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Bihar News: विवादों में घिरा विष्णु धाम महोत्सव , सांसद-विधायक को निमंत्रण नहीं; लोगों में आक्रोश

विष्णु धाम मंदिर को शुन्य से शिखर तक ले जाने वाले और इस पांच दिवसीय महोत्सव की शुरुआत करने वाले बरबीघा के प्रख्यात चिकित्सक डा कृष्ण मुरारी प्रसाद सिंह की भी मेले में खुलेआम उपेक्षा कर दी गई। अध्यक्ष सहित मंदिर कमिटी पर कथित रूप से पैसे की गड़बड़ी का आरोप लगाकर दूसरी बार बिहार धार्मिक न्यास को पत्र लिखा गया।

By Arun SathiEdited By: Jeet KumarUpdated: Fri, 24 Nov 2023 04:00 AM (IST)
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विवादों में घिरा विष्णु धाम महोत्सव , सांसद-विधायक को निमंत्रण नहीं ( सांकेतिक तस्वीर)

जागरण संवाददाता, शेखुपरा। शेखपुरा जिले की पहचान विष्णु धाम महोत्सव विवादों में घिर गया है। विष्णु धाम मंदिर पर कब्जा को लेकर हुए इस विवाद की शुरुआत में जहां विष्णु धाम मंदिर समिति के अध्यक्ष को दरकिनार कर महोत्सव का आयोजन स्थानीय दबंग के द्वारा किया गया। वहीं मेला समिति के अध्यक्ष जबरन बनाकर महोत्सव की शुरुआत कर दी गई।

वहीं इसमें ग्रामीण राजनीति के साथ-साथ राजनीति में प्रतिद्वंदियों को भी दरकिनार कर दिया गया। बताया जा रहा है कि स्थानीय सांसद चंदन सिंह एवं विधायक सुदर्शन कुमार को इसके लिए निमंत्रण नहीं दिया गया। दोनों स्थानीय जन प्रतिनिधि की अपेक्षा की लोग मेला में चर्चा करते रहे ।

दूसरी बार बिहार धार्मिक न्यास को पत्र लिखा गया

वहीं विष्णु धाम मंदिर को शुन्य से शिखर तक ले जाने वाले और इस पांच दिवसीय महोत्सव की शुरुआत करने वाले बरबीघा के प्रख्यात चिकित्सक डा कृष्ण मुरारी प्रसाद सिंह की भी मेले में खुलेआम उपेक्षा कर दी गई। अध्यक्ष सहित मंदिर कमिटी पर कथित रूप से पैसे की गड़बड़ी का आरोप लगाकर दूसरी बार बिहार धार्मिक न्यास को पत्र लिखा गया।

बताया जा रहा है की पहली बार पत्र लिखने पर धार्मिक न्यास बोर्ड ने किसी भी तरह की गड़बड़ी नहीं पाई। इसके बाद क्लीन चिट देते हुए दूसरी बार भी वर्तमान अध्यक्ष डॉ कृष्ण मुरारी प्रसाद सिंह को ही अध्यक्ष मनाते हुए कमेटी को बरकरार रखा।

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कृष्ण मुरारी सिंह ने मंदिर के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाई

बता दें कि डॉ कृष्ण मुरारी सिंह ने स्थानीय स्तर पर चिकित्सकों से दान लेकर मंदिर के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाई। महोत्सव का आयोजन कर उत्तर भारत के तिरुपति के रूप में इसकी पहचान को बनाया। वहीं उस समय धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष डॉ किशोर कुणाल को यहां बुलाकर इसकी अलग पहचान दिलाने में उनकी सक्रिय भूमिका रही। अब जब मंदिर के गुंबद तक का निर्माण हो गया तो मंदिर पर कब्जे को लेकर ग्रामीण जबरदस्त राजनीति करने लगे।