सुनील Vs सुनील: बिहार की सीतामढ़ी सीट पर अनूठा मुकाबला, रेफरी बनेंगे सवर्ण मतदाता
Bihar Assembly Election 2025: बिहार के सीतामढ़ी में विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी ज़ोरों पर है। यहाँ मुकाबला दिलचस्प है क्योंकि भाजपा के सुनील कुमार पिंटू और राजद के सुनील कुमार कुशवाहा फिर से आमने-सामने हैं। जातीय समीकरण और विकास के मुद्दे अहम हैं, और सवर्ण मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। देखना यह है कि इस बार कौन सुनील बाजी मारता है।

इस खबर में प्रतीकात्मक तस्वीर लगाई गई है।
अनिल तिवारी, सीतामढ़ी। Bihar Assembly Election 2025: जगत जननी माता सीता की धरती पर चुनावी रणभूमि सज गई है। प्रचार का शोर भी तेज होने लगा है।
वोटरों को मनाने और रिझाने की कवायद जोरों पर है। आज हम इस सीट का ग्राउंड रिपोर्ट जानने निकले हैं। हम इस समय शहर के प्रसिद्ध डुमरा शंकर चौक पर हैं। यहीं पर किराना दुकान चला रहे विनय कुमार से भेंट होती हैं।
चुनाव के बारे में पूछे जाने पर कहते हैं-साहब कुछ लोग बड़ी-बड़ी जातियों का समीकरण समझा रहे हैं लेकिन वे यह नहीं जानते एक चुटकी नमक, एक चुटकी हल्दी, एक चुटकी गर्म मशाला से ही कोई भी सब्जी जायकेदार बनती है।
उनका इशारा छोटी-छोटी जातियों की ओर है जिन्हें किसी समीकरण में नहीं जोड़ा जाता है और वे काफी गुपचुप ढ़ंग से मतदान करते हैं। आगे कहते हैं-साहब समझ में नहीं आए तो पिछला चुनाव परिणाम देख लीजिएगा तब यहां करीब तीन हजार वोट लेकर नोटा तीसरे स्थान पर रहा था।
जो चुप है उसकी गहराई नापना मुश्किल है। यहीं पर मिलते हैं रिटायर्ड शिक्षाकर्मी रामकिशोर सिंह। पहले कुछ बोलने को तैयार नहीं होते हैं। काफी कुरदेने पर कहते हैं-बाबू, हमलोगों के लिए राजनीति में कुछ शेष नहीं रहा।
जिसके हमलोग कोर वोटर कहे जाते हैं उस समाज से जिले में मात्र दो उम्मीदवार हैं। यहां भी गजब की स्थिति है। किसे वोट दिया जाए समझ में नहीं आता। एक गले से नीचे नहीं उतरता तो दूसरा अब विश्वास के काबिल नहीं लगता।
खैर, स्थिति चाहे जो हो इस दोनों सुनील की लड़ाई में हमारा सवर्ण समाज ही रेफरी होगा।यह जिधर हाथ उठाएगा ताज...। हम आगे बढ़ते हैं पहुंचते हैं लगमा गांव मिलते हैं इस पंचायत के पूर्व मुखिया सरोज कुमार दूबे।
कहते हैं-इस बार लड़ाई काफी रोचक है। दोनों प्रत्याशी एक ही राशि के हैं। मतदाता अभी यह तय नहीं कर पाएं कि वे किधर जाएं। जो हल्ला आप सुन रहे हैं वह इन दोनों की पार्टियों के कार्यकर्ता ही हैं। निष्पक्ष मतदाता अभी वेट एंड वाच की स्थिति में है।
उसके समक्ष विकास सबसे बड़ा मुद्दा है। शहर की खराब सड़कें, अधूरा ओवरब्रिज, बदहाल हवाई अडडा, बेहतर चिकित्सीय सेवा का अभाव और पेयजल संकट उसके समक्ष बड़ा सवाल बनकर खड़ा है।इसका निदान कौन और कैसे करेगा वह उन्हें अपने विश्वास की कसौटी पर अभी तौल रहा है।
इसलिए अभी थोड़ा इंतजार कीजिए। इसके आगे मिलते हैं अधिवक्ता रामहृदय मोहन। कहते है- देखिए, यहां की लड़ाई अब बिल्कुल साफ है। जनसुराज के प्रत्याशी ज्याउद्दीन खां के मैदान से बाहर आने के साथ ही यहां सीधी लड़ाई की संभावना बन रही है।
