सामाजिक सद्भाव की मिसाल: राम-जानकी और हनुमान के लिए कपड़े सिलता है 'अल्लाह' का बंदा
भगवान श्रीराम और माता जानकी को लेकर अयोध्या और सीतामढ़ी भक्ति की डोर में बंधी है और इस डोर को और अधिक मजबूत कर रहे हैं सीतामढ़ी शहर के मुर्गियाचक निवासी मो. अब्दुल कादिर व उनके पुत्र मो. सुहैल। 26 बसंत पार कर चुके सुहैल पूछे जाने पर बताते हैं कि यह तो उनका पेशा है। सुहैल को ईश्वर अल्लाह व वाहे गुरु में कोई फर्क नहीं नजर आता है।
अमित सौरभ, सीतामढ़ी। दशकों से भगवान के कपड़े सिल रहे 'अल्लाह का बंदा', इन दिनों भगवान श्रीराम, माता जानकी और वीर हनुमान के लिए कपड़े सिलाई कर सामाजिक सद्भाव की सुंदर मिसाल पेश कर रहा है। अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले रामलला के प्राण प्रतिष्ठा को लेकर माता जानकी की जन्मस्थली सीतामढ़ी भी चर्चा में है।
भगवान श्रीराम और माता जानकी को लेकर अयोध्या और सीतामढ़ी भक्ति की डोर में बंधी है और इस डोर को और अधिक मजबूत कर रहे हैं सीतामढ़ी शहर के मुर्गियाचक निवासी मो. अब्दुल कादिर व उनके पुत्र मो. सुहैल। पिछली तीन पीढ़ियों से जानकी स्थान स्थित राम, लक्ष्मण, जानकी और हनुमान तथा कोट बाजार स्थित दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर सहित आसपास के मंदिरों के भगवान के लिए कपड़ा सील रहे अब्दुल कादिर और उनके पुत्र सुहैल इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
रामोत्सव की धूम में बढ़ गया काम
नवरात्र समेत विभिन्न धार्मिक आयोजन पर आम जनता भी भगवान को चढ़ाने के लिए इन्हीं के पास कपड़ा सिलवाते रहे हैं। अभी रामोत्सव की धूम है लिहाजा काम बढ़ गया है। रोजाना 40 से 50 कपड़े यहां तैयार किए जा रहे है। इसके अलावा, राम पताका का भी निर्माण कराया जा रहा है। शहर के मुर्गियाचक निवासी मो. अब्दुल कादिर कोट बाजार स्थित हनुमान मंदिर के ठीक सटे परिवार टेलर्स नामक दर्जी की दुकान खोल रखी है। इसे उनके दादा मो. मुस्तफा ने पांच दशक पूर्व खोली थी।सामाजिक सद्भाव की मिसाल
इसके बाद मो. अब्दुल कादिर और अब उनके पुत्र मो. सुहैल लोगों का कपड़ा सिलते हैं, लेकिन इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि रामजानकी मंदिर, जानकी स्थान स्थित भगवान श्री राम, माता जानकी, लक्ष्मण व वीर हनुमान समेत तमाम देवी देवताओं के कपड़े सिलते हैं। यही वजह है कि वे सामाजिक सद्भाव की मिसाल बन गए हैं।26 बसंत पार कर चुके सुहैल पूछे जाने पर बताते हैं कि यह तो उनका पेशा है। स्नातक तक की शिक्षा हासिल कर अपने पुश्तैनी कारोबार में लगे मो. सुहैल को ईश्वर, अल्लाह, गॉड व वाहे गुरु में कोई फर्क नहीं नजर आता है। कहते हैं कि ईश्वर एक है। बताते हैं कि मंदिर के ठीक पास होने की वजह से वह और उनके पुरखे कपड़ा सिलते रहे हैं। उनके दादा मो मुस्तफा, पिता के बाद वह लगातार मंदिरों के भगवान के लिए कपड़ा सिलते रहे हैं। सिलाई की कोई कीमत नहीं है। जो मिलता है उसे रख लेते हैं।
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