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Bihar News: कभी बाढ़ और सूखे की मार से परेशान थे शिवहर के ये किसान, आज आधुनिक खेती से कर रहे मोटी कमाई

Modern Farming in Shivhar बाढ़ और सूखे दोनों का प्रकोप झेलने वाले बिहार के शिवहर जिले के किसान उमाशंकर कुंवर ने खेती से समृद्धि की राह खोज निकाली है। आज उनकी इस सफल कोशिश का अनुसरण जिले के 300 से अधिक किसान कर रहे। परंपरागत खेती छोड़कर मक्का और सब्जी की खेती कर दूसरे प्रदेशों तक इसकी बिक्री कर रहे हैं।

By Jagran News Edited By: Mohit Tripathi Updated: Sun, 07 Apr 2024 07:20 PM (IST)
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जिस फसल का सिर्फ नाम सुना था, आज उससे अच्छा दाम पा रहे। (जागरण फोटो)
नीरज, शिवहर। Modern Cocropping Farming in Shivhar । कभी बाढ़ तो कभी सूखे की मार झेलने वाले बिहार के शिवहर जिले के किसान उमाशंकर कुंवर ने खेती से समृद्धि की राह खोज निकाली है। उनके सफल प्रयास का अनुसरण जिले के 300 से अधिक किसान कर रहे हैं। परंपरागत धान-गेहूं छोड़कर मक्का और सब्जी की खेती कर दूसरे राज्यों तक इसकी बिक्री कर रहे हैं।

जिस बेबीकॉर्न का नाम डेढ़ साल पहले तक किसानों ने सिर्फ सुना था, आज इसकी उपज उनके खेत में लहलहाती दिखती है। इसे बेचने के लिए सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की चिंता नहीं है। व्यापारी खेत तक पहुंच खरीदारी करते हैं।

कभी बाढ़ तो कभी सूखे भेंट चढ़ जाती थी फसल 

जिले के तरियानी प्रखंड की अटकोनी पंचायत निवासी 58 वर्षीय किसान उमाशंकर कुंवर 20 एकड़ की अपनी पुश्तैनी जमीन पर पहले परंपरागत धान और गेहूं की खेती करते थे।

कभी बागमती नदी की बाढ़ तो कभी सूखे भेंट फसल चढ़ जाती थी। जिस वर्ष मौसम ने साथ दिया, अच्छी फसल हुई। उससे भी बहुत फायदा नहीं होता था। ऐसे में उन्होंने वर्ष 2005 में परंपरागत खेती छोड़ कुछ नया करने का निर्णय लिया।

कृषि विज्ञानियों की सलाह से शुरू की मक्के और सब्जी की खेती

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय रांची और डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा समस्तीपुर से सब्जी और मक्का की खेती का प्रशिक्षण प्राप्त किया। शिवहर कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानियों से सलाह ली। इसके बाद मक्का और सब्जी की खेती करने लगे।

अब इन फसलों का भी करते हैं उत्पादन

वे मक्के के अलावा, काला आलू, लाल आलू, काला शकरकंद, लहसुन, प्याज, गोभी, मिर्च, लाल व काली मूली, टमाटर व बैंगन जैसी फसलों की खेती करते हैं। पहले साल में दो फसल ही ले पाते थे। अब सहफसली खेती के जरिए एक समय में तीन से चार फसल का उत्पादन करते हैं।

डेढ़ वर्ष पहले उन्होंने दो एकड़ में बेबीकॉर्न की खेती शुरू की। वे बेबीकॉर्न के साथ तंबाकू, मिर्च और लहसुन भी लगाते हैं। बेबीकॉर्न 70 दिनों में तैयार हो जाता है। एक एकड़ में इसका 16 से 17 क्विंटल उत्पादन होता है। साल में तीन बार बेबीकॉर्न की खेती हो जाती है। तीन से चार हजार प्रति क्विंटल की दर से बेबीकॉर्न बिक जाता है।