लड़ाई के योद्धा भी चिर परिचित हैं। 2015 में जिन दो सुनील (भाजपा से सुनील कुमार पिंटू और राजद से सुनील कुमार उर्फ सुनील कुशवाहा) के बीच मुकाबला हुआ था इस बार भी यहीं दोनों योद्धा मैदान में हैं। सुनील कुमार कुशवाहा 2015 में पहली बार चुनाव लड़ने उतरे और भाजपा के सुनील कुमार पिंटू को लगभग 15 हजार वोटों से हराकर विधायक बन गए।
इसके बाद 2020 में वे भाजपा के मिथिलेश कुमार से 12 हजार वोटों से चुनाव हार गए। इस बार भाजपा ने फिर से सुनील पिंटू को उनके मुकाबले में उतार दिया है। सुनील पिंटू को मैदान में उतारने से विरोध प्रदर्शन में जुटे विधायक मिथिलेश समर्थक कार्यकर्ताओं का आक्रोश धीरे-धीरे थम सा गया है, लेकिन ...।
दरअसल, वैश्य, कुशवाहा व मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर सवर्ण और यादव मतदाता निर्णायक की भूमिका में रहते हैं। भाजपा और राजद ने इस सीट के अतिरिक्त अपने-अपने कोटे की किसी भी सीट पर सवर्ण को मौका नहीं दिया है।
यहीं कारण है कि भाजपा ने अपने सभी प्रत्याशियों की नामांकन सभा में राजस्थान के मुख्यमंत्री, मंत्री, व जम्मू कश्मीर के कुछ सवर्ण सांसदों को बुलाकर यह संदेश देने की कोशिश की कि उसके शीर्ष नेतृत्व के लिए सवर्ण मतदाताओं की काफी अहमियत है।
वहीं दूसरी ओर जनसुराज के प्रत्याशी वरिष्ठ नेता ज्याउद्दीन खां द्वारा यह कहते हुए कि अपने समाज के लोगों को परेशानी नहीं हो इसलिए दूसरी बार कुर्बानी दे रहा हूं..., नामांकन वापस लेना बहुत कुछ स्पष्ट कर देता हैं। इसके बाद भी 13 प्रत्याशियों से सजे इस चुनावी मैदान में मुकाबला आर-पार की है।
दोनों ही उम्मीदवारों की अपनी-अपनी खासियतें हैं। सुनील पिंटू भाजपा और संघ परिवार के बीच एक बड़ा चेहरा माने जाते हैं। वहीं सुनील कुशवाहा का स्थानीय जनसंपर्क, संगठन पर पकड़ और जातीय समीकरण उन्हें मजबूत दावेदार बनाता है।
सीतामढ़ी विधानसभा की राजनीति हमेशा से समीकरणों के सहारे घूमती रही है। यहां का मतदाता विकास के मुद्दों के साथ-साथ सामाजिक संतुलन पर भी नजर रखता है।
हैट्रिक जमा चुके हैं पिंटू
भाजपा उम्मीदवार सुनील कुमार पिंटू इस सीट पर पारिवारिक विरासत के रूप में संभालते रहे हैं। इनके दादा जी किशोरी लाल साह 1962 में कांग्रेस से यहां के विधायक थे। इसके बाद इनके पिता हरिशंकर प्रसाद वर्ष 1995 में भाजपा से विधायक बने।
सीतामढ़ी विधानसभा से वे भाजपा के पहले विधायक रहे। वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में इनके पिता हरिशंकर प्रसाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यहां से मात्र छह माह के लिए विधायक बने। उस समय शाहिद अली की जीत हुई थी, जिसे कोर्ट ने रद कर दिया था।
इसके बाद वर्ष 2005 के फरवरी और अक्टूबर में हुए दोनों चुनाव में सुनील कुमार पिंटू भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते। वे अपने परिवार के तीसरी पीढ़ी के सदस्य थे। फिर 2010 में भी सुनील कुमार पिंटू भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते।
तब उनके विजय रथ को 2015 में राजद के ही सुनील कुमार उर्फ सुनील कुमार कुशवाहा ने रोक दिया और विधायक बने। अब देखना होगा कि इस बार कौन सुनील विधानसभा जाने का अपना मार्ग प्रशस्त करता है।
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