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प्रखंड पर्यटन दर्शनीय बिहार : मन्नीपुर दुर्गा मंदिर में पिंडी की होती है पूजा, नवरात्र में विदेश से भी आते हैं श्रद्धालु

Bihar Tourism बिहार के समस्तीपुर जिले में 19वीं सदी में बनाए गए माता के मंदिर में नवरात्र के दिनों में श्रद्धालुओं की खासी भीड़ उमड़ती है। जिला मुख्यालय से उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित मन्नीपुर गांव में मां के पिंडी स्वरूप की पूजा की जाती है। हालांकि साल 2016 में यहां माता भी प्रतिमा की भी स्थापना की गई। इस मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक कथाएं भी हैं।

By Prakash Kumar Edited By: Yogesh Sahu Updated: Mon, 07 Oct 2024 06:55 PM (IST)
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समस्तीपुर स्थित मन्नीपुर मंदिर में स्थापित माता की मूर्ति।
प्रकाश कुमार, समस्तीपुर। नवरात्र में आमतौर पर मां दुर्गा के प्रतिमा की पूजा होती है, लेकिन समस्तीपुर जिला मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व स्थित मन्नीपुर गांव में मां के पिंडी स्वरूप की पूजा होती है। वर्ष 2016 में मंदिर में मां की मूर्ति स्थापित हुई।

आज भी यहां मां दुर्गा की प्रतिमा के साथ मुख्य रूप से पिंडी की ही पूजा होती है। 19वीं सदी में स्थापित यह जगह सिद्धपीठ मन्नीपुर दुर्गा मंदिर माई स्थान के नाम से विख्यात है। नवरात्र के समय खासकर सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी को बड़ी संख्या में महिलाएं खोइछा भरने पहुंचती हैं।

प्रसाद स्वरूप मां को नारियल चढ़ाती हैं। वैसे तो यहां पूरे प्रदेशभर से श्रद्धालु आते हैं, लेकिन नवरात्र में नेपाल व देश के अन्य शहरों से भी लोग माता के दर्शन को पहुंचते हैं। मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था को देखते हुए पर्यटन विभाग ने इसे पर्यटन स्थल घोषित करने वाले स्थानों की सूची में शामिल किया है। जल्द ही इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा।

समस्तीपुर स्थित मन्नीपुर मंदिर में स्थापित माता की मूर्ति।

डेढ़ सौ वर्ष पूर्व हुई थी पिंडी रूप में स्थापना

ग्रामीण बताते हैं कि 19वीं सदी में मन्नीपुर व इसके आसपास के कई गांवों में हैजा फैल गया था। महामारी में हजारों लोगों की जान गई। हर तरफ मातम पसर गया। उसी समय मन्नीपुर निवासी तपस्वी ब्रह्मचारी राम खेलावन दास को माता ने स्वप्न में दर्शन दिए और गांव में पिंडी स्थापित कर पूजा करने को कहा।

राम खेलावन दास सड़क किनारे पूर्वाभिमुख माता की पिंडी स्थापित कर पूजा-अर्चना करने लगे। पूजा शुरू होते ही क्षेत्र की स्थिति में तेजी से सुधार होने लगा। कुछ ही दिनों में बीमारी खत्म हो गई। मन्नीपुर से सटे दौलतपुर निवासी वासुदेव नारायण ने 1857 में राम खेलावन दास का शिष्य बनकर माता के पिंडी की पूजा शुरू की थी।

फिर 1936 में मानसिक रूप से विक्षिप्त एक श्रद्धालु की मां मायावती देवी मन की शांति एवं जीविकोपार्जन के लिए प्रतिदिन माता की पिंडी की पूजा करती थीं और दिनभर वहां बैठती थीं। उन्होंने अपनी एक कट्ठा 18 धुर जमीन मंदिर बनवाने के लिए दान कर दी।

तब एक छोटे से मंदिर का निर्माण करा काशी, अयोध्या से विद्वान ब्राह्मण पुरोहितों को आमंत्रित कर उक्त पिंडी को मंदिर में स्थापित कराया गया। कुछ माह बाद मूर्तिकारों से मिट्टी से बनी माता की प्रतिमूर्ति स्थापित की। प्रत्येक मलमास के उपरांत यानी तीन वर्षों पर वह मूर्ति विसर्जित कर दी जाती थी।

2016 में स्थानीय प्रह्लाद सिंह की ओर से और भूमि दान करने पर दो तल्ला भवन बनाकर मंदिर में माता की मूर्ति स्थापित की गई। साथ ही परिसर में 51 फीट ऊंची पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा भी स्थापित की गई। नवग्रह मूर्ति की भी स्थापना की गई है। मुख्य पुजारी विपिन कुमार झा बताते हैं कि यह मंदिर मनोकामना पूरी करने के लिए चर्चित है। यहां असीम शांति मिलती है। रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं।

समस्तीपुर स्थित मन्नीपुर मंदिर।

2013 में धार्मिक न्यास परिषद के हवाले

धीरे-धीरे मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ने लगी। चढ़ावे के रूप में मंदिर की आय भी काफी बढ़ गई। मंदिर के कोष को संभालने के लिए मंदिर समिति की आवश्यकता हुई। वर्ष 2013 में यह मंदिर धार्मिक न्यास बोर्ड पटना के अधीन हो गया। इसके बाद पदेन अध्यक्ष अंचलाधिकारी को बनाते हुए अवैतनिक 11 सदस्यों की नियुक्ति की गई। मंदिर के आसपास रहने या खाने-पीने की व्यवस्था नहीं है। श्रद्धालु मंदिर से तीन किमी दूर शहर में बने होटलों में ठहरते हैं। वहां खाने-पीने की दर्जनों दुकानें हैं।

ऐसे पहुंचें

समस्तीपुर बस स्टैंड से मन्नीपुर मंदिर की दूरी पांच किमी है। समस्तीपुर शहर के मगरदही घाट मुक्तापुर गोलंबर से बस या आटो लेकर यहां पहुंचा जा सकता है।

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