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प्रखंड पर्यटन दर्शनीय बिहार : अलग-अलग स्वरूपों में भक्तों को दर्शन देती हैं दस महाविद्या मंदिर की माताएं

Bihar Tourism उत्तर बिहार में शिवहर जिले में पहला ऐसा मंदिर है जहां माता शक्ति के 10 रूपों की अलग-अलग मूर्तियां स्थापित की गई हैं। यहां वर्ष 1854 में राजा शिवराज नंदन सिंह बहादुर मालिक ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। नवरात्र के अवसर पर यहां बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। यह स्थान पर्यटकों को भी आकर्षित करता है।

By Neeraj Kumar Edited By: Yogesh Sahu Updated: Thu, 26 Sep 2024 06:08 PM (IST)
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शिवहर स्थित दस महाविद्या मंदिर में माता की मूर्ति।
नीरज, शिवहर। शिव और हरि की मिलन स्थली शिवहर। यहां कण-कण में आस्था व भक्ति विद्यमान है। इस धरा पर 108 शिवालय हैं तो 54 देवालय, 122 राम जानकी और 80 हनुमान मंदिर हैं। आस्था के इस केंद्र में एक स्थल 10 महाविद्या देवी मंदिर भी है, जहां 10 स्वरूपों में माता विराजमान हैं।

इस मंदिर में मां दुर्गा के अलावा काली, तारा, छिन्नमस्तिका, बगलामुखी, मां षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर सुंदरी, मातंगी और मां धूमावती की 1200 साल पुरानी प्रतिमाएं हैं। उत्तर बिहार का यह इकलौता देवी मंदिर है।

जहां एक साथ माता की 10 प्रतिमाएं स्थापित हैं। मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, पूर्वी व पश्चिम चंपारण, गोपालगंज के अलावा उत्तर बिहार के विभिन्न जिलों तथा नेपाल से श्रद्धालु माता के दर्शन व पूजन को आते हैं।

शिवहर जिला मुख्यालय से 800 मीटर की दूरी पर शहर के बीच स्थापित इस मंदिर का निर्माण शिवहर के राजा शिवराज नंदन सिंह बहादुर मालिक ने वर्ष 1854 में कराया था।

राजा इन प्रतिमाओं को कोलकाता, विंध्याचल व दिल्ली सहित देश के अलग-अलग सिद्धस्थलों के मंदिरों से लेकर आए थे।

उस समय ये प्रतिमाएं एक हजार साल से अधिक पुरानी थीं। यहां स्थापित मां काली की प्रतिमा बेतिया राज दरबार मंदिर में स्थापित प्रतिमा से काफी मिलती-जुलती है। यह मंदिर सिद्धपीठ के रूप में विख्यात है।

यहां माता की सभी प्रतिमाएं तांत्रिक विधि से स्थापित की गई हैं। वर्ष 1921 1922 में भूकंप के दौरान मंदिर ध्वस्त हो गया था। राज दरबार द्वारा 99 साल पूर्व इसका जीर्णोद्धार कराया गया था।

माता की प्रेरणा से राजा ने कराया था मंदिर का निर्माण

राज दरबार की छोटी रानी परिसर स्थित 10 महाविद्या मंदिर सिद्धि व शक्ति के साथ आस्था और भक्ति का केंद्र है। राजा शिवराज नंदन धार्मिक प्रवृत्ति के थे।

वह प्रतिदिन माता की पूजा- अर्चना करते थे। माता की प्रेरणा से उन्होंने राज दरबार परिसर में मंदिर का निर्माण करा प्रतिमा स्थापित की।

उन्होंने विद्वान तांत्रिक के सहयोग से शाक्त प्रमोद नामक एक पुस्तक का भी प्रकाशन कराया था। खेमराज श्रीकृष्णदास वेंकटेश्वर छापाखाना मुंबई से इसकी छपाई कराई थी। इस पुस्तक में दस महाविद्या पूजन के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है।

उन्होंने इसके मंत्रों का संग्रह विभिन्न विद्वान तांत्रिक एवं पंडितों से कराया तथा राजगुरु पंडित रघुराज देव जी महाराज ने इसे संशोधित किया था।

बीच शहर में मंदिर होने के कारण यहां ठहरने और खाने-पीने की कोई समस्या नहीं होती। मंदिर के आस-पास मोहल्ले और बाजार हैं। ठहरने के लिए मंदिर के 500 मीटर के दायरे में कई होटल भी हैं।

रोग से मिलती है मुक्ति

पुजारी सिकिल तिवारी के अनुसार यहां स्थापित प्रतिमाएं प्राचीन काल की हैं व धातु से बनी हैं। भक्त यहां पुत्र प्राप्ति, सुख, शांति व समृद्धि, रोगों व प्रेत बाधाओं से मुक्ति के लिए आते हैं। मन्नत पूरी होने पर नारियल व चुनरी चढ़ाते हैं। रोजाना यहां करीब दो सौ श्रद्धालु दर्शन को आते हैं।

नवरात्र के दौरान प्रतिदिन 500 भक्त पहुंचते हैं। शिवहर राज दरबार परिवार के सदस्य सह नगर परिषद के सभापति राजन नंदन सिंह बताते हैं कि इस मंदिर में स्थापित प्रतिमाएं काफी जागृत हैं।

यहां मत्था टेकने मात्र से हर मन्नत पूरी होती है। वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अजब लाल चौधरी बताते हैं कि यह स्थल सिद्धि व शक्ति का केंद्र है।

ऐसे पहुंचें

मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन से शिवहर 10 महाविद्या मंदिर की दूरी 55 किमी है। मुजफ्फरपुर से बस या आटो से यहां पहुंचा जा सकता है।

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