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सारण के दो शिक्षकों को राष्ट्रपति आज करेंगे पुरस्कृत

सारण। इस वर्ष शिक्षक दिवस (5 सितंबर)पर सारण के शिक्षकों के लिए गर्व की बात है कि उनके द

By Edited By: Updated: Mon, 05 Sep 2016 02:51 AM (IST)
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सारण।

इस वर्ष शिक्षक दिवस (5 सितंबर)पर सारण के शिक्षकों के लिए गर्व की बात है कि उनके दो साथी को देश का सर्वोच्च शिक्षक सम्मान यानि राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार मिलेगा। उन्हें राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी यह पुरस्कार देंगे। वही दूसरी ओर शिक्षक दिवस पर भी सारण के करीब 20 हजार शिक्षकों के हाथ खाली रहेंगे। उन्हें बिना वेतन के ही शिक्षक दिवस मनाना होगा। इस के बीच सारण के दो मध्य विद्यालय के शिक्षकों को राष्ट्रपति पुरस्कार मिल रहा है। जिले के उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय औली, रिविलगंज के शिक्षक विनय कुमार दुबे एवं उत्क्रमित मध्य विद्यालय सरगट्टी, गड़खा के प्रभारी प्रधानाध्यापक सारंगधर सिंह का चयन राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार(राष्ट्रपति पुरस्कार) मिलेगा। शिक्षक दिवस पर अमृतेश की विशेष रिपोर्ट ...

शिक्षक दिवस पर 20 हजार शिक्षकों के हाथ खाली

-शिक्षक दिवस पर भी सारण के 20 हजार शिक्षकों के हाथ खाली

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-प्रारंभिक शिक्षकों का दो माह व माध्यमिक शिक्षकों का पांच माह का वेतन बकाया

जागरण संवाददाता, छपरा :

सारण में इस बार बिना वेतन के ही शिक्षकों को शिक्षक दिवस मनाना पड़ेगा। जिले के 20 हजार शिक्षकों का हाथ खाली रहेगा। यह स्थिति तब है जब शिक्षकों के वेतन के लिए खाते में करोड़ों रूपये पड़ा हुआ है। 16 हजार प्रारंभिक एवं 4 हजार माध्यमिक शिक्षक वेतन के लिए टकटकी लगाये बैठे रह गये। वेतन के लिए शिक्षकों ने डीईओ से लेकर डीपीओ तक को बंधक भी बनाया था। लेकिन फिर भी नतीजा सिफर निकला। जिससे शिक्षकों में आक्रोश पनप रहा है। उल्लेखनीय हो कि प्रारंभिक शिक्षकों का दो माह जुलाई अगस्त व माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों का पांच माह अप्रैल, मई, जून, जुलाई, अगस्त तक वेतन बकाया है। शिक्षक वेतन भुगतान की मांग को लेकर आंदोलन तक कर चुके है। लेकिन उन्हें वेतन नहीं मिल सका। परिवर्तनकारी शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष समरेंद्र बहादुर सिंह ने कहा कि वेतन के लिए शिक्षकों को आंदोलन करना पड़ रहा है। इससे दुख:द क्या हो सकता है। माध्यमिक शिक्षक संघ के सचिव राजा जी राजेश ने कहा कि शिक्षा विभाग के पदाधिकारियों के लापरवाही के कारण शिक्षक दिवस पर भी शिक्षकों के हाथ खाली है।

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सारंगधर ने स्कूल के प्रति छात्रों का बढ़ाया आकर्षण

छपरा : उत्क्रमित मध्य विद्यालय सरगट्टी के प्रभारी प्रधानाध्यापक सारंगधर सिंह जब कन्या प्राथमिक विद्यालय छोटा तेलपा, छपरा से स्थानांतरित होकर 17 सितंबर 2012 को उत्क्रमित मध्य विद्यालय सरगट्टी में आये तो यहां छात्रों की संख्या मात्र दौ सौ के आस-पास थी। इस विद्यालय में नामांकित छात्र भी प्रतिदिन नहीं आते थे। यहां नामांकन के बाद वे कही दूसरे निजी विद्यालय एवं कोचिंग सेंटर में पढ़ते थे। जिससे वे बहुत व्याकुल हो उठे। इसे रोकने के लिए वे सबसे पहले विद्यालयों के शिक्षकों की बैठक कर नियमित वर्ग संचालन एवं अतिरिक्त गतिविधि बढ़ाने का निर्णय लिए। दरियापुर के पिरारी गांव के मूल निवासी आचार्य सारंगधर सिंह कहते है कि वे पहले अभिभावकों से संपर्क कर नियमित विद्यालय भेजने का आग्रह किये। इसके बाद विद्यालय को व्यवस्थित किए। खिड़की दरवाजा लगाया। इसके बाद छात्रों का आकर्षण बढ़े इसके लिए अतिरिक्त गतिविधि को बढ़ाए। खेलकूद के साथ ही, नियमिति चेतना सत्र के दौरान महापुरूषो की जीवनी बताया जाने लगा। पुस्तकालय को व्यवस्थित किया गया। स्कांउट एंड गाइड की यूनिट को व्यवस्थित किया गया। स्कूलों मे पढ़ाई के साथ वाद-विवाद प्रतियोगिता, बाल संसद का गठन किया गया। उन्होंने एचएम कक्ष से लेकर सभी कक्षाओं का नामकरण महापुरूषों के नाम से नामांकित किया है ताकि उनके बारे में बच्चों को जानने की जिज्ञासा हो। वे उनके जैसा बनने की प्रेरणा ले सके। जयंती एवं अन्य गतिविधि सालों भर चलता है, शायद उत्क्रमति मध्य विद्यालय सगरट्टी पहला मध्य विद्यालय होगा जिसका अपना कुलगीत -हम जलाते चलें ज्ञान के दीप को एवं स्मारिका प्रकाशित होता होगा। सारंगधर सिंह कई पुस्तक के लेखन कार्य भी कर चुके है। शिक्षक रहते वे नालंदा खुला विश्वविद्यालय पटना से भोजपुरी में एमए किए। जिसमें सेकेड टापर रहे। इसके अलावा उन्हें विद्या सागर सम्मान समेत कई पुरस्कार मिल चुका है।

