आधा दर्जन से अधिक किसान आठ एकड़ में गेंदा के फूल की खेती कर अपने व अपने चार दर्जन से अधिक स्वजनों का जीविकोपार्जन करते हैं। पारंपरिक खेती से अलग हटकर इसकी खेती से बहुत ही आर्थिक मजबूती मिली है।

गेंदे के फूल की खेती में ज्यादा आमदनी

किसान नवीन कुमार ने बताया कि अन्य की अपेक्षा गेंदे के फूल की खेती में ज्यादा आमदनी है। अगर सरकार आर्थिक मदद करती तो और बेहतर तरीके से खेती कर उत्पादन बढ़ाया जा सकता है, लेकिन अबतक कोई पहल नहीं की गई है। किसान भोला भगत ने बताया कि गेंदे के फूल के पौधे को बंगाल से मंगाया जाता है।

उसके बाद उस छोटे पौधे (चारा) की बुआई की जाती है। वह प्रति हजार छह सौ रुपये में मिलता है। यहां संसाधन की कमी के कारण बीज का उत्पादन संभव नहीं हो पाता है। इसके कारण आज भी ऊंचे कीमत पर बाहर से मंगा कर खेती की जाती है।

किसान नवल भगत ने बताया कि अन्य फसल की अपेक्षा इसकी खेती में आमदनी तो है लेकिन मेहनत कुछ ज्यादा है। समय-समय पर पटवन से लेकर कीटनाशक का छिड़काव भी किया जाता है। फसल की उन्नति के लिए जिंक, पोटाश, थाइमेक्स व डीएपी मिक्सचर पौधों में दिया जाता है।

रजनी गंधा व गुलाब की भी खेती की शुरुआत की गई

गुड्डू भगत ने बताया कि गेंदा फूल की खेती के साथ रजनी गंधा व गुलाब की भी खेती की शुरुआत की गई है। शुरुआती में लगभग पांच कठ्ठे में पिछले एक वर्षो से रजनी गंधा व गुलाब की भी खेती की जा रही है। एक कट्ठा में तीन से चार सौ पेड़ लग जाते है। उसके प्रत्येक पौधे की कीमत 70 से 80 रुपये आता है।

तैयार होने पर एक कट्ठा में 10 से 15 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है। गेंदा के फूल में एक कट्ठा में लागत खर्च 25 सौ से तीन हजार की लगती है। उससे 10 से 12 हजार की आमदनी हो जाती है। अभी सभी किसान मिलकर लगभग आठ एकड़ के इसकी खेती कर रहे हैं।

गेंदा के फूल की खेती एक वर्ष में तीन बार गर्मी, सर्दी व बरसात के समय की जाती है। जनवरी से अप्रैल, मई से अगस्त व सितंबर से दिसंबर में चार-चार माह पर गेंदा के फूल की बुआई होती है।

फूल की खेती का सर्वे करने बहुत से पदाधिकारी आए

फूल की खेती देखने के लिये बहुत पदाधिकारी आए और आश्वासन देकर चले गए। किसान अजय भगत व अरविंद भगत ने बताया कि गेंदे के फूल की खेती का सर्वे करने बहुत से पदाधिकारी आए।

इसमें नाबार्ड के उपमुख्य प्रबंधक, डीपीएम, डीएओ, डीडीएम सारण समेत वर्ल्ड बैंक के कर्मी भी चंचलिया गांव में आकर गेंदे के फूल की खेती का सर्वे कर चुके हैं।

उस समय नाबार्ड द्वारा आश्वासन दिया गया था कि पोली कैब या ग्रीन हाऊस बनाकर गेंदे के फूल के बीज का उत्पादन किया जाएगा, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। वैसे उद्यान विभाग द्वारा पिछले दो वर्षो से प्रोत्साहन राशि राशि दी जाती है।

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