खेत तक पहुंचकर बेबीकॉर्न

मुजफ्फरपुर के अलावा उत्तर प्रदेश के व्यवसायी खेत तक पहुंचकर बेबीकॉर्न ले जाते हैं। बेबीकॉर्न के साथ ही उनके खेत से तंबाकू, लहसुन और मिर्च भी निकलता है। जिनका वजन 150 क्विंटल तक होता है। सहफसली से कीटों का प्रकोप कम हो जाता है। इससे उनकी आय तीन गुना बढ़कर करीब सात लाख रुपये सालाना हो गई है। बेहतर खेती के लिए वर्ष 2007 में राज्य सरकार उन्हें किसान भूषण के सम्मान से सम्मानित कर चुकी है।

जागरूक हुए किसान, बदली इलाके की तस्वीर

पिछले तीन-चार साल में न सिर्फ अटकोनी पंचायत की तस्वीर बदली है, बल्कि आसपास के मुशहरी, वृंदावन, एराजी छतौनी और राजाडीह सहित अन्य गांवों के 300 से अधिक किसान उनकी प्रेरणा से परंपरागत खेती छोड़ सब्जी उगा रहे हैं। इनके गांव की सब्जियां उत्तर प्रदेश के लखनऊ, गोरखपुर और अयोध्या के बाजार तक पहुंच रही हैं।

क्या कहते हैं साथी किसान

किसान कृष्णनंदन सहनी, गोपाल सिंह सहित अन्य किसान सब्जी उत्पादन कर समृद्ध बने हैं। इन किसानों का कहना है कि न तो बाजार की चिंता है और ना ही समर्थन मूल्य का लोचा। एक हजार लगाते हैं और तीन हजार कमाते हैं।

शिवशंकर कुमार उर्फ नथुनी बताते हैं कि उमाशंकर कुंवर की खेती की पहल पर गांव की आर्थिकी बदल गई है। वे आसपास के किसानों को भी खेती की नई तकनीक बताते हैं। साथ ही उपज को बाजार दिलाने में सहयोग करते हैं। खेती की बदौलत किसान अपने बच्चों को दूसरे प्रदेशों में उच्च शिक्षा दिला रहे हैं।

इन किसानों का कहना है कि एमएसपी से अधिक जरूरी है कि सरकार उन्नत बीज, खाद व मिट्टी जांच की व्यवस्था ठीक से कराए। फसल रखने के लिए गोदाम का निर्माण कराना भी जरूरी है।

अटकोनी पंचायत की मुखिया कमलेश देवी बताती हैं कि उमाशंकर कुंवर की पहल पर खेती के जरिए किसान आर्थिक रूप से सशक्त बन रहे हैं। उनसे प्रेरित होकर काला आलू व सब्जी की खेती कर रहे हैं। तरियानी के कृषि पदाधिकारी मुनेश्वर प्रसाद सिंह बताते हैं कि उमाशंकर कुंवर सहित सैकड़ों किसानों ने खेती के जरिए सफलता की कहानी रची है।

क्या कहते हैं उमाशंकर कुंवर

शुरुआती दिनों में उन्नत बीज नहीं मिलते थे। अच्छे बीज वाले संस्थान नहीं थे। सरकारी तौर पर ट्रेनिंग जैसी व्यवस्था नहीं थी। अब तो स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र के अलावा डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानियों से सलाह और प्रशिक्षण मिल जाता है। अब सलाद वाली मटर, सब्जी वाली अरहर और सोयाबीन की खेती की तैयारी है। यहां पहले सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर के कारोबारी सब्जी और अनाज खरीदने आते थे। उन्हीं के जरिए पहले पटना और बाद में उत्तर प्रदेश के कारोबारियों से संपर्क हुआ। इसके बाद कई और व्यापारियों से मोबाइल पर संपर्क बनता गया। उनके लोग वाहन लेकर आते हैं और कीमत तय होने के बाद भुगतान कर उत्पाद ले जाते हैं। -उमाशंकर कुंवर, किसान

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