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'अब गुलामी नहीं सहेंगे...', सीतामढ़ी के वीरों ने भरी थी हुंकार, मारपीट-लूटपाट और घर जला-जलाकर थक गए थे अंग्रेज

9 अगस्‍त 1942 का दिन देश की जनता की उस इच्छा की अभिव्यक्ति थी जिसमें ठान लिया था कि हमें अब गुलामी से मुक्ति चाहिए और अब आजादी लेकर ही रहेंगे। इसी जज्बे के साथ महात्‍मा गांधी की प्रेरणा से 10 अगस्त 1942 तक करो या मरो का नारा सीतामढ़ी के गांव-गांव में पहुंच चुका था। लोगों ने जुलूस निकाला।

By Jagran NewsEdited By: Deepti MishraUpdated: Fri, 11 Aug 2023 02:53 PM (IST)
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स्वतंत्रता दिवस की तैयारी : सीतामढ़ी के वीरों ने अंग्रेजों के छुड़ा दिए थे पसीने।
 मुकेश कुमार 'अमन', सीतामढ़ी : देश आजादी का 77वां दिवस मना रहा है। बच्चे से लेकर बुजुर्गों तक के दिलों में उत्साह और उमंग है। इस बीच, देश के लिए अपनी जान की बाजी लगाने और अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को भी याद किया जा रहा है। सीतामढ़ी के वीरों ने भी अंग्रेजों के पसीने छुड़ा दिए थे।

दरअसल, 9 अगस्‍त, 1942 का दिन देश की जनता की उस इच्छा की अभिव्यक्ति थी, जिसमें ठान लिया था कि हमें अब गुलामी से मुक्ति चाहिए और अब आजादी लेकर ही रहेंगे।

इसी जज्बे के साथ महात्‍मा गांधी की प्रेरणा से 10 अगस्त, 1942 तक करो या मरो का नारा सीतामढ़ी के गांव-गांव में पहुंच चुका था। लोगों ने जुलूस निकाला।

सीतामढ़ी थाना और डाकखाने पर तिरंगा फहराया। कोर्ट-कचहरी अनिश्चितकाल के लिए बंद करा दिए गए। इनका मकसद आवागमन को ठप करना था। इस क्रम में सीतामढी-नरकटियागंज व सीतामढ़ी-दरभंगा के ढेंग, रीगा, बैरगनिया, पुपरी और बाजपट्टी आदि स्टेशनों पर कब्जा कर तिरंगा फहराया गया।

ऐसे चौपट की थी अंग्रेजों की व्यवस्था

रेल लाइन को उखाड़कर क्षतिग्रस्त कर दिया गया। टेलीफोन के तार काट दिए गए। स्टेशन पर कोयला इंजन को पानी देने के लिए बनी टंकी नष्ट कर दी गई। 14 अगस्त को जो रेलगाड़ी सीतामढ़ी आई वह कई दिनों तक स्टेशन पर ही रुकी रही।

आंदोलन की कमान ठाकुर नवाब सिंह व बाबा नरसिंह संभाले हुए थे। सैनिकों ने बाबा नरसिंह दास, रामानंद सिंह और मोहन सिंह के घरों में तोड़फोड़ और लूटपाट करने के बाद आग लगा दी।

प्रख्यात लेखिका आशा प्रभात, पुपरी निवासी साहित्यकार रामबाबू नीरव बताती हैं कि अगस्त क्रांति हम भारतवासियों के जीवन की महान घटना थी। इसकी याद हमेशा बनी रहेगी। यहां के वीरों ने जब ब्रिटिश सैनिकों के पसीने छुड़ा दिए तो उन्होंने भी पलटवार करते हुए भीषण अत्याचार किए। कई गांवों को लूटकर आग के हवाले कर दिया।

अगस्‍त क्रांति के दौरान हो गया था आजादी का उद्घोष 

इतिहास के आईने में बेलसंड-सीतामढ़ी पुस्तक के रचयिता डॉ. लोकेश कुमार शरण बताते हैं कि अगस्त क्रांति के दौरान सभी थाना क्षेत्रों में स्वतंत्रता का उद्घोष होने लगा था। लोगों में सरकार के विरुद्ध आक्रोश गहराता जा रहा था। सरकारी अधिकारियों को कुछ सिपाहियों पर अवज्ञा करने तथा कांग्रेस के प्रति सहानुभूति रखने का संदेह हुआ था।

मुजफ्फरपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा बिहार के मुख्य सचिव को 17 अगस्त, 1942 को लिखे गए पत्र से इस संदेह की पुष्टि होती है।

इस पत्र के मुताबिक, तिरहुत प्रमंडल के आयुक्त यह निर्णय कर चुके थे कि कुछ और समय के लिए साहेबगंज, पारु, लालगंज, पातेपुर, महनार, शिवहर, सोनबरसा, मेजरगंज, सुरसंड, मीनापुर और जरूरी हो तो बेला के थाने बंद कर दिए जाएं।

खादी भंडार था स्वयंसेवकों का केंद्र

कांग्रेस स्वयंसेवकों व कार्यकर्ताओं की बैठक व गुप्त योजनाएं बनाने का एक केंद्र सीतामढ़ी का खादी भंडार भी था। खुफिया जानकारी मिलते ही 19 अगस्त को ब्रिटिश सैनिकों ने खादी भंडार पर हमला बोल दिया।

खादी भंडार को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया। कांग्रेस कमेटी के कार्यालय व खादी भंडार को काफी क्षति पहुंचाई गई। बखरी के महंत रामकृष्ण दास का मठ लूट लिया गया।

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