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वर्ग संचालन के प्रति सजग हैं विनय

छपरा : रिविलगंज प्रखण्ड के माडल स्कूल उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय, औली के प्रभारी प्रधानाध्यापक विनय कुमार दुबे नियमित वर्ग संचालन के प्रति सजग हैं। वे प्रतिदिन वर्ग संचालित हो इसके प्रति हमेशा प्रयासरत रहते है। इसके अलावा वे विद्यालय में पर्यावरण के प्रति भी अलख जगाए हैं। इनके विद्यालय को देखकर ऐसा लगता है कि हम किसी फूलवारी में विद्या ग्रहण कर रहे है। श्री दुबे को शैक्षणिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए कई सम्मान मिल चुका है। विगत वर्ष श्री कृष्ण मेमोरियल हाल,पटना में 05 सितंबर को शिक्षक दिवस के अवसर पर बिहार सरकार की ओर से राजकीय सम्मान दिया गया था। वर्ष 2012 में शिक्षक दिवस के अवसर पर जिला स्तरीय उत्कृष्ट शिक्षण पुरस्कार, वर्ष 2013 में राज्य स्तर पर सारण जिला का एक मात्र उत्कृष्ट विद्यालय पुरस्कार, वर्ष 2015 में सारण जिला में पौधारोपण के लिए वन प्रमंडल पदाधिकारी द्वारा सम्मानित किया गया था। मूल रुप से मांझी प्रखण्ड अन्तर्गत बंगरा गाव के निवासी एवं प्रभारी प्रधानाध्यापक विनय कुमार दुबे ने बताया कि ईमानदारी पूर्वक किए गए प्रयास के बदौलत मिली कामयाबी से वे बहुत खुश हैं। उन्होंने ने कहा कि स्कूल एवं बच्चों के हित के लिए लगातार अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए प्रयास करते रहेंगे। विद्यालय की सुदृढ़ व्यवस्था एवं बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में अपने सहयोगी शिक्षकों का भी महत्वपूर्ण योगदान देने की बात कही। उन्होंने कहा कि विद्यालय की सफाई, नियमित वर्ग संचालन एवं मध्याह्न भोजन, बच्चों को अनुशासित रखने में शिक्षकों सहित अभिभावकों का भी सहयोग मिलता है। आधुनिक संसाधनों से परिपूर्ण यह विद्यालय प्रखण्ड ही नहीं जिला स्तर पर शायद इकलौता है। गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा भी बच्चों को यहां मिलता है।

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मानव जब जोर लगाता है पत्थर..

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-15 साल से शिक्षा की अलख जगा रही है दिव्यांग महिला

विजय कुमार, परसा :

मानव जब जोर लगाता है पत्थर भी पानी बन जाता है.. राष्ट्रकवि दिनकर की यह कविता दिव्यांग महिला लतीफन खातुन पर अक्षरश: बैठती है। अपने जीवन का 60 बसंत देख चुकी परसा प्रखंड के पचलख तख्त गांव की सैनुलाह अंसारी की पत्‍‌नी लतीफन खातुन को जब बुढ़ापा सताने लगा तो उन्होंने इसे अपने शिक्षा के हथियार से दूर कर लिया। अरबी विषय से फोकनिया(मैट्रिक) पास लतीफन खातुन ने गांव के बच्चों को उर्दू व अरबी विषय बढ़ाने लगी। इसके अलावा वे हिन्दी व गणित के जोड़, घटाव, गुणा व भाग भी सिखाती है। लतीफन खुद से चल नहीं पाती है। फिर भी उनमें इतना हौसला है कि वे सुबह -शाम बच्चों को पढ़ा रही है। वह भी पिछले 15 सालों से बच्चों को पढ़ा रही है। यह अब इनकी दिनचर्चा में शामिल हो चुका है। ऐसा नहीं है कि लतीफन अकेली है, इनका भरा -पूरा परिवार है पांच बेटे व तीन बेटियों व नाती व पोता है। वे बिना सरकारी सहायता के ही बच्चों को पढ़ाती है। वे कहती है उन्हें कोई सहायता नहीं चाहिए। लेकिन विधान सभा चुनाव व पंचायत चुनाव में नेता गांव में आये तो वे उनके कार्य प्रशंसा करते हुये बच्चों के पढ़ने के लिए बेंच -टेस्क व अन्य सुविधा देने का वादा जरूर किया लेकिन इसके बाद वे नहीं आये। गांव में बच्चों उन्हें टीचर दादी कह कर पुकाराते है। गांव के लोग भी उनके इस कार्य के लिए अदब से देखते है।